Voting Was Done Through EVM For The First Time In 1982-आज भी उठते है विश्वसनीयता पर सवाल

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1982 में पहली बार EVM से हुआ मतदान, आज भी उठते है विश्वसनीयता पर सवाल, जानें EC क्यों इसे कहता है ‘हैकप्रूफ’

नवंबर महीने में पांच राज्यों में चुनाव हुए। वोटर्स ने अपने पसंद के कैंडिडेट को वोट दिए जिसके बाद सभी पार्टियों की जीत – हार की चाबी EVM में कैद हो गईं। जैसे ही चुनावों के नतीजे सामने आए, पक्ष-विपक्ष के बीच EVM को लेकर तीखी बहस छिड़ गई। तीन राज्यों में भाजपा की दमदार जीत के बाद विपक्ष ने आरोप लगाया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के साथ छेड़छाड़ की गई है।

Electronic Voting Machine History

कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि कई राज्यों में कांग्रेस की जीत हो रही थी लेकिन भाजपा ने मशीन के साथ छेड़छाड़ कर खुद को जीत दिलवाई हैं। उन्होंने ईवीएम की विश्वसनीयता पर संदेह जताया। बता दें, छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कहा कि जब EVM पर बात होती है तो इसमें बीजेपी को बुरा क्यों लग जाता है? कांग्रेस नेता उदित राज ने आरोप लगाते हुए कहा कि EVM के साथ छेड़छाड़ की गई, तभी ऐसे नतीजे आए।

बीजेपी ने बेतुके बताए आरोप

विपक्ष के सवालों को बेतुका बताते हुए बीजेपी नेता एसपी सिंह बघेल ने कहा, इसी EVM के साथ आम आदमी पार्टी दिल्ली में तीन बार और पंजाब में एक बार जीती है। समाजवादी पार्टी को 2012 में यूपी में पूर्ण बहुमत मिला था। बहुजन समाज पार्टी ने 2007 में पूर्ण बहुमत हासिल किया था और तेलंगाना में भी कांग्रेस जीती है।

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वहीं, केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि इसमें कुछ नया नहीं है। जब वो जीत जाते हैं तो EVM ठीक है, लेकिन जब हार जाते हैं तो EVM को दोष मढ़ देते हैं। वहीं, EVM मशीन से छेड़छाड़ पर चुनाव आयोग की कई बार आश्वासन देते हुए बता चुके हैं कि EVM पूरी तरह सुरक्षित है और इसे हैक नहीं किया जा सकता हैं।

क्या हैकप्रूफ है EVM?

चुनाव आयोग के मुताबिक, EVM मशीन कंप्यूटर से कंट्रोल नहीं होती हैं। ये स्टैंड अलोन मशीन होती हैं जो इंटरनेट या किसी दूसरे नेटवर्क से कनेक्ट नहीं होती हैं। इसलिए ये हैकिंग से पूरी तरह सुरक्षित हैं।

इसके अलावा ईवीएम में डेटा के लिए फ्रीक्वेंसी रिसीवर या डिकोडर नहीं होता है। इसलिए किसी भी वायरलेस डिवाइस, वाई-फाई या ब्लूटूथ डिवाइस से इसमें छेड़छाड़ करना संभव नहीं है। इसके अलावा EVM में जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है, उसे रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय से जुड़ी सरकारी कंपनियों के इंजीनियर बनाते हैं। इस सॉफ्टवेयर के सोर्स कोड को किसी से भी साझा नहीं किया जाता है।

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चुनाव आयोग का दूसरा तर्क है कि भारत में इस्तेमाल होने EVM मशीन में दो यूनिट होती है। एक कंट्रोलिंग यूनिट (CU) और दूसरी बैलेटिंग यूनिट (BU)। ये दोनों अलग-अलग यूनिट होती हैं और इन्हें चुनावों के दौरान अलग-अलग ही रखा जाता है। ऐसे में अगर किसी भी एक यूनिट के साथ कोई छेड़छाड़ होती है तो मशीन काम नहीं करती। इसलिए कमेटी का कहना था कि EVM से छेड़छाड़ करना या हैक करने की गुंजाइश न के बराबर है।

भारत में सिर्फ यहां बनती है EVM

भारत में इस्तेमाल होने वाली EVM मशीन को दो सरकारी कंपनियों ने डिजाइन किया है, बेंगलुरु में स्थित भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BHEL) और हैदराबाद में स्थित इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड। ईवीएम मशीन केवल BHEL और ECIL ही बनाती हैं।

चुनाव आयोग ने 2017 में एक FAQ जारी कर बताया था कि EVM पहले राज्य और फिर वहां से जिलों में जाती है। मैनुफैक्चरर्स को नहीं पता होता कि कौन सी मशीन कहां जाएगी।

Electronic Voting Machine Historyइसके अलावा हर EVM का एक अलग सीरियल नंबर होता है। चुनाव आयोग एक ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता है, जिससे पता चलता है कि कौन सी मशीन कहां है, ऐसे में मशीन से छेड़छाड़ करना मुमकिन नहीं है।

चिप के साथ हो सकती है छेड़छाड़?

EVM की CU में लगी माइक्रो चिप पर ही हमेशा सवाल उठाए गए है, विपक्ष ने आरोप लगाए हैं कि माइक्रो चिप में मालवेयर के जरिए छेड़छाड़ की जा सकती है। चुनाव आयोग ने इस आरोपों को भी खारिज करते हुए कहा कि, एक वोटर एक बार में एक ही बटन दबा सकता है। एक बार बटन दबाने के बाद मशीन बंद हो जाती है और फिर वोटर दूसरा बटन नहीं दबा सकता है। बता दें, इस चीप में उम्मीदवार को डेटा रहता है।

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कैसे काम करती है EVM, भारत में कब आई ये?

EVM का इस्तेमाल वोटिंग के लिए किया जाता है। इससे ना केवल वोटिंग होती है, बल्कि वोट भी स्टोर होते रहते हैं। काउंटिंग वाले दिन चुनाव आयोगा EVM मशीन में पड़े वोटों की गिनती करता है। जिसे सबसे ज्यादा वोट मिलते हैं उस कैंडिडेट को विनर घोषित किया जाता है।

बता दें, भारत में पहली बार 1977 में चुनाव आयोग ने सरकारी कंपनी इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECIL) को EVM बनाने का टास्क दिया। 1979 में ECIL ने EVM का प्रोटोटाइप पेश किया, जिसे 6 अगस्त 1980 को चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को दिखाया।

Electronic Voting Machine History

मई 1982 में केरल विधानसभा चुनाव के समय पहली बार EVM से चुनाव कराए गए। उस समय EVM से चुनाव कराने का कानून नहीं था। 1989 में रिप्रेंजेंटेटिव्स ऑफ पीपुल्स एक्ट, 1951 में संशोधन किया गया और EVM से चुनाव कराने की बात जोड़ी गई।

कानून बन जाने के भी कई सालों तक EVM मशीन का इस्तेमाल नहीं किया जा सका। 1998 में मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभी सीटों पर मशीन से चुनाव कराए गए और फरवरी में 1999 में 45 लोकसभी सीटों पर भी EVM से चुनाव कराए गए।

लेकिन 1982 के एक लंबे अंतराल के बाद 2004 में लोकसभा चुनाव में सभी 542 सीटों पर EVM से वोट डाले गए। तब से ही हर चुनाव में सभी सीटों पर EVM से वोट डाले जा रहे हैं।

EVM के साथ VVPAT की भी इस्तेमाल

वोटिंग प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए EVM के साथ वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) भी आने लगा है। इसमें से एक पर्ची निकलती है जिसमें जिस कैंडिडेट को वोट डाला गया है उसकी तस्वीर और चुनाव चिन्ह दिखता है। ये पर्ची 7 सेकंड तक दिखाई देती है और फिर गिर जाती है। इससे आपको पता चल जाता है कि वोट सही जगह डली है।

EVM VVPAT

अमेरिका में होता है बैलेट पेपर से चुनाव

अमेरिका ने सबसे पहले EVM मशीन का निर्माण किया था लेकिन आज यहां इसपर भरोसा नहीं जाता है। अमेरिका के कुछ राज्यों में वोट-रिकॉर्डिंग मशीन का इस्तेमाल होता है तो कुछ राज्यों में पेपर ऑडिट ट्रेल मशीन यूज होती है।

Electronic Voting Machine History

भारत में इस्तेमाल होने वाली EVM स्टैंड-अलोन मशीन होती है, जबकि अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली मशीन सर्वर से कनेक्ट होती है और इसे इंटरनेट के जरिए ऑपरेट किया जाता है। इसे आसानी से हैक किया जा सकता है। 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हैकिंग के आरोप लगने के बाद अमेरिकी संसद ने 38 करोड़ डॉलर खर्च कर सर्वर और सिस्टम को सिक्योर किया था।

अखिलेश यादव ने दिया अमेरिका का उदाहरण

बता दें, हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बिना EVM की जिक्र किए चुनावों में मतपत्रों के इस्तेमाल करने का जिक्र किया। उन्होंने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा, ‘दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में महीनों तक मतदान होता है और फिर गिनती में महीने लग जाते हैं” उन्होंने आगे कहा, “140 करोड़ लोग देश का भविष्य तय करते हैं। आप तीन घंटे में नतीजे क्यों चाहते हैं ? एक महीने तक गिनती क्यों नहीं होनी चाहिए?”

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पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।