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2+2 वार्ता से क्या मिला?

आज विश्व को हम ग्लोबल विलेज कहते हैं, देशों में दूरियां नहीं रह गईं। नए समीकरण बदलते हैं और बिगड़ते भी हैं। हर छोटी-बड़ी घटना का प्रभाव भी

आज विश्व को हम ग्लोबल विलेज कहते हैं, देशों में दूरियां नहीं रह गईं। नए समीकरण बदलते हैं और बिगड़ते भी हैं। हर छोटी-बड़ी घटना का प्रभाव भी वैश्विक रूप से होता है। जब नए दोस्त बनते हैं तो पुराने पीछे रह जाते हैं। यह सही है कि भारत और अमेरिका के सम्बन्ध पहले से कहीं अधिक बेहतर हुए हैं। द्विपक्षीय सम्बन्ध भी पहले से ज्यादा मजबूत हुए हैं। भारत और अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता राजधानी दिल्ली में हुई। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस की दिल्ली में विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकात हुई। इस दौरान सैन्य संचार से सम्बन्धित समझौते कम्युनिकेशन्स कम्पैटिविलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कामकासा) पर हस्ताक्षर हुए, जिसके तहत अमेरिका के आधुनिकतम हथियारों और तकनीक का इस्तेमाल भारत कर सकेगा।

इसके अलावा आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देश एक साथ लड़ने पर सहमत हुए। जून 2018 में अमेरिका ने भारत को 6 अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर बेचने की अनुमति दी थी। इनकी कीमत करीब 6340 करोड़ रुपए है। यह हेलीकॉप्टर अपने आगे लगे सेंसर की मदद से रात में उड़ान भर सकता है। मार्च 2018 में भारत ने अमेरिका से 20 वर्ष तक एलएनजी खरीदने का समझौता किया।

अब हमें इस बात का विश्लेषण करना होगा कि भारत-अमेरिका सम्बन्धों का कितना लाभ मिला और पहली 2+2 वार्ता से भारत को क्या हासिल हुआ? यह सही है कि कामकासा समझौते से भारतीय सेना की ताकत बढ़ेगी। डोकलाम में भारत ने इसी अमेरिकी तकनीक की मदद से चीनी सैनिकों के ठिकाने ढूंढे थे। भारत-अमेरिका का यह कदम एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव पर असर डालेगा।

यद्यपि चीन ने भारत-अमेरिका 2+2 वार्ता का स्वागत किया है और सधी हुई प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कामकासा तकनीक के जरिये भारत समुद्र में चीन की गतिविधियों पर नजर रख सकेगा और चीन की पनडुब्बियां उसकी जद में रहेंगी। भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उसमें न सिर्फ भारत के बल्कि अमेरिका के अपने हित भी शामिल हैं। 10 वर्ष पहले तक अमेरिका के साथ रक्षा व्यापार मामूली था लेकिन भारत उससे 10 अरब डॉलर से ज्यादा के उपकरण खरीद रहा है। हिन्द महासागर आैर प्रशांत महासागर में चीन की दादागिरी से निपटने के लिए अमेरिका भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की मदद करने की रणनीति पर चल रहा है।

चीन की दादागिरी से भारत भी परेशान है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान आैर चीन गठजोड़ भी हमारे लिए बड़ी चुनौती है। आखिर ऐसी क्या बात है कि भारत पर ट्रंप इतने मेहरबान क्यों हैं। रक्षा क्षेत्र में भारत की मदद करने की आड़ में वह भारत पर दबाव बना रहा है कि वह ईरान से तेल नहीं खरीदे। पुराने मित्र रूस से अतिआधुनिक हथियार नहीं खरीदे। भारत के लिए एच-I बी वीजा का मुद्दा काफी अहम है। इस वीजा में कटौती के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित भारतीय ही हुए हैं लेकिन तीनों ही मुद्दों पर 2+2 वार्ता से संतोषजनक उत्तर नहीं मिला।

रूस से हथियार खरीदने के मामले में वार्ता से पहले अमेरिका ने गिरगिट की तरह रंग बदले। कभी रूस से हथियारों की खरीद में भारत को छूट देने की बात कही तो कभी कुछ शर्तें लगाने की बात कही। भारत अपने विश्वसनीय दोस्त रूस को कैसे खो सकता है। भारत अपनी तेल जरूरतों को पूरा करने के लिए ईरान से तेल खरीदता रहा है और इसके बदले ईरान हमें काफी छूट भी देता।

ईरान की चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल की भी उसने अनुमति दी है। हम पाकिस्तान के रास्ते से गुजरे बिना अपना माल चाबहार बंदरगाह के जरिये पीछे अफगानिस्तान पहुंचा सकते हैं। अमेरिका भारत को ज्यादा से ज्यादा कच्चा तेल आैर गैस बेचने को तैयार है आैर वह चाहता है कि भारत उसके खेमे के देशों जैसे सउदी अरब से ज्यादा तेल खरीदे। दो संप्रभु देशों में समझौते शर्तों के आधार पर नहीं होते।

अमेरिका ने हमेशा चाहा है ​िक पूरे विश्व में केवल उसका ही दबदबा रहे। भारतीय कूटनीति की अब अग्निपरीक्षा का समय है कि वह अमेरिका से रिश्ते रखने के साथ-साथ रूस और ईरान से सम्बन्धों में संतुलन कैसे कायम करता है। यद्यपि अमेरिका ने पाकिस्तान को आतंकवाद पर फटकार लगाते हुए उसकी पूरी सहायता रोक दी है लेकिन अमेरिका दशकों तक पाकिस्तान को पाल-पोस रहा है फिर भी उसका वरदहस्त पाकिस्तान पर बना हुआ है। अगर ऐसा नहीं होता तो आतंक की खेती करने वाले पाकिस्तान का हाल इराक और अफगानिस्तान जैसा कर दिया जाता। देखना होगा कि भविष्य में भारत-अमेरिका सम्बन्ध पटरी पर रहते हैं या उतरते हैं लेकिन भारत को देखना होगा कि उसके हित सुरक्षित कैसे रह सकते हैं।

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