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बेमौसम बारिश की मार

बैसाखी का दिन आ रहा है और यह पर्व किसानों के लिए उल्लास का पर्व होता है।

कितने अजब रंग समेटे हैं
यह बेमौसम बारिश खुद में
लोग पकौड़े खाने की सोच रहे हैं
तो किसान जहर पीने की
बैसाखी का दिन आ रहा है और यह पर्व किसानों के लिए उल्लास का पर्व होता है। इसी दिन किसान खेतों में अपनी लहलहाती फसलों की कटाई शुरू करता है। पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश ने किसानों के चेहरे की खुशी छीन ली है। बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि के कारण फसलों और सब्जियों को काफी नुक्सान पहुचा है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, मध्य प्रदेश में गेहूं और सरसों की फसल को भारी नुक्सान हुआ है। उत्तर प्रदेश में आलू और लौकी की फसल को नुक्सान हुआ है। तेलंगाना में मक्का, चना, पपीता और आम की फसल को नुक्सान पहुचा है जबकि बिहार में लीची और गेेहूं की फसल खराब हुई है। भारत के किसान हर साल बारिश की उम्मीद करते हैं लेकिन बेमौसम बरसात एक अभिशाप बनी हुई है। गेहूं की फसल को अस्वभाविक रूप से बेमौसम की बारिश से तुरंत पहले उच्च तापमान का खामियाजा भी भुगतना पड़ा है।
बारिश और तेज हवाओं ने खड़ी फसलों को जमीन पर बिछा ​​दिया है। सरसाें के फूल अंकुरित होते ही झड़ गए। जमीन पर गिरी हुई फसलों को आसानी से नहीं काटा जा सकता। पंजाब और उत्तर प्रदेश में ढीली और गीली मिट्टी में हार्वेस्टर से कटाई नहीं की जा सकती। पिछले 50 वर्षों में चरम मौसम की स्थिति में वृद्धि हुई है। अनुसंधान से पता चलता है कि पिछले 20 वर्षों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा जैसे नए क्षेत्रों में गर्मी का सामना करना पड़ रहा है। इन क्षेत्रों में पहले इतनी गर्मी नहीं देखी जाती थीं। यह क्षेत्र एक नए हीट वेव के तौर पर उभर चुके हैं। अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों में बढ़ौतरी हुई है। जिसका नुक्सान किसानों को भुगतना पड़ रहा है। य​द्यपि केन्द्र सरकार ने खराब मौसम से फसलों के नुक्सान के बावजूद रिकार्ड तोड़ 112.18 मिलियन टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जताया है। यह देश के लिए राहत की बात हो सकती है। पिछले वर्ष भीषण गर्मी के कारण गेहूं का दाना सिकुड़ जाने से उत्पादन घटकर 107.74 मिलियन टन रह गया था। उम्मीद है कि सरकार जल्द ही पंजाब और हरियाणा में गेहूं की खरीद के लिए गुणवत्ता मानदंडों में ढील देगी जबकि मध्य प्रदेश में ऐसी ढील दे दी गई है। राज्य सरकारें फसलों के नुक्सान का जायजा ले रही हैं ताकि किसानों को मुआवजा दिया जा सके। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने फसल नुक्सान मुआवजे की रकम में 25 फीसदी का इजाफा किया है। ​पहले 33 से 75 फीसदी नुक्सान पर 5400 रुपए प्रति एकड़ मुआवजा मिलता था हालांकि अब पंजाब की मान सरकार 6750 रुपए प्रति एकड़ किसानों को मुआवजा देगी। 76 से 100 प्रतिशत नुक्सान पर 15,000 प्रति एकड़ की राशि मिलेगी। पिछली सरकारों में नुक्सान होने पर मात्र 12000 रुपए प्रति एकड़ की राशि मिलती थी।
20 से 32 प्रतिशत फसल नुक्सान वालों को भी 2000 रुपए प्रति एकड़ का मुआवजा मिलेगा वहीं राज्य में पहली बार 20 से 25 प्रतिशत फसल नुक्सान वाले किसानों को भी मु​आवजा मिलेगा। प​हले केवल 26 से 32 प्रतिशत फसल नुक्सान वालों को ही मदद मिलती थी। खराब मौसम में जिन लोगों के घर पूरी तरह टूट गए हैं उन्हें सरकार की ओर से 95,000 रुपए की मदद मिलेगी। घरों की टूट-फूट के लिए 5200 रुपए की मदद मिलेगी। हरियाणा के किसान भी पंजाब की तर्ज पर मुआवजा मांग रहे हैं। अन्य राज्य सरकारें भी फसलों के नुक्सान का आंकलन कर मुआवजे की घोषणा करेंगी। पंजाब सरकार ने बैसाखी तक किसानों को मुआवजे की अदायगी का संकल्प व्यक्त किया है। बेमौसम बारिश का असर महंगाई के रूप में देखने को जरूर मिलेगा। देश में इस साल जनवरी में गेहूं की कीमतें रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थीं। इसे काबू करने के लिए केन्द्र सरकार ने 50 लाख टन गेहूं खुले बाजार में उतारने का फैसला किया था। आम और लीची के दर्शन बाजार में दुर्लभ हो सकते हैं और सब्जियां महंगी हो सकती हैं जिसका असर आम आदमी पर पड़ेगा। भारत की विडम्बना यह है कि आजादी के अमृतकाल तक पहुचते-पहुंचते हम आज भी किसानों को मौसमी मार से बचाने के लिए कोई ठोस समाधान नहीं निकाल पाए हैं।
पिछले 20 वर्षों में लगभग साढ़े तीन लाख किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। किसान अपनी फसलों के वाजिब दामों के लिए आंदोलन करते आ रहे हैं। हरित क्रांति ने कृषि की दिशा काे रसायनिक खाद, कीटनाशक, बड़े बांधों पर निर्भरता और अन्य सिंचाई परियोजनाओं की ओर मोड़ दिया। पैदावार तो बम्पर होने लगी लेकिन लागत लगातार बढ़ती गई जिससे खेती किसानों के लिए घाटे का सौदा बन गई। सूखे या बाढ़ की चपेट में आई फसलों का पूरा मुआवजा भी नहीं मिलता। राज्य सरकाराें को चाहिए कि फसलों के नुक्सान का उचित मुआवजा जल्द से जल्द किसानों तक पहुचाएं ताकि किसान अगली फसल की तैयारी कर सकें। किसान की जेब में पैसा होगा तो ही वह बाजार में आएगा। बाजार में मांग बढ़ेगी तो उत्पादन भी बढ़ेगा यही सिद्धांत आम आदमी पर भी लागू होता है इसलिए किसानों के चेहरे पर खुशहाली लाने के लिए राज्य सरकारों को अपने पूरे तंत्र को सक्रिय बनाना होगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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