देश में लगातार बढ़ रहे विमान हादसों ने विमान में सफर करने वाले यात्रियों की चिन्ता बढ़ा दी है। घर से हवाई अड्डे के लिए निकलते वक्त वह सोचने को विवश हैं कि पता नहीं वह घर सुरक्षित लौटेंगे या नहीं। हवा में उन्हें बचाने के लिए कोई देवदूत नहीं आएगा, आएंगे तो केवल यमदूत। पता नहीं ऐसे कितने ही विचार उनके दिमाग में आते हैं। दुनियाभर में खतरों की समीक्षा के आधार पर सुरक्षा उपायों को लागू करने के कारण हवाई यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए नागर विमानन महानिदेशालय सुरक्षा पद्धतियों को लगातार उन्नत और परिभाषित करता है।
यह नागर विमानन मंत्रालय के अधीनस्थ एक नियामक संस्था है। यह निदेशालय विमान दुर्घटनाओं तथा अन्य संबंधित घटनाओं की जांच करता है। नागर विमानन महानिदेशालय ने इंडिगो और गो एयर कंपनियों के नियो विमानों को उड़ान भरने से रोक दिया है क्योंकि इन विमानों के इंजन लगातार खराब हो रहे हैं। यह प्रतिबंध अहमदाबाद से लखनऊ जा रहे विमान के इंजन में खराबी के बाद लगाया गया, जिससे यात्रियों की जान खतरे में पड़ गई थी। दोनों एयरलाइनों को अपनी उड़ानें रद्द करनी पड़ीं जिससे कंपनियों में तो हलचल मची ही, यात्रियों को भी परेशानी उठानी पड़ रही है। जिन्दगी के मुकाबले थोड़ी परेशानी झेलना अच्छा है। यह सही है कि इंडिगो को एक सस्ती और किफायती एयरलाइन माना जाता है इसलिए 40 फीसदी यात्री इंडिगो आैैर दस फीसदी यात्री गो एयर का इस्तेमाल करते हैं।
इसका अर्थ यही है कि दोनों कंपनियों का उड़ान के बाजार पर 50 फीसदी कब्जा है। पूरी दुनिया की दस लाख उड़ानों में से किसी एक विमान का इंजन फेल होता है लेकिन हमारे देश में इंडिगो के विमानों का इंजन एक सप्ताह में औसतन एक बार फेल होता है। इंजन फेल होने की समस्या भी एक ही कंपनी एयर बस के विमानों में आ रही है। इस कंपनी के ए 320-नियो जेट विमानों में लगा पी एंड व्हिटनी 1100 नाम का इंजन खराब हो रहा है। एक इंजन खराब हो जाए तो दूसरे इंजन के सहारे विमान उड़ सकता है। इसे कहते हैं जुगाड़ और जुगाड़ कभी सुरक्षित नहीं होता। इंडिगो को एक इंजन की खराबी वाले विमानों को नागर विमानन महानिदेशालय ने उड़ान भरने की अनुमति इस शर्त पर दी थी कि उनकी उड़ान केवल दो घंटे की होगी। दो घंटों में आपात लैंडिंग करानी पड़ती है।
मार्च 2016 से सितम्बर 2017 तक यानी 18 महीनों के दौरान इंडिगो के विमानों के इंजन में 69 बार खराबी आई। स्पष्ट है कि यात्रियों की जिन्दगी से खिलवाड़ किया जा रहा था। रन-वे को मौत का रन-वे बनाया जा रहा था। नागर विमानन महानिदेशालय इतने समय खामोश क्यों रहा? उड्डयन क्षेत्र में भारत आज भी दूसरे देशों से काफी पीछे है। नई सुविधाएं, आधुनिक तामझाम, यात्रा में सुगमता की गारंटी उस समय धरी की धरी रह जाती है जब विमान उड़ने से पहले अपनी अव्यवस्था बयां कर देता है। इंडियन एयरलाइन्स अगर काफी घाटे में है तो फिर उपाय क्यों नहीं किए जाते। लोग क्यों अन्य एयरलाइन्स की उड़ानों को पसंद करते हैं।
हादसे तकनीकी खामियों के साथ-साथ पायलटों की लापरवाही से भी होते हैं। कभी हवाई अड्डों पर, रन-वे पर दो विमान आमने-सामने आ जाते हैं, कभी इंजन से उड़ान भरने से पहले ही धुआं उठने लगता है। कभी हवा में ही विमानों का इंजन बंद हो जाता है। ऐसी घटनाओं ने न केवल विमानन कंपनियों को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है बल्कि महानिदेशालय की कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। ज्यादातर हादसों को तकनीकी खामी बना दिया जाता है लेकिन ऐसे हादसों में मानवीय चूक भी बहुत बड़ी भूमिका निभाती है।
उड़ान के दौरान शराब पीने पर पायलटों को निलम्बित भी किया जा चुका है। पायलटों की थोड़ी सी चूक कई लोगों की जान ले सकती है। भारत में लगातार विमान हादसे हो रहे हैं और सैकड़ों मौत के मुंह में समा चुके हैं। सवाल यह उठता है कि विमान यात्रा को सुरक्षित कैसे बनाया जाए। जब तक सुरक्षा मानकाें का अक्षरशः पालन नहीं किया जाता तब तक विमान यात्राएं सुरक्षित नहीं रह सकतीं।
जब भी कोई चूक सामने आती है उसे न तो विमानन कंपनियां स्वीकार करती हैं और न ही सरकारी तंत्र। भारत में अंतर्राष्ट्रीय वैश्विक मानकों के अनुरूप दिल्ली, मुम्बई जैसे दो-तीन ही हवाई अड्डे हैं जबकि देश में उड्डयन क्षेत्र में विस्तार की बहुत संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र सालाना 14 फीसद की दर से बढ़ रहा है।
सरकार छोटे शहरों को भी उड़ानों से जोड़ने की कोशिश कर रही है लेकिन सवाल उठता है कि अगर विमान यात्रा सुरक्षित ही नहीं तो फिर विमान केवल सजावटी खिलौना ही बन जाएंगे। उड्डयन क्षेत्र में ईमानदारी से काम करने की जरूरत है। इस क्षेत्र में दक्ष लोगों की जरूरत है। दक्ष पायलट, दक्ष तकनीकी स्टाफ ही विमान यात्राओं को सुरक्षित बना सकते हैं। विमानों का रखरखाव ठीक से हो, समय-समय पर उनकी जांच हो ताकि यात्री भयमुक्त होकर उड़ान भर सकें। हादसों से सबक लेना बहुत जरूरी है।