सोहना : मुख्यमंत्री मनोहर लाल सरकार शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुविधाओं पर जोर दे रही है। भरपूर संसाधनों की उपलब्धता के दावे हो रहे है लेकिन धरातल पर सच्चाई इसके विपरीत है। सही से रख-रखाव ना होने से कीमती चीजें स्कूलों और अस्पतालों में धूल फांक रही है। पहले बात शिक्षा विभाग की करने, लाखों की कीमत से शिक्षा विभाग ने 8 वर्ष पहले सोहना समेत जिले के 126 विद्यालयों में जरनेटर लगाए थे लेकिन आज उनमें से 98 प्रतिशत जरनेटर खराब हालत में पड़े है। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब तपती गर्मी में बिजली की समस्या बनेगी तो ऐसे में बिना जरनेटर के बच्चों को बिना पंखों के ही पसीने में तर-बतर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ेगी। विद्यालयों में जरनेटर का उददेश्य कम्पयूटर लैब व बिजली की आपूर्ति को सुनिश्चित बनाना था। इसलिए प्रत्येक जरनेटर एक लाख रुपए की लागत से खरीदा गया लेकिन सरकारी विद्यालय अब इनका इस्तेमाल ही नही कर पा रहे है।
हालांकि स्कूलों में जरनेटर उपलब्ध कराने पर शुरूआती दौर में एक जूनियर इंजीनियर अधिकारी तैनात किया गया, जो सभी स्कूलों में जरनेटर से संबंधित समस्याओं की जांच कर निवारण करता था लेकिन अब कोई भी नोडल अधिकारी नही है। जानकारी लेने पर जिला विज्ञान विशेषज्ञ और जरनेटर प्रोग्राम के तहत स्कूलों की को-आर्डिनेटर सुनीता अरोड़ा ने बताया कि सोहना समेत जिले के सैकेंडरी और सीनियर सैकेंडरी 126 सरकारी स्कूलों में एक-एक जरनेटर लगाया गया था। सभी सरकारी स्कूलों को जरनेटरों के रख-रखाव के लिए कुछ समय पहले पहले चरण में साढ़े 7 हजार रुपए और दूसरे चरण में 20 हजार रुपए का अनुदान दिया गया लेकिन स्कूल मुखियाओं को यह भान नही हो पाया कि यह फंड किस श्रेणी में आया है। इसलिए उन्होने इस फंड को दूसरे कार्यों के तहत खर्च कर दिया।
शहर सोहना स्थित सीनियर सैकेंडरी कन्या विद्यालय की प्रधानाचार्या सुनील कुमार ने बताया कि उनके विद्यालय में बिजली की समस्या हमेशा एक मुददा रहा है। उनके पास एक जनसेट है लेकिन वह काम नही करता है। गांव बादशाहपुर स्थित सीनियर सैकेंडरी स्कूल के शिक्षक विनोद मलिक बताते है कि उन्होने जरनेटर के रख-रखाव के लिए कुछ धनराशि प्राप्त की थी। जिससे उन्होने जरनेटर में खराब बैटरी को बदलवा लिया। कुछ दिनों में ही जरनेटर फिर से खराब हो गया। गांव ग्वालपहाड़ी स्थित सीनियर सैकेंडरी स्कूल की प्रधानाचार्या निर्मल ने कहा कि जरनेटर काम ना करने से धूल फांक रहे है लेकिन वह क्या करे, कुछ समझ नही आ रहा। गर्मियां शुरू हो गई है। गर्मियों में पानी की किल्लत शुरू हो जाती है।
अब बात करे शहर सोहना के सरकारी अस्पताल की तो सोहना शहर के सरकारी अस्पताल में वर्षों पहले आई ईसीजी मशीन एक कोने में पड़ी-पड़ी धूल फांक रही है। अस्पताल में लाखों रुपए की लागत से लगाई गई एक्स-ेरे मशीन लैब टैक्नीशियन के ना होने से रोगियों को मुंह चिढ़ाती नजर आ रही है। अस्पताल का रक्त संग्रह केन्द्र अपने उदघाटन वाले दिन से आज तक बंद पड़ा जरूरतमंदों के लिए नाकारा साबित हो रहा है। क्षेत्र में बढ़ती आबादी और एनसीआर क्षेत्र का सोहना प्रमुख शहर होने के नाते यहां पर सामाजिक संस्थाएं और जागरूक लोग ट्रामा सेंटर बनाए जाने की मांग वर्षों से उठा रहे है।
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– उमेश गुप्ता