वित्त मन्त्री श्री अरुण जेतली द्वारा आज लोकसभा में पेश किये गये बजट ने मोदी सरकार की वरीयता में उस ‘भारत’ को लाने का मजबूत प्रयास किया है जिसकी आर्थिक उदारीकरण की नीतियां शुरू होने के बाद लगभग उपेक्षा हो रही थी। किसानों को उपज का लाभप्रद मूल्य देने के वादे से बन्धी सरकार ने स्वीकार कर लिया है कि फसल पर आयी लागत का डेढ़ गुना मूल्य किसानों को देने का फार्मूला लागू होगा। इसके साथ ही देश के गरीबों को स्वास्थ्य सुरक्षा देने के लिए श्री जेतली ने जिस नई स्कीम को शुरू करने की घोषणा की है वह स्वतन्त्र भारत के इतिहास में अनूठी इसलिए होगी क्योंकि यह उन गरीबों के स्वास्थ्य की देखभाल करेगी जिनके पास अपने परिवार की चिकित्सा करने के आर्थिक साधन लगभग न के बराबर होते हैं मगर कालान्तर में इस स्कीम को ठीक उसी प्रकार कानून की शक्ल में ढालना होगा जिस प्रकार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को ढाला गया था।
गरीबों के स्वास्थ्य की देखभाल करना लोकतन्त्र में किसी भी चुनी हुई सरकार का ही दायित्व होता है। यह खुशी की बात है कि विदेशी निवेश की रौ में बह रहे ‘इंडिया’ में मोदी सरकार ने भारत की सुध ली है। इसका बिना किसी गुरेज के प्रत्येक भारतीय को इसलिए स्वागत करना चाहिए कि बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के बीच भी भारत उस समाजवादी सोच से बन्धा हुआ है जिसका लक्ष्य सभी लोगों को एक समान सुविधाओं से लैस करने का रहा है। गौर से देखा जाये तो यह भारतीय जनता पार्टी का नेहरू काल की आर्थिक नीतियों काे परोक्ष समर्थन है जिसमें गरीबों को सरकारी मदद देकर उन्हें ऊपर उठाये जाने की तजवीज थी मगर यह भारत जैसे मुल्क के लिए फख्र की बात है कि मौजूदा सरकार के लिए देश और समाज का हित दलगत भावना से ऊपर है।
श्री जेतली ने इसके साथ ही यह भी सिद्ध कर दिया है कि उनमें भारत की अर्थव्यवस्था को लगातार आत्मनिर्भर बनाने का जज्बा भी भरा हुआ है। बेशक नोटबन्दी और जीएसटी को लेकर इस सरकार की आलोचना हुई है मगर इन कदमों को सकारात्मक रूप से बदलने की उनकी नीति स्पष्ट है जो व्यापारिक व वाणिज्यिक क्षेत्र में बजट में उठाये गये कदमों से साफ होती है। वित्त मन्त्री ने ग्रामीण क्षेत्रों में पूंजी निर्माण करने के लिए ईमानदारी से कदम उठाये हैं और इन इलाकों में आधारभूत ढांचा क्षेत्र में निवेश के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोलने में कोताही नहीं बरती है। यह इसी बात का प्रमाण है कि वित्त मन्त्री ने बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के बीच गरीब आदमी को विकास में उसका जायज स्थान देने की कोशिश की है। समावेशी विकास इन प्रयासों के बिना पूरा नहीं किया जा सकता। बजट में सरकार की नीति पूरी तरह वे वरीयताएं तय कर रही है जिनकी जरूरत ‘भारत’ को है क्योंकि असली भारत चन्द बड़े शहरों में नहीं बल्कि आज भी गांवों में ही बसता है।
पूंजी बाजार में दीर्घावधि लाभ पर कर लगाकर उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती में पक्का विश्वास दिखाया है और चुनौती दी है कि बड़े या विदेशी निवेशक तात्कालिक तौर पर इसे ‘पार्किंग मनी’ का स्थल समझने की भूल न करें। वास्तव में यह साहसिक कदम है जो अन्ततः उत्पादन व वित्तीय क्षेत्र में लगी हुई कम्पनियों को मदद करेगा। देखना केवल यह है कि उन्होंने रिजर्व बैंक कानून में किस तरह के संशोधन प्रस्तावित किये हैं। श्री जेतली ने देश के बुजुर्गों के जीवन को सुगम व सरल बनाने के लिए भी महत्वपूर्ण कदम अपने बजट में उठाये हैं।
संभवतः पहली बार किसी वित्त मन्त्री ने इस मुद्दे पर इतनी गंभीरता से सोचकर आर्थिक उपाय किये हैं परन्तु किसी भी बजट के बारे में सबसे महत्वपूर्ण यह होता है कि वह देश को किस आर्थिक दिशा में ले जाना चाहता है। श्री जेतली का नजरिया पूरी तरह साफ है। वह इस मुल्क को उस तरफ ले जाना चाहते हैं जिसमे गरीब से गरीब आदमी भी सिर उठा कर जीने का हौंसला रख सके। उनका यह स्वीकार करना कि देश में शिक्षा की गुणवत्ता एक समस्या है जिसकी तरफ सरकार का ध्यान है, बताता है कि वह खुद शहरों में पढे़ होने के बावजूद गांव की मिट्टी में लथपथ किसी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे की समस्या से परिचित हैं। बेशक एक मोर्चे पर बहुत संजीदगी के साथ सोचना होगा कि भारत के ‘मेक इन इंडिया’ ध्येय में सार्वजनिक कम्पनियों की स्थिति क्या रहती है। सरकार इन्हें बेचकर यदि अपने राजस्व घाटे की आपूर्ति करने का तरीका खोजती है तो उसके दूरगामी परिणाम श्रेष्ठकर नहीं हो सकते क्योंकि लगभग हर क्षेत्र में शत-प्रतिशत विदेशी निवेश की छूट देकर हम विदेशी कम्पनियों के वाणिज्यिक उपक्षेत्र (बिजनेस कालोनी) नहीं बन सकते। कुल मिलाकर जेतली का बजट भारत के खेतों में हरियाली लेकर आयेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने में मददगार होगा।