कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया कि बागी विधायकों के इस्तीफे के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष को नोटिस दिए बगैर ही आदेश पारित किया था। कुमारस्वामी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि इन बागी विधायकों की याचिका पर कोर्ट को विचार नहीं करना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि इन विधायकों ने राज्य सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं लेकिन इसके बावजूद उनका पक्ष सुने बगैर ही आदेश पारित किया गया। धवन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ के समक्ष बागी विधायकों और विधान सभा अध्यक्ष की याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मुख्यमंत्री की ओर से पक्ष रख रहे थे।
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धवन ने कहा कि बागी विधायकों में से एक विधायक पर पोंजी योजना में संलिप्त होने का आरोप है और इसके लिए ‘‘हमारे ऊपर आरोप लगाया जा रहा है’’। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष को स्वंय को इस तथ्य के बारे में संतुष्ट करना होगा कि इन विधायकों ने स्वेच्छा से इस्तीफे दिए हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जब दूसरे पक्ष को सुने बगैर ही आदेश पारित कर दिया तो ऐसी स्थिति में अध्यक्ष क्या कर सकता है।
विधान सभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि उनके मुवक्किल को याचिका की प्रति नहीं दी गई। उन्होंने कहा कि आठ बागी विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही के लिए याचिका दायर की गई है और ‘‘अध्यक्ष पहले विधायकों की अयोग्यता के मामले में निर्णय लेने के लिए बाध्य है।’’
इससे पहले, सुनवाई के दौरान पीठ ने अध्यक्ष से सवाल किया कि क्या उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती देने का अधिकार है। बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि इस्तीफों पर फैसला लेने के लिए अध्यक्ष को एक या दो दिन का समय दिया जा सकता है और यदि वह इस अवधि में निर्णय नहीं लेते हैं तो उनके खिलाफ अवमानना की नोटिस दिया जा सकता है।
रोहतगी ने कहा कि अध्यक्ष ने सुप्रीम कोर्ट पहुंचने के लिए बागी विधायकों की मंशा पर सवाल किये हैं और मीडिया की मौजूदगी में उनसे कहा , ‘‘गो टु हेल।’ उन्होंने कहा कि इस्तीफों के मुद्दे को लंबित रखने के पीछे उनकी मंशा इन विधायकों को पार्टी की व्हिप का पालन करने के लिए बाध्य करना है। रोहतगी ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष ने उनके इस्तीफा देने के फैसलों पर अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया है जबकि इस्तीफों को स्वीकार करने के संबंध में उन्हें कोई छूट नहीं प्राप्त है।
कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि अध्यक्ष का पद संवैधानिक है और बागी विधायकों को अयोग्य घोषित करने के लिए पेश याचिका पर फैसला करने के लिए वह सांविधानिक रूप से बाध्य हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अध्यक्ष विधान सभा के बहुत ही वरिष्ठ सदस्य हैं। वह सांविधानिक प्रावधानों को जानते हैं। उन्हें इस तरह से बदनाम नहीं किया जा सकता।