वैसे तो जीवन स्वयं एक बड़ी परीक्षा है। हमें कई बार गम्भीर परिस्थितियों में महत्वपूर्ण फैसले लेने पड़ते हैं। शिक्षा में तो परीक्षा का महत्व है ही लेकिन संकट काल में लिए गए फैसले भी परीक्षा की महत्ता को सिद्ध करते हैं। विश्वविद्यालयों आैर कालेजों के अंतिम वर्ष के छात्रों को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि बिना परीक्षा डिग्री नहीं मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने यूजीसी द्वारा परीक्षाएं कराने की योजना पर मुहर लगा दी है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि जो राज्य और विश्वविद्यालय परीक्षा टालना चाहते हैं तो उन्हें यूजीसी से अनुमति लेकर ऐसा करना चाहिए।
अब यह साफ है कि कोरोना काल में परीक्षा की डिग्रियां बांटने का कोई जरिया नहीं निकल सकता। अदालत ने अब सारी दुविधाएं खत्म कर दी हैं, बल्कि यह रेखांकित करने वाला भी है कि परीक्षाएं क्यों आवश्यक हैं। उन लोगों को इस फैसले को स्वीकार कर लेना चाहिए जो बेवजह आईआईटी और मेडिकल कालेज प्रवेश परीक्षाओं जेईई और नीट का विरोध कर रहे हैं। राजनीतिक दलों द्वारा भी परीक्षाओं के विरोध का कोई औचित्य नजर नहीं आता।
देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का पहले ही घोर संकट है। कालेज के छात्र-छात्राओं को बिना परीक्षा डिग्री देना सम्भव ही नहीं है। ऐसा करने से प्रतिभाओं का सही आकलन हो ही नहीं पाएगा। डिग्री में अंकों से ही छात्र-छात्राओं का भविष्य टिका होता है। वे इससे यह तय करते हैं कि उन्हें कौन सा क्षेत्र चुनना है। इसी तरह राष्ट्रीय महत्व की जेईई परीक्षाओं को टाला जाना भी उचित नहीं है। इन परीक्षाओं की तैयारी के लिए छात्रों ने कड़ी मेहनत की है, लाखों रुपए कोचिंग के लिए बहाये हैं। बार-बार परीक्षा टालने से न केवल उनकी मेहनत व्यर्थ ही चली जाएगी बल्कि पूरा वर्ष ही खराब हो जाएगा। जब देश में रेलें और बसें चल रही हैं, मैट्रो खुलने वाली है, मंडियां और बड़े बाजार खुल चुके हैं तो परीक्षाएं क्यों नहीं होनी चाहिएं।
राजनीतिक दलों का विरोध एक नौटंकी ही लगता है। वे यह समझ नहीं पा रहे कि अगर बिना परीक्षा डिग्रियां बांट दी गईं तो उस डिग्री पर कोरोना काल की डिग्री का ठप्पा लग जाएगा। किसी छात्र की मेधा शक्ति की पहचान नहीं होगी। भविष्य में नौकरियों के लिए इंटरव्यू के समय कोरोना डिग्री वालों को अलग से छांट लिया जाएगा कि कहीं ये कोरोना काल का तो नहीं है। इससे उन्हें भविष्य में नौकरी मिलने में मुश्किल होगी। उनकी योग्यता काे कमतर आंका जाएगा। छात्र देश का भविष्य हैं और हमें ऐसी स्थितियां नहीं बनानी चाहिएं, जिससे उन्हें भविष्य में दिक्कत का सामना करना पड़े। अगर हमें आत्मनिर्भर भारत बनाना है तो हमें शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ध्यान देना होगा।
आज सुबह ही मैं ट्वीट देख रहा था। एक ट्वीट में छात्रों के लिए बहुत बड़ा संदेश दिया गया।
-जहां हर चौथा सांसद बिना डिग्री के हो
जहां हर तीसरा विधायक बिना डिग्री के हो
वहां सत्ता से शिक्षा-परीक्षा क्या मांगे…
छात्र अब भी न सम्भले तो राजनीति अंधेरी सुरंग में चली जाएगी।
यह सही है कि कोरोना का संकट बहुत बड़ा है और इससे बेरोजगारी भी काफी फैली हुई है। बिना परीक्षा डिग्रियां बांट कर अब डिग्रीधारकों की फौज तो बढ़ा देंगे, इससे छात्रों का कोई फायदा नहीं होगा। जो लोग छात्रों के हितैषी बनकर सामने आ रहे हैं उन्होंने भी छात्रों के दिल की आवाज नहीं सुनी। परीक्षाओं को टालने के लिए विरोध में उतरे राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं को तो छात्रों की मुश्किलों को कम करने के लिए आगे आना चाहिए। यदि राष्ट्र ऐसी व्यवस्था कर सकता है कि कोरोना काल में कोई भूखा न सोये, अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मजदूरों तक खाने-पीने के पैकेट पहुंचते रहे हैं तो फिर छात्रों की परीक्षाओं के लिए व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती। कर्नाटक में तो लाखों स्कूली छात्रों की परीक्षाएं भी कोरोना काल में करवाई गईं। कहीं से भी कोई शिकायत नहीं मिली।
यह सही है कि देश के कई राज्यों में बाढ़ की स्थिति गम्भीर है। उन क्षेत्रों के विश्वविद्यालय और कालेज विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से बातचीत कर परीक्षाएं कुछ और दिन के लिए टलवा सकते हैं ताकि बाढ़ की स्थिति कुछ सुधर जाए और सार्वजनिक परिवहन सेवाएं शुरू हो जाएं। कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर ही परीक्षाएं नहीं कराने का फैसला कर लिया लेकिन अब उन्हें हर हाल में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं करानी होंगी। राज्यों के लिए विश्वविद्यालय परीक्षाएं और जेईई-नीट परीक्षाएं कराना बड़ी चुनौती जरूर है लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस चुनौती पर पार न पाया जा सके।