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अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़ कर चले गए

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी रविवार को देश छोड़कर चले गए। इसके साथ ही देशवासी और विदेशी भी युद्धग्रस्त देश से निकलने को प्रयासरत हैं, जो नये अफगानिस्तान के निर्माण के पश्चिमी देशों के 20 साल के प्रयोग की समाप्ति का संकेत है।

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी रविवार को देश छोड़कर चले गए। इसके साथ ही देशवासी और विदेशी भी युद्धग्रस्त देश से निकलने को प्रयासरत हैं, जो नये अफगानिस्तान के निर्माण के पश्चिमी देशों के 20 साल के प्रयोग की समाप्ति का संकेत है।
कई घंटों से काबुल के बाहरी इलाके में डेरा डाले बैठे तालिबान ने इसके कुछ ही समय बाद घोषणा की कि वे शहर के और अंदर प्रवेश करेंगे। अमेरिकी दूतावास से कर्मियों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर दिन भर आसमान में उड़ान भरते दिखे। वहीं परिसर के पास धुआं उठते भी देखा गया क्योंकि कर्मचारी महत्वपूर्ण दस्तावेजों को नष्ट कर रहे थे। पश्चिमी देशों के कई अन्य देशों के दूतावास भी अपने लोगों को बाहर निकालने के लिए तैयारी में हैं।
नागरिक इस भय को लेकर देश छोड़कर जाना चाहते हैं कि तालिबान उस क्रूर शासन को फिर से लागू कर सकता है जिसमें महिलाओं के अधिकार खत्म हो जाएंगे। नागरिक अपने जीवन भर की बचत को निकालने के लिए नकद मशीनों के बाहर खड़े हो गए। वहीं काबुल में अधिक सुरक्षित माहौल के लिए देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपने घरों को छोड़कर आये हजारों की संख्या में आम लोग पूरे शहर में उद्यानों और खुले स्थानों में शरण लिये हुए दिखे।
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की तुलना वियतनाम से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से किये जाने को खारिज कर दिया। इस बीच, लोग दूतावास परिसर में हेलीकॉप्टरों का उतरना देख रहे थे जो राजनयिकों को काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक नये ठिकाने पर ले जाने के लिए उतर रहे थे।
ब्लिंकन ने एबीसी के ‘दिस वीक’ पर कहा, ‘‘यह स्पष्ट रूप से वियतनाम नहीं है।’’
दो अधिकारियों ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि गनी हवाई मार्ग से देश छोड़ कर गए। दोनों अधिकारी पत्रकारों को जानकारी देने के लिए अधिकृत नहीं थे। बाद में अफगान राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने इसकी पुष्टि की कि गनी देश से बाहर चले गए हैं।
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अफगानिस्तान को इस मुश्किल स्थिति में छोड़कर देश से चले गए हैं। अल्लाह उन्हें जवाबदेह ठहराएं।’’
अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। कुछ ही दिन पहले, एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा।
काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था। ओसामा को तब तालिबान सरकार द्वारा आश्रय दिया गया था। एक अमेरिकी नेतृत्व वाले आक्रमण ने तालिबान को सत्ता से उखाड़ फेंका। हालांकि इराक युद्ध के चलते अमेरिका का इस युद्ध से ध्यान भंग हो गया।
अमेरिका वर्षों से, युद्ध से बाहर निकलने को प्रयासरत है। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में वाशिंगटन ने फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो विद्रोहियों के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई को सीमित करता है। इसने तालिबान को अपनी ताकत जुटाने और प्रमुख क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए तेजी से आगे बढ़ने की अनुमति दी। वहीं राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस महीने के अंत तक अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी की अपनी योजना की घोषणा की।
रविवार को, तालिबान लड़ाके काबुल के बाहरी इलाके में घुस गए, लेकिन शुरू में शहर के बाहर रहे। एक अफगान अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि इस बीच, राजधानी में तालिबान वार्ताकारों ने सत्ता के हस्तांतरण पर चर्चा की। अधिकारी ने बंद दरवाजे के पीछे हुई बातचीत के विवरण पर चर्चा की और उन्हें ‘तनावपूर्ण’ बताया।
यह स्पष्ट नहीं है कि यह सत्ता हस्तांतरण कब होगा और तालिबान में से कौन बातचीत कर रहा था। सरकारी पक्ष के वार्ताकारों में पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई, हिज़्ब-ए-इस्लामी के नेता गुलबुद्दीन हेकमतयार और अब्दुल्ला शामिल थे, जो गनी के मुखर आलोचक रहे हैं।
करज़ई खुद पोस्ट किये गए एक ऑनलाइन वीडियो में दिखाई दिए, जिसमें उनकी तीन छोटी बेटियां भी थीं। उन्होंने कहा कि वह काबुल में हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हम तालिबान नेतृत्व के साथ अफगानिस्तान के मुद्दे को शांति से सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।’’ इस बीच ऊपर से गुजर रहे एक हेलीकॉप्टर की आवाज सुनी गई।
अफगानिस्तान के कार्यवाहक रक्षा मंत्री, बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी ने देश छोड़कर जाने वाले राष्ट्रपति की आलोचना करने से खुद को रोक नहीं सके। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘‘उन्होंने पीछे से हमारे हाथ बांध दिए और देश बेच दिया।’’
तालिबान ने राजधानी के निवासियों को शांत करने की कोशिश की। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनके लड़ाके लोगों के घरों में प्रवेश नहीं करेंगे या व्यवसायों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि वे अफगान सरकार या विदेशी बलों के साथ काम करने वालों को ‘माफी’ की पेशकश करेंगे।
तालिबान ने एक बयान में कहा, ‘‘किसी की जान, संपत्ति और सम्मान को नुकसान नहीं होगा और काबुल के नागरिकों के जीवन को कोई खतरा नहीं होगा।’’
हालांकि हाल के दिनों में तालिबान द्वारा देश के उन इलाकों में बदला लेने के लिए हत्याओं और अन्य क्रूर रणनीति की खबरें आई हैं जिनपर तालिबान ने कब्जा कर लिया है।
कई लोगों ने भागने का विकल्प चुना, काबुल हवाई अड्डे की ओर भागे, जो देश से बाहर जाने का अंतिम मार्ग था क्योंकि अब लगभग हर बार्डर क्रॉसिंग पर तालिबान का नियंत्रण है। नाटो ने कहा कि वह ‘‘अफगानिस्तान को दुनिया से जोड़े रखने के लिए काबुल हवाई अड्डे पर संचालन बनाए रखने में मदद कर रहा है।’’
रविवार की शुरुआत तालिबान द्वारा पास के जलालाबाद शहर पर कब्जा करने के साथ हुई – जो राजधानी के अलावा वह आखिरी प्रमुख शहर था जो उनके हाथ में नहीं था। अफगान अधिकारियों ने कहा कि आतंकवादियों ने मैदान वर्दक, खोस्त, कपिसा और परवान प्रांतों की राजधानियों के साथ-साथ देश की सरकार के कब्जे वाली आखिरी सीमा पर भी कब्जा कर लिया।
बाद में बगराम हवाई ठिकाने पर तैनात सुरक्षा बलों ने तालिबान के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया है। वहां एक जेल में करीब 5,000 कैदी बंद हैं। बगराम के जिला प्रमुख दरवेश रऊफी ने कहा कि इस आत्मसमर्पण से एक समय का अमेरिकी ठिकाना तालिबान लड़ाकों के हाथों में चला गया। जेल में तालिबान और इस्लामिक स्टेट समूह, दोनों के लड़ाके हैं।

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