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ट्रंप की दादागिरी और उत्तर कोरिया

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विश्व संकट का सबसे खास सबक यह है कि हमें ब्लैक स्वान्स के बारे में सावधान रहना चाहिए। यह ना​िसम निकाेलस तालिब का अनिश्चितता का सिद्धांत है, जो कहता है कि हम गणना, आकलन और विश्लेषण के आधार पर इतिहास की घटनाओं की भविष्यवाणी नहीं कर सकते। ना​िसम निकोलस के मुताबिक, ये ऐसी घटनाएं हैं, जिनके होने की संभावना तो कम ही होती है, लेकिन जब ये होती हैं तो बड़ी तबाही मचा सकती हैं। भू-राजनीति में एक ऐसी संभावित घटना है जिसके बारे में सोचना हम सबके लिए चुनौती है और वह है उत्तर कोरिया और अमेरिका का टकराव।

उत्तर कोरिया के तानाशाह सनकी किम जोंग ने अपने वादे के मुताबिक परमाणु सुरंगों को बम धमाकों से उड़ा दिया। यह खबर दुनियाभर के मीडिया चैनलों पर फ्लैश हो ही रही थी कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किम जोंग के साथ 12 जून को ​सिंगापुर में होने वाली बैठक रद्द कर दी। बैठक रद्द करने की घोषणा से पूर्व ट्रंप ने खुद कहा था कि शिखर वार्ता के संबंध में फैसला कुछ देर बाद लिया जाएगा। इस बैठक के बारे में आशंकाएं तो उसी समय उठ खड़ी हुई थीं जब ट्रंप ने ईरान से परमाणु करार तोड़ने की घोषणा की थी। ट्रंप ने बैठक इसलिए रद्द की क्योंकि उत्तर कोरिया की बयानबाजी में उन्हें खुलेआम दुश्मनी और भारी गुस्सा दिखा। उत्तर कोरिया के मंत्री चो-सोन-हुई ने अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेंस को ट्रंप के बयान दोहराने की वजह से उन्हें सियासी कठपुतली और मूर्ख तक बता डाला था। ट्रंप द्वारा बैठक को रद्द कर देने के पीछे उत्तर कोरिया की बयानबाजी ही एकमात्र कारण हो, ऐसा नहीं हो सकता। दरअसल शिखर सम्मेलन के धराशाई होने के पीछे ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जाॅन बोल्टन भी एक कारण हैं जिनके जिम्मे उत्तर कोरिया से वार्ताओं में अपेक्षाओं को रेखांकित करना था। वाल्टन ने उत्तर कोरिया के आगे मुकम्मल निरस्त्रीकरण की शर्त रखी थी। वाल्टन चाहते थे कि सिंगापुर में उत्तर कोरिया अपने सारे परमाणु और रासायनिक हथियारों को तबाह करने पर राजी हो। उत्तर कोरिया ऐसा कुछ करने को तैयार नहीं था।

अब फिर टकराव हो चुका है तो दुनिया के आगे कई सवाल हैं जैसे क्या तीसरे विश्व युद्ध के हालात बन रहे हैं क्योंकि जोंग फिर से मिसाइल परीक्षण करेगा? क्या अमेरिका उत्तर को​िरया में लीबिया मॉडल दोहराएगा? उत्तर कोरिया लम्बे अर्से से लीबिया के साथ तुलनाओं से डरता रहा है। कौन नहीं जानता कि अमेरिका ने इराक, अफगानिस्तान और लीबिया में विध्वंसक खेल खेला है आैर आज तक इन देशों में राजनीतिक स्थिरता नहीं आ पाई है। आतंकवाद से जूझ रहे इन देशों को संभलने में काफी समय लगेगा। लीबिया के अनुभव से किम जोंग ने सीखा है कि अमेरिका के कहने पर परमाणु निरस्त्रीकरण का अर्थ है कि एक दिन उनका भी अंत निश्चित है।

उत्तर कोरिया के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए दोहराया है कि वह अमेरिका के साथ कूटनीतिक प्रक्रिया कहीं भी और कभी भी शुरू करने काे तैयार है। यह बात सही है कि उत्तर कोरिया बातचीत करने के वादे से पीछे नहीं हटा, तब भी नहीं जब किम जोंग उन ने चीन में जाकर दो बार वहां के राष्ट्रपति श्री जिन​पिंग से मुलाकात की और तब भी नहीं जब 27 अप्रैल को कोरियाई प्रायद्वीप के दोनों नेताओं के बीच ऐतिहासिक मुलाकात हुई। यद्यपि ट्रंप ने भी किम जोंग के साथ बातचीत के रास्ते हमेशा के लिए बंद नहीं किए हैं, संभावनाएं अब भी बरकरार हैं। ट्रंप ने वार्ता रद्द करके सिर्फ दादागिरी ही दिखाई है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की कोशिशों के बावजूद परमाणु हथियार रखने वाला उत्तर कोरिया अकेला देश नहीं है। अगर अमेरिका अपनी दादागिरी के चलते उत्तर कोरिया में लीबिया जैसे हालात पैदा करता है और भले ही किम जोंग शासन का पतन हो जाए लेकिन इसके नतीजे काफी भयंकर होंगे।

सवाल यह है कि अगर वहां के शासन का पतन होता है तो आगे रास्ता क्या होगा। भयंकर परिणामों को देखते हुए चीन उत्तर कोरिया पर अधिक दबाव डालने का प्रतिरोध करता है। यदि उत्तर कोरिया में किम जोंग की सत्ता हिली तो एक नया शरणार्थी संकट खड़ा हाे जाएगा। शरणार्थी न केवल दक्षिण कोरिया बल्कि उत्तर की ओर चीन में भी घुसेंगे। चीन की हरसंभव कोशिश होगी कि उत्तर कोरिया में किम का शासन बरकरार रहे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो एक गंभीर भू-राजनीतिक अस्थिरता पैदा होगी जिसके लिए अमेरिका जिम्मेदार होगा। हो सकता है कि चीन प्रतिद्वंद्वी और शत्रुतापूर्ण प्रतिक्रिया दे। स्थितियां ब्लैक स्वान्स यानी इतिहास की अनिश्चितता की ओर संकेत दे रही हैं।

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