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इस उम्र मे पति-पत्नी का निराला साथ

पति-पत्नी का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जिसका कहीं कोई मुकाबला नहीं और यदि इसमें से एक साथी चला जाए तो दूसरे का क्या हाल होता है मेरे से ज्यादा और कोई नहीं बता सकता।

पति-पत्नी का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जिसका कहीं कोई मुकाबला नहीं और यदि इसमें से एक साथी चला जाए तो दूसरे का क्या हाल होता है मेरे से ज्यादा और कोई नहीं बता सकता। आज से 19 साल पहले जब वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब ऐसे लोगों के लिए एक मंच बनाया था जो लोग अकेले रह गए हैं या जिनके बच्चे दूसरों शहरों या विदेशों में रहते हैं या जिनकी बेटियां ही हैं और ब्याह कर दूसरे शहर में चली गई हैं या जिनका साथ छूट गया है या जिनके बच्चे उन्हें नहीं पूछते तो वो लोग अकेलापन और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं तो क्यों न उनके लिए एक ऐसा सकारात्मक माहौल पैदा किया जाए जहां खुशियां ही खुशियां हों, पॉजिटिव सोच हो, जहां सबको मर्यादा में रहकर अपनी उन इच्छाओं को पूरा करने का माहौल मिले जिसके लिए वो सारी उम्र तरसे हैं और ऐसे भी लोग जो बुढ़ापा और आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं, उन्हें भी आर्थिक सहायता देकर अपने बच्चों के साथ जाने की मदद की जाए। सच में हम बहुत हद तक सफल भी हुए। आज जब मेरे सामने हमारे सदस्य श्री रामस्वरूप और श्रीमती जय देवी मेहता के स्वर्गवास होने की खबर मिली और यह भी मालूम हुआ कि किस तरह उनके बेटे नरेन्द्र मेहता (पम्मी), बाल किशन, हरीश शिपाल और पुत्री कमलेश ने उनकी सेवा की और जिस तरह से उन्होंने खुशी से लम्बा जीवन जिया और दोनों एक साथ गए। पति की अर्थी उठने से एक घंटा पहले उनकी पत्नी यानी बच्चों की माता स्वर्ग सिधार गईं और दोनों का दाहसंस्कार एक ही चिता पर हुआ, जो कि एक निराला उदाहरण है। वाकई एक खुशकिस्मत कपल था। ऐसे ही मिलता-जुलता केस भोलानाथ विज और उनकी पत्नी का भी है जो साल बाद ही उनके पास चली गईं। उन दोनों का भी आपस में बहुत प्यार और इज्जत थी, परन्तु जीते जी उनकी धर्मपत्नी को हमेशा उनसे शिकायत थी कि मैं तो आपकी दूसरी पत्नी हूं। पहली पत्नी तो आपकी चौपाल है और उनके बगैर साल ही नहीं रह सकी। मुझे उन दोनों का मेरे लिए प्यार और सत्कार बहुत याद आता है। कदम-कदम पर उनकी यादें छायी रहती हैं।
ऐसी बहुत सी मां जैसी माएं हैं जो ईश्वर को प्यारी हो गईं, पर मेरे जीवन पर अमिट छाप छोड़ गईं जैसे भारती नैय्यर, मालती सिंगल, श्रीमती जानकी आंटी, शांति आंटी, विमला  साहनी जी। विमला साहनी जी का मेरे जीवन पर बहुत असर है। जब अश्विनी जी मुझे छोड़कर गए तो मुझे जीना बहुत मुश्किल लगता था।  एक समय तो ऐसा भी था कि लगता था कि मैं भी उनकी चिता में कूद जाऊं, क्योंकि प्यार तो हर पति-पत्नी में होता है परन्तु उन्होंने जो मुझे मान-सम्मान और ज्ञान दिया वो कम लोग ही करते हैं और बचपन से लेकर 40 साल शादी के इक गुजारे लगता था कैसे जीऊंगी? तो श्रीमती विमला साहनी और श्रीमती राज खुराना, संगीता जेतली मेरे लिए इस कठिन समय में प्रेरणा स्रोत थीं और मेरी ब्रांच हैड किरण मदान जिन्होंने मुझे यह समझाया और अहसास दिलाया कि यह विधि का विधान है, हमारे हाथ में नहीं। आपको जीना है और अपने पति के नाम और काम को आगे ले जाना है। मैं खूब रोती थी, आंखें दुखती थीं, परन्तु चैन नहीं था और जब इनको देखती कुछ हिम्मत बंधती,  फिर टूट जाती। फिर कोरोना में जब अपने सदस्यों को डिप्रेशन में जाते देखा तो उठना ही पड़ा। अब बच्चे मेरा हौसला हैं, जो हमेशा कहते हैं पापा कहीं नहीं गए हमारे बीच हैं, हमारे दिलों में हैं, हमारे आसपास हैं। वो मुझे कहते हैं वैसे ही रहो जैसे पापा के सामने रहते थे। बिंदी लगाओ, अच्छे-अच्छे कपड़े पहनो। जैसे पापा चाहते थे अगर आप ऐसा करोगे तो हमें अहसास होगा कि वो यहीं हैं। यही नहीं मेरी बहू सोनम और आने वाली बहुएं सना और राधिका हमेशा मेरे पीछे रहती हैं कि डार्क कलर पहनो। अगर आप हमारे साथ प्यार करते हो यह सब बातें मुझे नार्मल रहने पर अग्रसर करती हैं। वैसे मुझे मालूम है कि इन बातों के कोई मायने नहीं, पर दिल को समझाने के लिए, नार्मल जिन्दगी के लिए बच्चों का साथ बड़ा 
जरूरी है। कहने का भाव है कि पति-पत्नी के साथ और प्यार के आगे कुछ नहीं। पहला प्यार मां-बाप का होता है, दूसरा पति-पत्नी का। मां-बाप के जाने के बाद भी आप टूट जाते हो, परन्तु समय के साथ समझौता करते हो कि उनकी उम्र थी जाने की परन्तु जब समय से पहले छोटी उम्र में आपके साथी का साथ छूट जाता है, तो एक-एक सैकंड बहुत मुश्किल होता है तो आपके बच्चे ही आपके प्यार का सहारा और जीने का सहारा होते हैं, जो आपको समय-समय पर नार्मल जीवन जीना सीखाते हैं, क्योंकि कोई भी यह रिक्त स्थान नहीं ले सकता। मुझे अब यही लगता है, मैं जो कुछ भी करती हूं अश्विनी जी मेरे साथ-साथ चलते हैं। वाकई पति-पत्नी का रिश्ता निराला होता है, जिसे समझने और जीने की जरूरत है। द्य

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