वर्ष 1980-81 में लालाजी बेहद बदल चुके थे। राजनीति तो एमरजैंसी के बाद ही उन्होंने छोड़ दी थी। अब विशुद्ध रूप से 82 वर्षीय दादाजी पत्रकारिता और समाज सेवा में जुड़ चुके थे। स्वामी गीतानन्द जी प्रमुख रूप से उनके साथी बन चुके थे। लालाजी हर धार्मिक प्रोग्रामों में जाते थे चाहे सिखों का हो, सनातनों का हो या गीतानन्द जी महाराज और निरंकारी, राधा स्वामी, जैन धर्म के समारोह हों, लालाजी को हर जगह बुलाया जाता था और लालाजी एक आर्य समाजी होते हुए सभी धर्मों का आदर करते थे और अपने ख्यालात वहां रखते थे।
1980-81 तक पंजाब केसरी हिंद समाचार ग्रुप का ‘फ्लैगशिप’ बन चुका था। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर में तो नम्बर वन था ही उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान में पंजाब केसरी ने अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे। इसीलिए लालाजी मुझे बार-बार याद दिलाया करते थे कि बेटा मैं तुम सबके लिए एक बहुत बड़ी रियासत छोड़ कर जा रहा हूं। बस आपस में लड़-झगड़ और पैसे के स्वार्थ या पुत्रों के मोह में इस रियासत को तोड़ मत देना। मैं उन्हें हमेशा आश्वासन देता कि दादाजी ऐसा नहीं होगा लेकिन लालाजी और रमेशजी की हत्या के उपरांत घर में पुत्रमोह, पैसों का स्वार्थ छा गया। यहां तक कि मैंने विरासत में लाला जी द्वारा दिए गए शेयर परिवार के लोगों में बांट दिए ताकि यह परिवार एकजुट रह सके। परन्तु रिश्तेदारों के लालच के आगे यह भी काम नहीं आया। अब आखिरकार हिंद समाचार परिवार पिछले तीन दशकाें से कोर्ट कचहरियों में धक्के खा रहा है। आखिर लालाजी का शक सही निकला।
लालाजी 1980 के दशक में गांव-गांव और शहर-शहर घूमते थे और समाज सुधारक के रूप में लोगों को समाज में कुरीतियों को छोड़ने की बातें किया करते थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो अब यह नारा दिया है कि ‘बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ’, लालाजी तो उस समय अपने भाषणों में लड़कियों की शिक्षा के विस्तार की बातें किया करते थे। लालाजी कहा करते थे कि शादियां सादी होनी चाहिएं। लड़की को तीन वस्त्रों में शादी करके घर लाओ। एक रुपये में शादी होनी चाहिए। दहेज के बिना और लड़के वाले केवल ग्यारह लोगों की बारात लेकर शादी में शामिल हों। अभी तक हमारे परिवार में खुद लालाजी, पूज्य पिता रमेशजी, मेरी और बेरे बड़े बेटे आदित्य की शादी आर्य समाज मन्दिर में एक रुपया शगुन, बिना दहेज और ग्यारह बंदों की बारात से ही हुई थी।
अब मैंने यह फैसला कर रखा है कि अपने घर में दो जुड़वां बेटों अर्जुन और आकाश की शादी भी एक रुपए शगुन, बिना दहेज और 11 बारातियों के साथ सादे ढंग से आर्य समाज मंदिर में ही होगी। कम से कम परिवार में मैं तो परम पूजनीय लालाजी और परम श्रद्धेय श्री रमेशजी द्वारा स्थापित सादी शादी की परंपरा को जारी रख सकूं। अब तो हमारे परिवार में भी शादियां केपटाऊन (दक्षिण अफ्रीका) में महंगी Destination Weddings में होने जा रही हैं। इससे पहले भी हमारे परिवार की दो शादियां दिल्ली के ‘फाइव स्टार’ होटलों में हुई हैं। यह क्या हो रहा है? यह क्या हो रहा है? शायद इस लेख के पश्चात अपनी झेंप मिटाने के लिए कैपटाउन की यह महंगी शादी किसी अन्य स्थान और देश में हो जाए?
इन सभी धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों के बीच लालाजी के पैन की धार भी कभी कम नहीं हुई। उस समय पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह थे। लालाजी ने ज्ञानी जी के विरुद्ध एक 20 किश्तों की लेखमाला लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘नादिरशाह और औरंगजेब की रूह ज्ञानी जैल सिंह में।’ इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। लालाजी ने इंदिरा जी के विरुद्ध एक लेखमाला में लिखा था ‘यह औरत देश को बर्बाद कर देगी’ और ‘एक तानाशाह और अत्याचारी औरत के हाथ में देश की बागडोर’। लालाजी ने अपनी शहादत तक अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया।
जब कभी लालाजी की व्यस्तताएं न होतीं तो उनके दफ्तर में पंजाब के अकाली नेता, हरियाणा के राजनीतिक नेता, हिमाचल और दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के प्रमुख राजनीतिक नेताओं का तांता लगा रहता। कई बार तो मैंने देखा कि तीन प्रदेशों के मुख्यमंत्री, कांग्रेस और विपक्ष के अध्यक्ष एक साथ बैठकर लालाजी के साथ चाय पीते और इकट्ठे मिलकर राजनीति की बातें होती। फिर 1977 में एक ऐसी घटना हुई जिसने न केवल लालाजी बल्कि पूरे पंजाब और देश की तकदीर को बदल डाला। उन दिनों इंदिरा गांधी नई-नई वापिस सत्ता में लौटी थीं और देश की दोबारा प्रधानमंत्री बनी थीं लेकिन पंजाब में अकालियों की सरकार थी और स. प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे।
ऐसे समय में अमृतसर के पास चौक मेहता में एक निहंग ग्रुप के नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले का उदय हुआ। उधर इंदिरा जी ने पहले गृहमंत्री और फिर देश के राष्ट्रपति के तौर पर ज्ञानी जी को बिठा दिया था। इधर पंजाब में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव होने थे। ज्ञानी जी और संजय गांधी ने इंदिरा जी की रजामंदी से अकाली दल में दोफाड़ रचने की साजिश रची और भिंडरांवाले को पंजाब के गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनाव में अकाली दल के विरुद्ध चुनाव लड़ने की शह देने की चाल चल दी। मुझे आज भी याद है कि चौक मेहता से गुुरुद्वारा चुनाव के लिए जरनैल सिंह ने अपने खास स. अमरीक सिंह को मैदान में उतार दिया। मैं खुद इस मौके पर चौक मेहता गया और मैंने अपनी आंखों से लोकल कांग्रेसी नेताओं को भिंडरांवाले के उम्मीदवारों की मदद खुले तौर पर करते देखा।
इंदिरा, ज्ञानी जी और संजय की यह राजनीतिक साजिश थी कि अकालियों की मुख्य संस्था गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर भिंडरांवाले का कब्जा करवा कर अकालियों को कमजोर कर दिया जाए ताकि आने वाले पंजाब के विधानसभा चुनाव में अकालियों को हराकर कांग्रेस की सरकार की स्थापना पंजाब में की जाए। मैंने खुद चौक मेहता में जाकर 1981 में भिंडरांवाले और अमरीक सिंह का इंटरव्यू किया था। शायद भिंडरांवाला का यह पहला प्रैस इंटरव्यू था। बाद में मैं स्वर्ण मंदिर के गुरु नानक निवास भी गया जहां जाने पर मुझे ऐसी कहानी (Story) मिली जिसने पूरे भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया। चौक मेहता और गुरु रामदास सराय का जिक्र मैं आगे करूंगा।
इससे पहले 1977 की घटना या दुर्घटना का जिक्र करना चाहूंगा। अमृतसर में 13 अप्रैल 1977 के दिन वैसाखी मनाई जा रही थी। एक तरफ भिंडरांवाले के ग्रुप ने समारोह रखा था तो दूसरी तरफ निरंकारियों का समारोह था। लालाजी निरंकारियों के समारोह से निकल कर जब बाहर आ रहे थे तो उन्होंने देखा कि भिंडरांवाला ग्रुप के 10 से 12 निहंग तलवारें, बंदूूकें और बरछों के साथ निरंकारियाें पर हमला करने जा रहे थे। बीच सड़क में खड़े होकर लालाजी ने निहंगों को रोका, लेकिन किसी ने भी उनकी नहीं सुनी। उधर 10 से 12 निरंकारी भी बंदूकें और तलवारों से लैस मुकाबला करने के लिए खड़े हो गए। लालाजी के समक्ष दोनों ग्रुपों में भिड़ंत हुई और कुछ भिंडरांवाला के निहंग इस भिड़ंत में मारे गए और कुछ निरंकारी जख्मी हुए। लालाजी ने वापिस जालन्धर आकर एक सम्पादकीय लिखा कि मेरे बार-बार मनाने पर भी भिंडरांवाला ग्रुप के निहंग नहीं माने और उन्होंने निरंकारियों के समागम पर हमला बोल दिया। अपनी आत्मरक्षा में निरंकारियों ने भी मुकाबला किया और इस तरह कई निहंग मारे गए और कई निरंकारी कार्यकर्ता जख्मी हुए।
क्योंकि पंजाब में बादल साहिब की अकाली सरकार थी इसलिए निरंकारियों पर पुलिस केस बना और कई निरंकारी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने पकड़ कर जेल में डाल दिया। इसके बाद सिलसिला शुरू हुआ कोर्ट केस का, जिसमें निरंकारियों ने यह कहा कि उन्होंने तो आत्मरक्षा में निहंगों का मुकाबला किया था। उस समय लग रहा था कि यह केस एकतरफा जाएगा और गिरफ्तार निरंकारी कार्यकर्ताओं को फांसी या उम्र कैद की सजा होगी। इस बीच निरंकारियों के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह दरख्वास्त डाली कि पंजाब में अकाली सरकार रहते उन्हें न्याय नहीं मिलेगा।। इस केस को पंजाब से बाहर ट्रांसफर कर दिया जाए।
उच्चतम न्यायालय ने सोच-विचार के पश्चात अकाली समर्थक निहंगों v/s निरंकारियों के इस केस को हरियाणा के करनाल सैशन जज के यहां ट्रांसफर कर दिया। मैं यह सारा ब्यौरा इसलिए दे रहा हूं कि इस केस में एक और सिर्फ एक फैसलाकुन गवाह पूज्य दादा लाला जगत नारायण थे जिन्होंने इस सारे खतरनाक मंजर को खुद देखा था बल्कि इस पर सम्पादकीय भी लिखा था कि निरंकारियों के समागम पर भिंडरांवाला समर्थकों ने हमला किया और निरंकारियों ने अपनी आत्म सुरक्षा में गोलियां चलाईं जिससे कई भिंडरांवाला समर्थक मारे गए। अब करनाल के सैशन जज के यहां इस केस के पहुंचने के बाद आगे की बात मैं कल के लेख में करूंगा।