कोरोना महामारी के चलते कोई भी ऐसा क्षेेत्र नहीं, जो इसके प्रभाव से अछूता रहा है। नौकरीपेशे से जुड़े लोगों से लेकर अफसरों तक प्राइवेट रोजगार हो या सरकारी उपक्रम, कोरोना ने न केवल भारत को बल्कि पूरी दुनिया में नुक्सान पहुंचाया है। हालांकि भारत का ग्राफ कोरोना और इसके असर को खत्म करने वाले देशों की सूची में सबसे ऊंचा है। लाकडाउन से लेकर अनलाक के विभिन्न चरणों से भारत गुजर रहा है और अब सब कुछ सामान्य हो भी रहा है, लेकिन कडुुवा सच यही है कि जहां इसका खतरा बरकरार है तो इसके खिलाफ भारत की जंग भी जारी है। अगर शिक्षा क्षेत्र की बात की जाए तो हम यही पाते हैं कि पूरी दुनिया के भविष्य की एक तरक्की वाली तस्वीर पेश करने में भारत का बड़ा हाथ है। इसीलिए हमारी सरकार ने शिक्षा क्षेत्र की सुरक्षा और इसके लगातार विकास को ध्यान में रखकर बहुत कुछ किया है।
ताजा उदाहरण दिल्ली में तीसरी से लेकर आठवीं तक के बच्चों को इस एकेडमिक सत्र में अगली क्लासों में प्रमोट करने का दिल्ली सरकार ने ऐलान किया है और हम इसका स्वागत करते हैं। सब जानते हैं कि पिछले साल सीबीएसई और अलग-अलग यूनिवर्सिटियों ने छात्रों को आनलाइन आधार पर उनका वर्ष बचाने के लिए आउट आफ दि वे जाकर अगर सब कुछ किया है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। नए सैशन में यद्यपि सीबीएसई ने मई महीने से ऑफ लाइन परीक्षाओं का ऐलान किया है, परन्तु बड़ी दिक्कत आठवीं कक्षाओं के स्टूडेंट्स से जुड़ी थी कि उनके इस वर्ष को कैसे बचाया जाए। जिसे देखते हुए दिल्ली शिक्षा निदेशालय ने उन्हें अगली क्लास में प्रमोट करने का सर्कुलर भी जारी कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि यह फैसला सरकारी स्कूलों तक सीमित है। इस कड़ी में यद्यपि प्राइवेट स्कूलों ने आनलाइन के जरिये अपनी परीक्षाओं के सिलसिले को आगे बढ़ा दिया है। वहीं सरकारी स्कूलों में आठवीं कक्षा तक के बच्चों को अगली कक्षा में प्रमोट करने का पैमाना उनका असेसमैंट होगा। सरकार ने बच्चों पर कोरोना का असर न पड़े, इसीलिए यह फैसला लिया है लेकिन विशेषज्ञ इसे भी बड़ी चुनौती के रूप में देख रहे हैं।
कुल मिलाकर आनलाइन क्लासों का प्रयोग शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए भले ही सफल रहा हो लेकिन बौद्धिक विकास को तरजीह देने के लिए हमें उसी ढांचे पर उतरना होगा जो कल तक स्कूल में प्रचलित था। छोटे बच्चों का दिमाग लगभग उस गर्म लोहे की तरह है जिसे ढालने के लिए शिक्षकों का उनके साथ रहना बहुत जरूरी है। शिक्षा के बहुमुखी स्वरूप और करियर के लिए सीधा संवाद होना बहुत जरूरी है। घर पर रहकर आनलाइन शिक्षा को नियमित बनाना इसकी कभी कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए। कोरोना की मजबूरी के चलते छोटी क्लासों के बच्चों को अगली कक्षा में प्रमोट करना हमारा कर्त्तव्य केवल क्षणिक रूप से हो सकता है लेकिन इसे कभी भी स्थाई नहीं माना जा सकता। अगर हमने इसे स्थाई मान लिया तो बच्चों का जमीनी आधार हिल सकता है। यह बातें अगर शिक्षाविद् और विशेषज्ञ कह रहे हैं तो इसके मर्म को समझना होगा।
बड़ी बात यह है कि इसी दिल्ली में स्कूल अभिभावक शिक्षक और प्रबंधन सभी चाहते हैं कि कक्षा तीन से लेकर आठवीं तक अब स्कूल खुल जाने चाहिएं। लेकिन कोरोना के नियमों का पालन करना जरूरी है । शिक्षा के क्षेत्र में अगर बच्चों के माता-पिता ने कल यह मांग कर दी कि हमारे बच्चों को अगली क्लास में प्रमोट करने की पालिसी लाई जानी चाहिए तो फिर हालत क्या होगी। आफ लाइन आैर आनलाइन के बीच एक बड़ा फर्क हमारे सामने है, जब नौवीं से बारहवीं तक की कक्षाएं स्कूल खोल कर शुरू की जा सकती हैं तो प्राइमरी और मिडिल स्तर पर कोई सुरक्षित मानदंड के आधार पर कुछ न कुछ किया जाए। भले ही हफ्ते में दो दिन ही क्यों न क्लासें लगें लेकिन इस दिशा में कुछ न कुछ किया जाना बहुत जरूरी है। शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अभी बहुत कुछ सामने आएगा। बड़े कम्पीटीटिव परीक्षाओं का आधार अगर कोई मजबूत कर सकता है तो वह हमारी परीक्षा प्रणाली ही है और जब स्कूल-कालेज खुलेंगे ही नहीं तो स्टूडेंट अभ्यास कैसे कर पाएंगे। इस तरह की चुनौतियां हमारे सामने हैं। माता-पिता की रजामंदी जरूरी है और शिक्षा का विकास भी बहुत जरूरी है। सुरक्षा को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना समय की मांग है।