बेघरों और भिखारियों को लेकर बंबई उच्च न्यायालय ने कहा कि इन्हें भी देश के लिए कुछ काम करना चाहिए । कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोगों को राज्य ही सबकुछ उपलब्ध नहीं करा सकता। कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी जिसमें बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) को शहर में बेघर व्यक्तियों, भिखारियों और गरीबों को तीन वक्त का भोजन, पीने का पानी, आश्रय और स्वच्छ सार्वजनिक शौचालय उपलब्ध कराने का निर्देश देने का अनुरोध किया था।
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए बृजेश आर्य की उस जनहित याचिका का निपटारा कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता ने अदालत से बेघर व्यक्तियों, भिखारियों और गरीबों को लेकर मांग किया गया था।
बीएमसी ने अदालत को सूचित किया कि गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) की मदद से पूरी मुंबई में ऐसे लोगों को भोजन और समाज के इस वर्ग की महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन दिया जा रहा है। अदालत ने बीएमसी की इस दलील को मानते हुए कहा भोजन और सामग्री वितरण के संबंध में आगे निर्देश देने की आवश्यकता नहीं है। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘उन्हें (बेघर व्यक्तियों को) भी देश के लिए कोई काम करना चाहिए। हर कोई काम कर रहा है। सबकुछ राज्य द्वारा ही नहीं दिया जा सकता है। आप (याचिकाकर्ता) सिर्फ समाज के इस वर्ग की आबादी बढ़ा रहे हैं।’’
अदालत ने याचिकाकर्ता पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर याचिका में किये गये सभी अनुरोध को मान लिया जाये तो यह ऐसा होगा मानो ‘‘लोगों को काम नहीं करने का न्योता देना।’’ अदालत ने अपने फैसले में कहा कि शहर में सार्वजनिक शौचालय हैं और पूरे शहर में इनके इस्तेमाल के लिए मामूली शुल्क लिया जाता है।
अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को बेघरों को ऐसी सुविधाएं निशुल्क इस्तेमाल की अनुमति पर विचार करने को कहा। अदालत ने यह भी कहा कि याचिका में विस्तार से नहीं बताया गया कि बेघर कौन हैं, शहर में बेघरों की आबादी का भी जिक्र नहीं किया गया है।