चौक मेहता पर भिंडरांवाला के निहंगों का डेरा था। चारों तरफ 20 फुट ऊंची दीवार थी। एक ही बड़ा सा गेट मुझे नजर आया और उसके खुलते ही अंदर एक ड्योढी थी जहां निहंग लोग बंदूकें कंधों पर लटकाए घूम रहे थे। मैंने कहा मुझे भिंडरांवाला से मिलना है। हालांकि वहां का माहौल काफी खौफनाक था, फिर भी मुझे डर नहीं लगा। मुझे और मेरे फोटोग्राफर कपूर को दो कुर्सियों पर एक कोने में बिठा दिया गया। मेरे फोटोग्राफर कपूर को वहां डर लगने लगा। इतने में हमें एक व्यक्ति जो कि साधारण कपड़ों में था, हमें मिलने के लिए आया।
लगता था कि इस पूरे माहौल में वही एक व्यक्ति था जो कि पढ़ा-लिखा लगता था। उसने अपना नाम स. रछपाल सिंह बताया और कहा कि मैं भिंडरांवाला जी का सैक्रेटरी हूं और प्रेस को भी मैं ही देखता हूं। मैंने अपना परिचय उनसे करवाया कि मेरा नाम अश्विनी कुमार है और मैं जालंधर से छपने वाले हिंद समाचार, पंजाब केसरी और जगबाणी का रिपोर्टर हूं। रछपाल बोला आप क्या रमेश के बेटे हैं और लाला जगत नारायण के पोते हैं, तो मैंने कहा कि हां। इस पर रछपाल सिंह की आंखें मानों खुल गईं और उसने मुझे बड़े ही आश्चर्य और खौफनाक अंदाज से देखते हुए कहा कि तो आप भिंडरांवाला जी का इंटरव्यू लेने आए हैं।
मैंने कहा हां अगर भिंडरांवाला तैयार हों तो मैं उनका इंटरव्यू लेना चाहता हूं अपने तीनों अखबारों के लिए। रछपाल सिंह बोला आप यहां बैठिए मैं थोड़ी देर में वापस आता हूं। हमें छोड़ रछपाल तेजी से वहां से गायब हो गया। मेरे फोटोग्राफर कपूर ने फिर मुझसे कहा कि हमें जल्दी से यहां से चलना चाहिए, बहुत ही खतरनाक जगह लगती है और मुझे डर भी लग रहा है। मैंने कहा- हौसला रखिये, कुछ नहीं होगा। थोड़ी देर बाद रछपाल सिंह वापस आया और मुझसे बोला चलिए आपको भिंडरांवाला से मिलवा देता हूं। हम एक हवेलीनुमा जगह से गुजर आखिर एक हाल में जा पहुंचे। वहां नीले कुर्ते में किरपाण धारण किये एक लम्बा छरहरा व्यक्ति मिला।
अभी तक रछपाल सिंह से और आगे भिंडरांवाला से हमारी बातचीत पंजाबी भाषा में ही हो रही थी। मैं ही इस सारी मुलाकात को हिंदी भाषा में लिख रहा हूं। बहरहाल मिलने पर भिंडरांवाला ने न नमस्ते, न ही हमारा स्वागत किया। बोला- अच्छा तो तू ही लाले का पोता है। मैंने कहा- जी हां। क्या नाम है तेरा। मैंने कहा- ‘अश्विनी कुमार’। तो मेरा इंटरव्यू लेने आया है। मैंने कहा- जी, मैं आपके विचार पंजाब की जनता के समक्ष पेश करना चाहता हूं। तो क्या सचमुच में तू मेरा इंटरव्यू लेगा? मैंने कहा- जी हां ! तो क्या लाला मेरे विचार अपनी अखबारों में छपने देगा। मैंने कहा- क्यों नहीं, ऐसी कोई बात नहीं। भिंडरांवाला अंत में बोला- तो पूछ क्या जानना है तुझे मुझसे?
मैंने पूछा क्या मेरा फोटोग्राफर आपकी फोटो भी ले सकता है तो भिंडरांवाला के साथ बैठा एक युवा निहंग जिसका नाम अमरीक सिंह था, बोला- क्यों नहीं, आप एक की बजाय दस फोटो ले लो। मैंने अपने फोटोग्राफर को इशारा किया कि भाई तू तो शुरू हो जा। उधर मैंने पहला सवाल भिंडरांवाला पर दागा कि क्या आप पंजाब के अकाली दल के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं ? इस पर भिंडरांवाला बोला कि यह कैसा ऊल-जुलूल प्रश्न तू मुझसे पूछ रहा है। हमारी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है और पंजाब का मुख्यमंत्री मैं भला क्यों बनना चाहता हूं? मैंने फिर दोबारा पूछा तो आपने अमरीक सिंह को शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चुनाव में क्यों उतारा है।
इस पर अमरीक सिंह बोला- यह तो हमारा आंतरिक मामला है। कोई भी गुरुसिख भाई गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य बनने के लिए चुनाव लड़ सकता है। इसमें क्या बुराई है? और इसका राजनीति या मुख्यमंत्री पद प्राप्त करने से कोई वास्ता नहीं है। मैंने फिर कहा कि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य प्रबंधक कमेटी का अध्यक्ष भी बन सकता है। यह सिख समाज की सबसे शक्तिशाली गद्दी है तो आप इसको प्राप्त नहीं करना चाहेंगे? इस पर भिंडरांवाला बोला कि प्रबंधक कमेटी का सदस्य बनना एक बात है और मुख्यमंत्री बनना दूसरी बात।
मैंने दूसरा प्रश्न दागा कि क्या आप अकाली दल और आनंद साहिब मते द्वारा किये गए मतों से इत्तफाक रखते हैं तो भिंडरांवाला बोला- क्यों नहीं, हम सभी सिख अपने लिए अलग इलाका चाहते हैं, आनंदपुर साहिब इसके समक्ष क्या चीज है। हम तो सिखिस्तान और सिखों के लिए अलग देश के भी समर्थक हैं। मैंने पूछा- तो क्या आप भी खालिस्तान के समर्थक हैं। भिंडरांवाला बोला कि हां हम ही तो हैं जो खालिस्तान की मांग उठा रहे हैं। मैंने भिंडरांवाला को बताया कि मैं सीधा अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में बने गुरु रामदास सराय से आ रहा हूं। हमने वहां हथियारों का जखीरा देखा और खालिस्तान समर्थक नारों से बने पोस्टर और बैनर भी देखे, क्या सचमुच यह सभी गतिविधियां आपकी चलाई हुई हैं, आप ही इसके कर्ता-धर्ता हैं।
भिंडरांवाला और बाद में अमरीक सिंह भी बड़ी बेबाकी से बोले- यह सारी खालिस्तान बनाने की योजना हमारी ही है। बड़ी जल्दी हम अपना हैड क्वार्टर स्वर्ण मंदिर को बनाने जा रहे हैं और बाबा जी यानी भिंडरांवाला अकाल तख्त पर बैठेंगे और रहा करेंगे। मैंने पूछा अकाल तख्त तो सिखों का सर्वोच्च और पवित्र स्थान है। क्या बंदूकों को बांध आप वहां बैठ सकेंगे? सिख धर्म के इस कदर पवित्र स्थान पर बंदूकों से लैस आप वहां कैसे बैठ सकते हैं और क्या मौजूदा प्रबंधक कमेटी जिसके अध्यक्ष श्री गुरचरण सिंह टोहरा और मौजूदा मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल आपको वहां रहने देंगे। भिंडरांवाला का जवाब था कि हमें टोहरा और बादल की कोई परवाह नहीं।
ये लोग तो रोज-रोज मेरे से आशीर्वाद लेने आते हैं। इतने में बैठे सभी भिंडरांवाला समर्थकों ने नारा लगा दिया ‘जो बोले सो निहाल सतश्री अकाल’। एक लम्बा-चौड़ा इंटरव्यू बन रहा था। मैंने भिंडरांवाला से पूछा- आपके इस खालिस्तान में रहने वाले हिंदुओं का क्या होगा? भिंडरांवाला बोले कि पाकिस्तान बनने के उपरांत हिंदू वहां से भागकर हिंदुस्तान चले आए थे तो खालिस्तान बनने के बाद हिंदू या कोई और भी छोटी आबादी वाले लोग खालिस्तान में रह सकेंगे? उन्हें भी पंजाब छोड़कर इतने बड़े हिंदुस्तान में दोबारा विस्थापित किया जाएगा या खालिस्तान में रहना है तो जैसे पाकिस्तान में दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रह रहे हैं, वैसे ही रहना पड़ेगा।
मैंने कहा कि पाकिस्तान में हिंदुओं और मुसलमानों से सलूक ठीक नहीं होता तो भिंडरांवाले ने कहा- ठीक वैसा ही सलूक खालिस्तान में भी उनसे होगा। इंटरव्यू के अंत में भिंडरांवाला बोले- तू भी समझ ले, तेरा दादा और बाप हमारे विरुद्ध जो अपनी कलम से जहर उगलते रहते हैं, उन्हें भी जल्दी ‘सोध’ देंगे और गड्डी चढ़ा देंगे, जाके अपने दादे और बाप को मेरा यह संदेश दे देना। मैंने कहा- अब हम चलते हैं। मुझे नहीं लगा कि भिंडरांवाला का यह इंटरव्यू दादाजी और पिताजी प्रकाशित नहीं करेंगे। मैं यह बात अंदर ही अंदर सोच रहा था कि भिंडरांवाला दोबारा बोला- क्यों भई बता क्या तेरा दादा और बाप मेरा यह इंटरव्यू जो तुमने अभी-अभी लिया है, प्रकाशित करेंगे। मैंने कहा जी जरूर आपका यह इंटरव्यू प्रकाशित होगा।
फिर भिंडरांवाला ने अमरीक सिंह से कहा- यह लड़का अच्छा लगा, इसे लंगर से कड़ाह-प्रसाद खिलाकर ही वापस भेजना। हमने चौक मेहता के भिंडरांवाला के डेरे पर ही लंगर छका और लस्सी बड़े से गिलास में पी और वापस जालंधर के लिए रुखसत हो गए। जालंधर पहुंच कर शाम के समय मैंने गुरु रामदास निवास और चौक मेहता की पूरी दास्तां दादाजी और पिताजी को बताई। साथ ही मैंने फोटो भी दिखाई और भिंडरांवाला का इंटरव्यू पढ़कर भी सुनाया। पहले तो दोनों को मेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। बाद में फोटो दिखाने के पश्चात उन्हें मेरी बातों पर विश्वास हुआ। दोनों ने इस मामले पर गहरी चुप्पी साध ली। मुझे लगा लालाजी अपने विरोधी भिंडरांवाला का इंटरव्यू छापना नहीं चाहते थे। पिताजी गुरु रामदास सराय में हथियार होने और भिंडरांवाला की खतरनाक योजनाओं को छापकर पब्लिक में दहशत पैदा नहीं करना चाहते थे। बात शायद ऐसी ही थी।
मैंने तर्क दिया कि प्रश्न इस समय भिंडरांवाला से दुश्मनी या पब्लिक में दहशत का नहीं है। आप इसके उलट सोचिए अगर हम जनता को भिंडरांवाला की खतरनाक और पाकिस्तान से मिलकर देश विरोधी योजनाएं अभी प्रकाशित कर देते हैं तो इससे केंद्र सरकार और प्रशासन समेत उत्तर भारत की जनता सचेत हो जाएगी। शायद केंद्र, प्रदेश सरकार और प्रशासन अभी ही इस मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए कोई ‘एक्शन प्लान’ बनाकर इसे यहीं रोक लें? वरना यह दहशतगर्दी और भारत के विरुद्ध भिंडरांवाला का प्रचार और उसके अनुयायी बढ़ते चले जाएंगे। हमारा समाचार पत्र उत्तर भारत का सबसे ज्यादा छपने वाला अखबार है। हम कोई गपशप नहीं बल्कि फोटो के प्रमाण के साथ एक गंभीर, विश्वसनीय खबर को प्रकाशित करने जा रहे हैं। आगे आप दोनों जो आज्ञा दें मुझे मंजूर है।
थोड़े बहुत विचार के बाद दादाजी ने यह फैसला कर लिया कि भिंडरांवाला का इंटरव्यू और गुरु रामदास सराय के हथियारों और पाकिस्तान के एजेंटों द्वारा खालिस्तान कमांडो फोर्स के निर्माण की खबर भी प्रमुखता और विस्तार से छपनी चाहिए। पूरे चार दिन हिंद समाचार, पंजाब केसरी और जगबाणी में यह खबरें छपती रहीं। आगे इन खबरों के प्रकाशित होने के बाद क्या हुआ, इसका जिक्र मैं कल के लेख में करूंगा।