आज कल देश में यूनिफार्म सिविल कॉर्ड के बाद एक और मुद्दा काफी उभरकर सामने आ रहा है, और वो है ‘एक देश-एक चुनाव’ जिसको लाने के लिए भाजपा सरकार तमाम कोशिशों में जुट गयी है। 18 से 22 सितम्बर के बीच में मोदी सरकार द्वारा विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। जिसमें G-20 की अध्यक्षता से लेकर UCC, महिला आरक्षण और ‘एक देश-एक चुनाव’ को लेकर चर्चा किया जाएगा। बता दें की ये वही सत्र है जिसमें देश के बाकी कामों पर चर्चा की जाती है। इन 5 दिनों की बैठक के दौरान सरकार ‘एक देश-एक चुनाव’ का कानून लाने के लिए तरह-तरह के तर्क देने वाली है। लेकिन भले ही हर तरफ इसकी चर्चा हो रही हो लेकिन देश की जनता के बीच अभी-भी कई ऐसे सवाल हैं जो उनको उलझाकर रखे हुए हैं। जैसे की ये क्या है इससे क्या होगा? किन देशों में ये लागू हैं ये सब कुछ ? अगर आपके मन में भी कुछ ऐसे ही सवाल हैं तो आज आपको इन सभी सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ ?
सबसे पहले हम बात करेंगे की ‘एक देश-एक चुनाव’ क्या है तो आपको बता दें की ये वो प्रस्ताव है जिसमें लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को एक ही वक़्त कराने का सुझाव दिया गया है। यानि की सभी चुनावों को एक ही चरण में पूरा किया जाएगा। भाजपा सरकार का ये प्रस्ताव UCC की तरह ही है जिसमें सभी धर्मों के लोगों के लिए एक ही कानून लागू किया जाएगा। जैसे “एक देश और एक कानून” , अब आपको बता दें की ‘एक देश-एक चुनाव’ प्रस्ताव को सिर्फ भारत में ही लाने का सुझाव नहीं दिया गया बल्कि कई ऐसे देश हैं जिनमे ये कानून लागू हो चुके हैं, जिसमें जर्मनी, हंगरी, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, स्पेन, स्लोवेनिया, अल्बानिया, पोलैंड और बेल्जियम ऐसे देश हैं जहां एक ही बार चुनाव कराने की परंपरा है।