इस देश में ऐसी कई लाख बेटियां होंगी जो अपने पिता की प्रोपर्टी से वंचित हैं। मेरा मानना है कि सम्पत्ति कानूनन अगर किसी बेटी या बेटे के नाम है तो उसमें कोई अधिकार की बात नहीं है, क्योंकि यह सम्पत्ति किसी के भी बुरे और भले वक्त में काम आती है, लेकिन यह भी सच है कि हमारे यहां पैैैतृक सम्पत्ति को लेकर जितने विवाद सगे भाइयों में होते आए हैं उनकी संख्या करोड़ों में है। और अनेक कोर्टों में केस चल रहे हैं। जब सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कई कानूनों का हवाला देतेे हुए फैसला सुनाया तो मैं उनकी कायल हो गई। पूरा देश ही इस ऐतिहासिक फैसले का कायल हुआ होगा, जिसमें उन्होंने कहा है कि-
‘‘बेटा तब तक बेटा है जब तक उसे पत्नी नहीं मिलती, लेकिन बेटी तो जीवन पर्यंत बेटी रहती है। बेटा क्या कहता है क्या नहीं कहता यह उसका अपने पिता के साथ रिश्ता है, परन्तु बेटी तो सारी जिन्दगी अपने पिता के साथ भावनात्मक रूप से बेटे से कहीं ज्यादा जुड़ी रहती है।’’
इस वाक्य में बहुत कुछ कह दिया गया है। यह बात सच है कि मैंने आज भी ऐसी बेटियां देखी हैं जो शादी के दिन विदाई से लेकर अब तक हर रोज अपने पिता को जब तक गुड मार्निंग न कह लें तब तक वह अपना कामकाज शुरू नहीं करतीं। उन्हें अपने पिता से बात करके एक तृप्ति मिलती है। हालांकि मावां ठंडियां छावां कहकर मां और बेटी के पवित्र रिश्ते की ऊंचाई को स्पष्ट किया गया है, लेकिन यह भी सच है कि इस रिश्ते को अगर अपने प्यार से, दुलार से और संस्कार से सींचता है तो वह पिता ही है। यह बात सबसे गहराई से अगर कोई समझती है तो उसका नाम बेटी है। देश की क्या दुनिया की हर बेटी पिता के लिए अपने इस रिश्ते को समझती है। हमारे यहां तो बेटियां इतनी लोकलाज का पालन करने वाली हैं कि वह खुद कभी प्रोपर्टी की मांग पिता से नहीं करतीं क्योंकि वह तो यह कहती हैं कि पिता ने हमें बहुत प्यार दिया है। बहरहाल देश में दहेज के चक्कर में अगर मामले कोर्ट तक पहुंचते हैं तो इस पैैतृक सम्पत्ति की वजह आसानी से समझी जा सकती है। ससुराल की चल-अचल सम्पत्ति से जुड़े किसी वाद-विवाद की बात हम नहीं कर रहे लेकिन यह तय है कि बेटियां कितनी भी कटुता विवाहित जीवन में झेल लें परन्तु अपने पिता से प्रोपर्टी की मांग नहीं करतीं, लेकिन अगर एक ससुराल में किसी बेटी को बहू के रूप में कठिन हालात में कुछ न मिल रहा हो तो वह अपने पिता से अब बराबरी का हक मांग सकती है परन्तु यहां मैं यह भी कहना चाहूंगी कि हर बेटी किसी की बहू है, हर बहू किसी की बेटी, तो बहुएं जैसे अपने मां-बाप के लिए करती हैं, वैसे ही सास-ससुर के लिए क्यों नहीं क्योंकि मैं बुजुर्गों का बहुत बड़ा काम करती हूं, अक्सर यही शिकायत मिलती है और देखने को मिलता है।
यह सच है कि देश में पिता की सम्पत्ति पर सबसे ज्यादा हक अगर किसी ने जताया है तो वह भाई ही है। कौरवों
-पांडवों की लड़ाई सबके सामने है। जमाना कारपोरेट का है। सबने अम्बानी परिवार के यहां विवाद देखा तो पोंटी चड्ढा के यहां भी विवाद देखा। प्रोपर्टी को लेकर चला विवाद कहां से कहां पहुंचा सब जानते हैं लेकिन लाखों केस आज के जमाने में कितनी कोर्ट में चल रहे हैं जिसमें बेटियों ने कोई डिमांड तक नहीं की।
भाइयों में प्रोपर्टी और राज्यों को लेकर लड़ाइयां महाभारत काल से चल रही हैं और आज भी वैसी की वैसी या यूं कह लो बेहद निकृष्ट हो गई है। पहले धर्म युद्ध होते थे, लड़ते थे मगर फिर भी वचन और मर्यादाओं को रहकर। आज कलियुग है, लड़ाई का इतना स्तर गिर गया है कि लड़ाई के लिए कभी अपनी बड़ी लाचार मां को आगे रखकर लड़ते हैं, कभी बहन और बेटी को। ईश्वर बचाए ऐसे भाइयों से। आजकल जिसको आशीर्वाद देना हो दूधो नहाओ पूतो फलो नहीं कहते, बल्कि यह कहते हैं ईश्वर तुम्हें पूर्ण सुख बेटी के रूप में दे।
जीवन में माता-पिता के प्रति स्नेह की जड़ को बेटियां ही सींचती हैं, बेटे नहीं। फिर भी परिस्थितियां और हालात बदल रहे हैं, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को बेटों के बराबर प्रोपर्टी में समानता का हक दिया तो देश में यकीनन बेटा-बेटी के बीच जो बराबरी कागजों में नजर आती थी, अब व्यावहारिक रूप में दिखाई देगी। इसका तहे दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि यह फैसला बड़ी देरी से आया लेकिन एक ठोस व्यवस्था के रूप में आया है इसलिए भी पूरे देश की बेटियों और हर नागरिक को इसका स्वागत करना होगा।