समुद्र की गहराइयों से लेकर एिलयनों की दुनिया तक, तमाम नई खोजों, अन्वेषणों में आधुनिक तकनीकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जहां इंसान नहीं जा सकता वहां वैज्ञानिक उपकरणों को भेजकर अनुसंधान किया जाता है लेकिन शुक्र के प्रतिकूल वातावरण में मशीनें भी काम नहीं कर सकतीं क्योंकि मशीनों का इलेक्ट्राॅनिक सिस्टम शुक्र ग्रह पर मौजूद अत्यधिक ताप, दाब और सल्फ्यूरिक अम्ल के बादल को सहन नहीं कर सकता।
ऐसे में वैज्ञानिक 2300 वर्ष पूर्व इस्तेमाल होने वाले ग्रीक मेकैनिकल कंम्प्यूटर का प्रोटोटाईप बना रहे हैं। द आटोमेटन रोवर फाॅर एक्स्ट्रीम एनवायरोनमेंट (एआरईई) डिवाइस का पहला प्रस्ताव 2015 में नासा के जोनाथन सांडर्स ने किया था। डा. सांडर्स और उनकी टीम अब एआरईई के हिस्सों का चयन कर रही है। शुक्र का वातावरण मंगल से भी अधिक प्रतिकूल है, इसलिए यहां अनुसंधान करने के लिए विशेष रोवर की जरूरत होगी।
प्राचीन ग्रीक मैकेनिकल कम्प्यूटर जिसका निर्माण 2300 वर्ष पूर्व किया गया था, से प्रेरित होकर एआरईई डिजाइन तैयार किया गया है। 2300 वर्ष पूर्व का यह कम्प्यूटर भविष्य की खगोलीय घटनाअों का सही-सही अनुमान लगाने में सक्षम था।
शुक्र का वातावरण जहां सल्फ्यूरिक अमल की वजह से अधिकतर इलैक्ट्राॅनिक उपकरण गलने लगेंगे ऐसे में इस वातावरण के लिए एंटीक्राइपेरा जैसे उपकरण ही एकमात्र विकल्प है। क्लॉक वर्क कम्प्यूटर और कठोर धातु से बना एआरईई शुक्र के 800 डिग्री फाॅरेनहाइट तापमान को सहन कर सकता है। यह रोवर इलेक्ट्राॅनिक्स से नहीं बल्कि केवल पवन ऊर्जा से चलने वाले टरबाइन से काम करेगा। यह रोवर वायु की गति, तापक्रम समेत कई डाटा एकत्र कर धरती पर भेजेगा। वैसे डाटा धरती पर भेजना एक बड़ी चुनौती होगा।