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सुप्रीम कोर्ट की शानदार पहल

भारत के विकास और उन्नति में महिलाओं का योगदान अतुल्य है। इतिहास में ही महिलाओं ने विशिष्ट भूमिका निभाई है। अनेक महिलाएं भारतीय नारीवाद की जननी कहलाईं

भारत के विकास और उन्नति में महिलाओं का योगदान अतुल्य है। इतिहास में ही महिलाओं ने विशिष्ट भूमिका निभाई है। अनेक महिलाएं भारतीय नारीवाद की जननी कहलाईं। ब्रिटिश राज के दौरान भी कई समाज सुधारकों ने महिलाओं के अधिकारों और उत्थान के​ लिए लड़ाई लड़ी। समाज सुधारकों के संघर्ष के चलते ही सती प्रथा खत्म हुई एवं विधवाओं की स्थिति में सुधार आया, जिसके चलते विधवा पुनर्विवाह अधिनियम बनाया गया। धीरे-धीरे महिलाएं सशक्त होती गईं। दुनिया में हो रहे बदलावों, जागरूकता, शिक्षा एवं समय-समय पर दुनियाभर में हुए कई आंदोलनों के साथ दुनियाभर में महिलाओं के अधिकारों की बात शुरू हुई जिससे भारत भी अछूता नहीं रहा। सदियों से लेकर आज तक महिलाओं के अधिकारों को संस्थागत, कानूनी एवं स्थानीय रीति-रिवाजों द्वारा अत्यधिक समर्थन मिला और देखते ही देखते महिलाओं को हर स्तर पर एक पहचान मिलने लगी और आज हमारे देश में महिलाओं को कानून के तहत ​विभिन्न अधिकार प्रदान किए जा चुके हैं। समय-समय पर देश की शीर्ष अदालत ने ऐतिहासिक फैसले देते हुए महिलाओं के अधिकारों को पहले से कहीं अधिक पुख्ता बनाया। मर्यादा और शालीनता महिलाओं का निजी अधिकार माना जाता है परन्तु महिलाओं की शालीनता और गरिमा के साथ न केवल शारीरिक खिलवाड़ होता आया है, बल्कि शब्दों से भी उनसे खिलवाड़ किया जाता है। भारतीय महिलाओं को पुरुष  प्रधान, समाज वर्ग और धर्म के उत्पीड़न के तहत विकसित होने में बेहद कठिन समय लगा है। महिला की गरिमा और प्रतिष्ठा से शब्दों से भी खिलवाड़ न हो इसके​ लिए खामोशी तोड़ने का समय है और यह खामोशी देश की शीर्ष अदालत ने तोड़ी है।
देश की अदालतों में अब ऐसे जेंडर स्टीरियोटाइप शब्दों का इस्तेमाल नहीं होगा जो महिलाओं के लिए आपत्तिजनक साबित होते हैं। ना तो ऐसे शब्दों के जरिये दलीलें दी जाएंगी और ना ही इनका इस्तेमाल जज अपने फैसले में कर पाएंगे। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक जेंडर स्टीरियोटाइप कॉम्बैट हैंडबुक लॉन्च की है, जिसमें ऐसे शब्दों का उदाहरण और उनका रिप्लेसमेंट सुझाया गया है। इससे जजों और वकीलों को अपने फैसलों और दलीलों में जेंडर रिलेटिड अनुचित शब्दों के इस्तेमाल से बचाव में मदद मिलेगी। यह हैंडबुक भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने लॉन्च की। उन्होंने इस दौरान कहा कि इस हैंडबुक से जजों और वकीलों को यह समझने में आसानी होगी कि कौन से शब्द स्टीरियोटाइप (रूढ़िवादी) हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है।
तीस पृष्ठ की हैंडबुक को कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य, रिटायर्ड ​जस्टिस प्रभा  श्रीदेवन, जस्टिस गीता मित्तल, प्रोफैसर झूमा सेन ने काफी चिंतन-मंथन के बाद तैयार किया।  इस हैंडबुक में 30 पन्नों पर यह पूरी जानकारी दी गई है कि पहले कोर्ट में यूज किए जा रहे कौन से शब्द गलत हैं, वे गलत क्यों हैं और इनसे कानून की परिभाषा कैसे बिगड़ सकती है। ऐसे शब्दों में अफेयर की जगह शादी से इतर रिश्ता, प्रास्टिट्यूट/हुकर या वेश्या की जगह सेक्स वर्कर, बास्टर्ड की जगह ऐसा बच्चा जिसके माता-पिता ने आपस में शादी नहीं की, बिन ब्याही मां की जगह मां, चाइल्ड प्रास्टिट्यूट की जगह तस्करी करके लाया बच्चा जैसे शब्द सुझाए गए हैं। हैंडबुक में कर्त्तव्यनिष्ठ पत्नी, आज्ञाकारी पत्नी, फूहड़, स्पिनस्टर जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी निषेध बताया गया है।
इस हैंडबुक का मकसद न्यायपालिका से जुड़े लोगों को जागरूक करना है और यह बताना है कि किस तरह अंजाने में रुढ़िवादिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। रुढ़िवादी शब्दों का इस्तेमाल संविधान के उस सिद्धांत के​ खिलाफ है जिसमें हर व्यक्ति के लिए कानून को समान और निष्पक्ष रूप से लागू होने की परिकल्पना की गई है। ऐसे तर्कों और शब्दों का उपयोग अदालत में महिलाओं की विशिष्टता, स्वायत्तता और गरिमा को आघात पहुंचा सकता है। सर्वोच्च न्याय पालिका ने शब्दों की नग्नता को ढकने का प्रयास किया है। इस तरह सुप्रीम कोर्ट ने एक शानदार पहल की है। इसका अनुकरण केवल अदालतों में ही नहीं बल्कि समाज को भी करना होगा। हम सभी लोगों की इच्छा यह होती है कि दूसरे लोग जब भी हमें बुलाएं तो सम्मान सूचक शब्दों का इस्तेमाल करें लेकिन समाज में कई लोग मर्यादाहीन शब्दों का इस्तेमाल करने लगे हैं। वे नहीं समझते कि यह ​शब्द विष के समान है। समाज का भी यह कर्त्तव्य है कि वह शब्दों के महत्व को समझें तभी हम सभ्रांत समाज कहलाएंगे। ज्ञान, उपदेश, प्रवचन उस समय तक उपयोगी नहीं हैं जब तक हमारी आदतों में उनका प्रवेश न हो। अगर हर माता-पिता अपने बच्चों को महिलाओं का सम्मान करना सिखायें तो एक दिन ऐसा आएगा जब उन्हें बेटी की सुरक्षा का डर नहीं होगा। समाज की मानसिकता और पितृसतात्मक विचारों को बदलने की जरूरत है। महिलाओं को भी अपने कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए ताकि वे घर, कार्यस्थल या समाज में आप के साथ या किसी अन्य के साथ हुए अन्याय के​ खिलाफ लड़ सकें।

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