SC ने EWS 10 फीसदी कोटा आपत्ति याचिका पर फैसला सुरक्षित, एक सवाल को लेकर फंसा पेंच - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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SC ने EWS 10 फीसदी कोटा आपत्ति याचिका पर फैसला सुरक्षित, एक सवाल को लेकर फंसा पेंच

उच्चतम न्यायालय ने शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों (ईडब्ल्यूएस) के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला मंगलवार को सुरक्षित रख लिया।

उच्चतम न्यायालय ने शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों (ईडब्ल्यूएस) के लिये 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले संविधान के 103वें संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला मंगलवार को सुरक्षित रख लिया।
EWS  कोटा में संविधान के  उल्लघंन किया हैं या नहीं इस पर फंसा पेंच
प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल और सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता सहित अन्य वरिष्ठ वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस कानूनी प्रश्न पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया कि ईडब्ल्यूएस कोटा ने संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन किया है, या नहीं। शीर्ष न्यायालय में इस संबंध में साढ़े छह दिन तक सुनवाई हुई।
संविधान में संशोधन को कपटपूर्ण आरक्षण को नष्ट करने के लिए पिछले दरवाजे से किया गया प्रयास
अकादमिक जगत से जुड़े मोहन गोपाल ने मामले में 13 सितंबर को पीठ के समक्ष दलील पेश किये जाने की शुरूआत की थी। उन्होंने ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए किये गए संविधान में संशोधन को ‘‘कपटपूर्ण’’ और आरक्षण की अवधारणा को नष्ट करने के लिए पिछले दरवाजे से किया गया प्रयास करार दिया था। पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला शामिल हैं।
EWS  कोटा आलोचना करने वाले अधिवक्ताओं ने कहा – गरीबों को कोटा से बाहर कर दिया 
रवि वर्मा, कुमार, पी विल्सन, मीनाक्षी अरोड़ा, संजय पारिख और के.एस. चौहान सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं तथा अधिवक्ता शादान फरासत ने भी कोटा की आलोचना करते हुए कहा था कि इसने (ईडब्लयूएस कोटा ने) अनुसूचित जाति(एससी), अनुसूचित जनजाति(एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग(ओबीसी) श्रेणियों के गरीबों को भी बाहर कर दिया। उन्होंने दलील दी कि इसने ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा को भी विफल कर दिया। 
उल्लेखनीय है कि ओबीसी के तहत एक निर्धारित वार्षिक आय से अधिक आय वाले लोगों (क्रीमी लेयर में आने वालों) की संतान को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में आरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया है। तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नाफाडे ने किया। उन्होंने भी ईब्ल्यूएस कोटा का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आर्थिक मानदंड वर्गीकरण के लिए आधार नहीं हो सकता और इस ईडब्ल्यूएस आरक्षण को कायम रखे जाने पर शीर्ष न्यायालय को इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर पुनर्विचार करना होगा।
50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से छेड़छाड़ बिना किया गया संविधान संशोधन – अटार्नी जनरल
वहीं, दूसरी ओर अटार्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल ने संशोधन का पुरजोर बचाव किया। उन्होंने कहा कि इसके तहत मुहैया किया गया आरक्षण अलग है और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से छेड़छाड़ किये बगैर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस तरह संशोधित प्रावधान संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है।
आरक्षण की जरूरत इसलिए क्योंकि आबादी का एक हिस्सा आरक्षण योजना के दायरे में नहीं आता हैं 
सॉलिसीटर जनरल ने कहा कि सामान्य श्रेणी के गरीबों को फायदा पहुंचाने के लिए ईडब्ल्यूएस कोटा की जरूरत पड़ी क्योंकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा आरक्षण की किसी मौजूदा योजना के दायरे में नहीं आता था। गैर सरकारी संगठन ‘यूथ फॉर इक्वैलिटी’ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने ईडब्ल्यूएस कोटा का समर्थन करते हुए दलील दी कि यह काफी समय से लंबित था और यह ‘‘सही दिशा में एक सही कदम’’ है।
न्यायालय ने करीब 40 याचिकाओं पर सुनवाई की और 2019 में ‘जनहित अभियान’ द्वारा दायर की गई एक अग्रणी याचिका सहित ज्यादातर में संविधान (103वां) संशोधन अधिनियम 2019 को चुनौती दी गई है। उल्लेखनीय है कि संविधान के ‘‘मूल ढांचे’’ का सिद्धांत की घोषणा न्यायालय ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में की थी। न्यायालय ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में संशोधन नहीं किया जा सकता।
 

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