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गोल्ड ही गोल्ड….

हमारे यहां सोना बहुत महंगा है, लेकिन हमारे खिलाड़ी एशियाड में सोने की बरसात कर रहे हैं। अगर हिम्मत और लगन हो तो देश के बेटे और बेटियां सबकुछ कर सकते हैं और देश का तिरंगा दुनिया के नक्शे पर सबसे ऊंचा फहरा सकते हैं। खेलों की अपनी ही दुनिया है और आज की तारीख में अगर आप खेलों में कुछ असाधारण कर रहे हैं तो समझ लो कि आप एक महाशक्ति हैं। खेलों की दुनिया में भारत ने अपनी अलग ही पहचान बनाई है। 1952 में नई दिल्ली में हुए पहले एशियाड से लेकर अब चीन एशियाड तक भारत खेल महाशक्ति बन चुका है। कल तक एशियाड या ओलंपिक में चीन अपने आपको बहुत ताकतवर समझा करता था। भारत कभी बहुत पीछे हुआ करता था। आज की तारीख में वह इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहा है और उसके पदकों की संख्या सौ पार हो चुकी है। एशियाड में वह टॉप फोर में शामिल है। इसका श्रेय भारतीय टीम और उसके एक-एक खिलाड़ी को मिलना ही चाहिए। अब तक भारत के खाते में 28 गोल्ड आ चुके हैं इतना ही नहीं 38 सिल्वर और 41 कांस्य समेत वह कुल 107 पदक जीत चुका है। चीन, जापान, कोरिया के बाद अब भारत बराबर एक ताकतवर पहचान है। हर इवेंट में भारत प्रतिद्वं​​िद्वयों के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा कर रहा है। सबसे बड़ी बात यह है कि लड़कियों की हिस्सेदारी बढ़ रही है और विशेष रूप से हरियाणा ने चीन एशियाड में अपनी बड़ी उपलब्धि दर्ज कराई है जो 105 मैडल अब तक जीते गए हैं उसमें 25 पदक तो हरियाणा के खिलाडि़यों ने दिलाए हैं जिसमें 7 गोल्ड, 3 सिल्वर और 11 कांस्य पदक शामिल हैं। भाला फैंक में ओलंपिक का गोल्ड जीत चुके नीरज चोपड़ा एशियाड का गोल्ड मेडल भी अपने नाम कर चुके हैं और वह भी नए रिकॉर्ड के साथ। तीरंदाजी में ज्योति और ओजस ने गोल्ड जीत कर तहलका मचाया, तो वहीं कबड्डी के दोनों गोल्ड पुरुष और महिला टीम ने जीत लिए। क्रिकेट का गोल्ड भी भारतीय बेटों के नाम रहा।
छोटे-छोटे शहरों से अपनी खास पहचान बनाते हुए लड़के-लड़कियां खून-पसीना बहाकर अब खेलों में रुचि ले रहे हैं और पिछले पन्द्रह साल से भारत दुनियाभर के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। तीरंदाज हो या टेनिस, बैडमिंटन हो या निशानेबाजी, घुड़सवारी हो या कुश्ती, भारोत्तोलन हो या क्रिकेट या फिर एथलिट हर तरफ भारत के खिलाड़ी अपने प्रतिद्वं​​िद्वयों को बड़ी चुनौती दे रहे हैं। हमारा इससे पहले सर्वाधिक 16 स्वर्ण पदकों का रिकार्ड टूट चुका है। देश के खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने चीन एशियाड से पहले ही कह दिया था कि इस बार पदकों का आंकड़ा सौ के पार जायेगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने खिलाड़ियों की ऐतिहासिक जीत पर अपनी बधाई दी है।
निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी युवाओं को खेलों में आगे आने के लिए प्रेरित कर रहे थे और इसी मंत्र को खेल मंत्री के रूप में अनुराग ठाकुर ने खिलाड़ियों को प्रमोट किया और प्रशिक्षण से लेकर परफार्मेंस तक ध्यान दिया, परिणाम देश के सामने है। गृहमंत्री अमित शाह ने भी अपनी बधाई देकर ​खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन किया है। खिलाड़ियों को पूरा देश बधाई दे रहा है।
इस कड़ी में बड़ी बात फरीदकोट में एमबीबीएस कर रही 23 साल की सिफट कौर का जांबाज प्रदर्शन है जिसने डाक्टरी की पढ़ाई छोड़कर निशानेबाजी को चुना और 50 मीटर राइफल स्पर्धा का गोल्ड जीत लिया और विश्व रिकार्ड भी बनाया उसके जज्बे को सलाम है। इसी कड़ी में वुशू स्पर्धा में मणिपुर की रोशीबिना देवी ने सिल्वर मेडल जीतकर सिद्ध किया कि उसका प्रदर्शन हिंसा से कहीं ऊपर है। कुल मिलाकर मैं इतना कह सकती हूं कि अगर खिलाड़ी प्रेक्टिस करें और सरकार उनको मौके दे रही है तो माता-पिता को भी बच्चों को खेलों में आगे आने के लिए प्रमोट करना चाहिए वरना जब हम स्कूल कॉलेज में थे तब खेल जगत में लड़कियां ज्यादा नहीं आती थी लेकिन ठीक कहा है कि हमारी बेटियां बेटो से कम है क्या। इस कड़ी में मैं हरियाणा का विशेष रूप से उल्लेख करना चाहूंगी जिसके खिलाडि़यों ने कुल 25 पदक जीते हैं। इसमें ज्यादातर व्यक्तिगत मेडल हैं और टीम स्पर्धाएं भी हैं। तभी तो सीएम मनोहर लाल ने खिलाडि़यों को विशेष रूप से बधाई भी दी है। हरियाणा के विशेष रूप से नीरज चोपड़ा के अलावा शिवा नरवाल, आदर्श सिंह, अनीश भानवाला, रिदम सागवान, मनु भाकर, पलक, रमीता, सैफाली वर्मा, प्रविन्द्र सिंह, आर्यन पाल, सीमा पुनिया, प्रीति लांबा, प्रीति पंवार, प्रवीन हुड्डा, नरेंद्र मेरवाल, सुनील कुमार, अंतिम पंघाल समेत लगभग 25 मेडल देश की झोली में डाल चुके हैं। कोई फरीदाबाद से है, कोई करनाल से है, झज्जर, कुरुक्षेत्र, रोहतक, यमुनानगर, सोनीपत, हिसार यानि लगभग हर शहर से हरियाणा के खिलाड़ियों ने मनोहर लाल सरकार द्वारा स्पोट्र्स प्रमोशन की नीतियों के तहत जमकर पसीना बहाया और खिलाड़ियों ने अपना राष्ट्रीय धर्म निभाकर भारत का नाम रोशन किया। बड़ी बात यह है कि हमारी पुरुष हॉकी टीम ने जो शान बनाई और फाइनल में जापान को 5-1 से हराया यह स्वर्ण पदक हमारी पुरानी शान के बरकरार रखने की कहानी है। हो सकता है कि सभी खिलाडिय़ों के नाम यहां ना आ पाए हों लेकिन भारत के नाम से जब हम जुड़ जाते हैं तो फिर देश पहले है। हर खिलाड़ी के जज्बे को कोटि-कोटि नमन है और भारत के इस स्वर्णिम प्रदर्शन को हमारी इस कलम का सैल्यूट है। उम्मीद की जानी चाहिए कि एशियाड के बाद ओलंपिक या फिर विश्व प्रतियोगिता कोई भी हो भारत की शान बनी रहेगी। आजकल क्रिकेट का वर्ल्ड कप भी शुरू हो गया है तो हम भारत की हर क्षेत्र में जीत की कामना करते हैं।

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