गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के साथ ही एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे है। पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे में आजाद ने पार्टी छोड़ने के लिए कई कारणों को जिम्मेदार बताया। आजाद ने अपने इस्तीफे में राहुल गांधी द्वारा सितंबर 2013 में मीडिया के सामने उस सरकारी अध्यादेश को फाड़ने को ‘पार्टी की हार का कारण’ बताया है, जिसे कांग्रेस कोर ग्रुप के सीनियर लीडर्स ने अपने अनुभवों के आधार पर तैयार किया था।
उन्होंने कहा, इस अपरिपक्वता का सबसे सटीक उदाहरण राहुल गांधी द्वारा मीडिया के सामने सरकारी अध्यादेश को फाड़ना है, उक्त अध्यादेश को कांग्रेस कोर ग्रुप में शामिल किया गया था और बाद में तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। इस ‘बचकाने’ व्यवहार से प्रधानमंत्री पद और भारत सरकार की गरिमा तार-तार हुई। आजाद ने पत्र में पार्टी के साथ 50 साल लंबे अपने जुड़ाव का भी जिक्र किया।
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उन्होंने कहा कि वह राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव की अध्यक्षता में कांग्रेस संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। उन्होंने कहा कि वह निर्वाचित और मनोनीत दोनों तरीके से लगभग चार दशकों तक लगातार कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य रहे हैं और देश के प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के प्रभारी एआईसीसी महासचिव के रूप में कार्य भी किया हैं।
उन्होंने कहा, मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि कांग्रेस ने उन 90 फीसदी राज्यों में जीत हासिल की, जहां वह समय-समय पर प्रभारी रहे थे। आजाद ने कहा कि उन्होंने इस संगठन के लिए निस्वार्थ सेवा की है। उन्होंने हाल ही में सात साल के लिए राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में भी काम किया है।
उन्होंने कहा, मैं 1970 के दशक के मध्य में जम्मू और कश्मीर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुआ, जब 8 अगस्त 1953 के बाद से राज्य में इसके चेकर इतिहास (खराब हालात) को देखते हुए पार्टी के साथ जुड़ना वर्जित था। उन्होंने कहा कि 1980 में आईवाईसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उन्हें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य के रूप में राजीव गांधी के नेतृत्व में भारतीय युवा कांग्रेस में शामिल करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा, मुझे 1980 के दशक के मध्य से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रत्येक अध्यक्ष के साथ एआईसीसी में महासचिव के रूप में सेवा करने का अवसर मिला है।