पंजाब के बाद अब जम्मू-कश्मीर नशे की गिरफ्त में आ चुका है। सीमांत इलाकों में नशे की गिरफ्त में आ चुके युवाओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जम्मू समेत कश्मीर के कई जिलों में नशे के शिकार लोगों की संख्या काफी अधिक हो चुकी है। श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल के नशा मुक्ति केन्द्र में हर 12 मिनट बाद नशेड़ी युवा पहुंच रहे हैं। कश्मीर में अब आतंकवाद खत्म होने के कगार पर है और अब नशाखोरी जम्मू-कश्मीर प्रशासन और आवाम के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। ताजा अध्ययनों से पता चलता है कि राज्य के 17 से 30 वर्ष आयु वर्ग के युवा इसमें शामिल हैं। राज्य में वर्षों से चले आ रहे पाक प्रायोजित आतंकवाद के चलते खून-खराबे में एक पीढ़ी खो दी है और अब खतरा यह है कि नशीली दवाओं के कारण एक और पीढ़ी न खो दें। आतंकवाद कई तरीकों से विध्वंस, दर्द और मौत ही लाता है। राज्य में आतंकवाद से अब ज्यादा खतरा नशे के सौदागरों से है। पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन आतंकवाद को फैलाने के लिए और टैरर फंडिंग के लिए ड्रग्स की तस्करी का जाल फैलाते रहे हैं। पंजाब में भी पाकिस्तान ने आतंकवाद फैलाने के लिए ऐसा ही किया था। अब यही साजिशें जम्मू-कश्मीर में अंजाम दी जा रही हैं।
पंजाब में लगातार ड्रोन के जरिये ड्रग्स पहुंचाई जा रही है। हालांकि सुरक्षा बलों की सतर्कता के चलते नशे की काफी खेप पकड़ी जा रही है, लेिकन हर खेप को पकड़ा जाना सम्भव ही नहीं है। पहले ड्रग्स पंजाब पहुंचाई जाती है और फिर उन्हें जम्मू-कश्मीर पहुंचाया जाता है। ड्रग्स की सप्लाई के लिए महिलाओं तक का इस्तेमाल किया जा रहा है। नशे की खेप जब राज्य के स्थानीय सौदागरों के पास पहुंचती है तो उसके बाद युवाओं में इसकी बिक्री आसानी से हो जाती है। नशे के सौदागर, छोटे-मोटे विक्रेता और धंधे से जुड़े तमाम लोगों को पैसा पहुंच जाता है। जबकि युवाओं का जीवन खतरे में पड़ जाता है। एक अनुमान के अनुसार जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.3 करोड़ में से लगभग 7 लाख लोग नशे की लत का शिकार हो चुके हैं। राजौरी, पुंछ, सांभा, पुलवामा, अनंतनाग, शोपियां, बड़गाम और कई अन्य जिलों में ड्रग्स का नेटवर्क फैल चुका है। राज्य में युवाओं को नशे की लत की ओर ले जाने के कई कारण हैं। यह एक ज्ञात तथ्य है कि जहां भी सामाजिक, राजनीतिक अशांति होती है, वहां मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होती हैं। मानसिक स्वास्थ्यों के मुद्दों और नशीले पदार्थों के सेवन का आपस में गहरा संबंध है। तनाव मादक द्रव्यों के सेवन को जन्म देता है, जिससे युवा पीढ़ी मौत की ओर अग्रसर होती है।
जम्मू-कश्मीर में लम्बे समय से आतंकवाद, राजनीतिक उथल-पुथल और बेरोजगारी ने इस संकट को और भी गहरा बना दिया है। जम्मू-कश्मीर में नशीली दवाओं के उपयोग का पैटर्न खतरनाक अनुपात प्राप्त कर चुका है। जम्मू-कश्मीर कई दशकों से सैनीकृत संघर्ष का क्षेेत्र रहा है। सर्वविदित है कि हेरोइन, अफीम उत्पादक देश अफगानिस्तान से पाकिस्तान और फिर पाकिस्तान से भारत आती है। हालात यह है कि घाटी में सिगरेट पाने की तुलना में हेरोइन प्राप्त करना आसान है। राज्य में युवा लड़कों और लड़कियों का एक ऐसा समूह है जो नशीले पदार्थों के प्रभावों को समझे बिना दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। उन्हें लगता है कि नशा उन्हें आत्मविश्वास या अच्छी याददाश्त प्रदान करेंगे और उन्हें जीवन का आनंद मिलेगा। एक ऐसा भी समूह है जिन्हें कोई समस्या नहीं है फिर भी वे मौज-मस्ती के लिए इनका सेवन करते हैं। केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में मादक द्रव्यों के सेवन का प्रचलन बहुत अधिक है। अनुमानित 108000 पुरुष, 36000 महिलाएं भांग का उपयोग करते हैं। 5,34,000 पुरुष और 8000 महिलाएं ओपिओइड का उपयोग करते हैं। डेढ़ लाख से ज्यादा पुरुष और 10,000 महिलाएं शामक दवाओं का उपयोग करते हैं। युवा पीढ़ी कोकीन, हेरोइन और अन्य सिंथैटिक ड्रग्स का सेवन करते हैं।
राज्य के पुलिस महानिदेेशक दिलबाग सिंह का कहना है कि अगर इस चुनौती से नहीं निपटा गया तो इससे आवाम को बहुत बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। अब सवाल यह है कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। यद्यपि पुलिस ड्रग पैडलर्स पर शिकंजा कस रही है लेकिन पूरे नेटवर्क को तोड़ना काफी मुश्किल हो रहा है। हालांकि प्रशासन कई कदम उठा रहा है और नशे के आदी लोगों के पुनर्वास के लिए उपचार और जागरूकता अभियान भी चलाए हुए हैं। सबसे बड़ी चुनौती कश्मीर के युवाओं को रोजगार देने की है। केन्द्र की मोदी सरकार और गृहमंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं लेकिन यह चुनौती इतनी बड़ी है कि इस पर नियंत्रण पाने के लिए इसे महज कानून व्यवस्था का मुद्दा नहीं बल्कि एक सामाजिक महामारी के तौर पर देखना होगा। कश्मीर के आवाम को भी अपनी पीढ़ी को बचाने के लिए हर सम्भव प्रयास करने होंगे। नशे की लत को रोकने के लिए आवाम को गहन चिंतन मंथन करना होगा और अपने बच्चों को इससे दूर रखने के उपाय करने होंगे। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो युवाओं का भविष्य अंधकार में चला जाएगा।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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