दिल्ली हाई कोर्ट में सोमवार को एक याचिका दायर कर आप सरकार के उस आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें उसके तहत आने वाले सभी अस्पतालों के साथ ही निजी अस्पतालों को निर्देश दिया गया है कि इलाज के लिये सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी के “वास्तविक” निवासियों को ही भर्ती करें। याचिका में दावा किया गया है कि दिल्ली सरकार का सात जून का आदेश असंवैधानिक तथा “मानवता के खिलाफ” है।
आदेश में कहा गया, “महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत दिल्ली महामारी रोग,कोविड-19, कानून 2020 के तहत प्रदत्त शक्तियों का पालन करते हुए यह आदेश दिया जाता है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार के तहत संचालित होने वाले सभी अस्पताल और निजी अस्पताल तथा नर्सिंग होम यह सुनिश्चित करेंगे कि इलाज के लिये सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के निवासियों को भर्ती किया जाए।”
अर्थशास्त्री अभिजीत मिश्रा द्वारा दायर इस याचिका में दिल्ली सरकार के आदेश को रद्द करने और दिल्ली सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वह यहां के अस्पतालों में सभी को इलाज मुहैया कराए। अधिवक्ता पायल बहल के जरिये दायर की गई इस याचिका में कहा गया है कि दिल्ली सरकार का फैसला “बेहद भेदभाव पूर्ण” है और इससे भारत के नागरिकों के बीच भेदभाव पनपेगा।
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बता दें कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को कहा कि दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में केवल दिल्ली के लोगों का इलाज होगा। जबकि दिल्ली में स्थित केंद्र सरकार के अस्पतालों में सभी का इलाज होगा। उन्होंने कहा कि पिछले हफ्ते हमने दिल्ली के लोगों को पूछा था कि क्या दिल्ली के अस्पताल सभी राज्य के लिए खुलने चाहिए?
तो, 90% लोगों का कहना है कि जब तक कोरोना है तब तक दिल्ली के अस्पताल दिल्ली के लोगों के लिए ही आरक्षित होने चाहिए। दिल्ली सरकार के और प्राइवेट अस्पताल दिल्ली के लिए आरक्षित रहेंगे। केंद्र सरकार के अस्पताल सभी देशवासियों के लिए खुले रहेंगे।