जब दो अलग-अलग धर्मों के युवक या युवती एक-दूसरे को प्रेम करते हैं और स्वेच्छा से शादी के पवित्र बंधन में बंधने का फैसला करते हैं तो फिर धर्म परिवर्तन का मामला आड़े क्यों आता है। भारत में ऐसे ढेरों मामले हैं जहां विभिन्न धर्मों के लोगों ने एक-दूसरे को जीवन साथी चुना। ऐसे लोगों में सामाजिक, राजनीतिक शख्सियतें, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियां और सामुदायिक नेता शामिल हैं। अनेक शादियां सफल भी रही हैं लेकिन कई मामलों में विवाद भी उत्पन्न हुए। शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने वालों के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि सिर्फ शादी के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन किया जाता है तो यह वैध नहीं है। हाईकोर्ट ने इस मामले से जुड़ी विपरीत धर्म के जोड़े की याचिका को खारिज कर दिया और आदेश दिया है कि मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराएं। विवाहित जोड़े ने अपील की थी कि उनकी शादी में परिवार वाले हस्तक्षेप न करें। जाहिर है कि यह विवाह अन्तरजातीय था। इस मामले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेंगे। इस मामले में मुस्लिम लड़की ने हिन्दू धर्म स्वीकार किया आैर एक महीने बाद उसने हिन्दू लड़के से शादी कर ली। कोर्ट ने रिकार्ड का जिक्र करते हुए कहा है कि साफ है कि शादी से एक महीने पहले धर्म बदला गया है।
हाईकोर्ट ने नूरजहां बेगम केस के फैसले का हवाला भी दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। इस केस में हिन्दू लड़कियों ने धर्म बदल कर मुस्लिम लड़कों से शादी की थी। सवाल था कि क्या हिन्दू लड़की धर्म बदल कर मुस्लिम लड़के से शादी कर सकती है और क्या शादी वैध मानी जाएगी। इस पर कुरान की हदीसों का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। यह इस्लाम के खिलाफ है। इसी फैसले के हवाले से कोर्ट ने मुस्लिम से हिन्दू बन शादी करने वाली युवती को राहत देने से इंकार कर दिया है।
धर्म परिवर्तन कर प्रेम विवाह करना अपने आप में सही नहीं है। यदि धर्म प्रेम के आड़े नहीं आ रहा तो विवाह में भी नहीं आना चाहिए और बिना धर्म परिवर्तन किये ही विवाह करना चाहिए। भारतीय कानूनों में इस तरह के विवाह की स्पेशल मैरिज एक्ट के अन्तर्गत सुविधा है और इसे आम बोलचाल में कोर्ट मैरिज कहा जाता है।
अभी हाल ही में एक विवादास्पद विज्ञापन को लेकर लव जिहाद फिर चर्चा में है। वैसे भी अपने देश में होने वाले अन्तर धार्मिक विवाहों पर गौर करें तो उनमें प्रेम कम, विवाद ज्यादा देखे जाते हैं। प्रेम का कोई मजहब नहीं होता। प्रेम अपने आप में एक मजहब है। अलग-अलग धर्मों के प्रेमियों के बीच प्रेम और विवाह कोई असामान्य घटना नहीं है। हर युवा में ऐसा होता आया है और आगे भी होता रहेगा। ऐसी शादियों में अगर पति-पत्नी किसी का धर्म परिवर्तन किये बगैर अपनी-अपनी आस्थाओं और पूजा पद्धतियों के साथ एक छत के नीचे रह सकें तो ही इसे प्रेम विवाह माना जाना चाहिए। उनके बच्चे बालिग होने के बाद अपना धर्म चुन सकते हैं। ऐसी शादियों में और किसी भी रूप में धर्म का दखल है तो ये शादियां ही अनैतिक हैं। अगर पति-पत्नी में कोई विवाह की एवज में दूसरे से धर्म परिवर्तन की मांग करे तो यह प्रेम विवाह नहीं, भावनात्मक ब्लैकमेलिंग है। ऐसी शादियों के पीछे आम तौर पर प्रेम की आड़ में मजहबी एजैंडा ही ज्यादा होता है। धर्म परवर्तन भी पुरुष कम करते हैं और यह कुर्बानी भी महिलाओं को ही देनी पड़ती है। शादियों के लिए धर्म परिवर्तन जैसी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में हंगामा और साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो जाता है।
यह जरूरी हो गया है कि इस मामले में आम बहस की जाए कि क्या उचित है और क्या अनुचित। हमारे समाज में लड़कियों को लड़के वालों के घर में रहना होता है। वह लड़के के परिवार का अंग हो जाती हैं। इसलिए समाज का मानना है कि देर-सवेर लड़कियों को अपनी मान्यताओं को छोड़ना पड़ता है। कुछ लोगों का मानना है कि शादी के समय से ही मान्यता बदल ली जाए तो समस्या होती ही नहीं लेकिन यदि मान्यताएं बदलना जरूरी है तो प्रेम विवाह धोखा है। कानून में इसकी कोई जगह नहीं है तो हमें इस पर विचार करना होगा कि दोनों अपनी-अपनी मान्यताओं के साथ जियें या फिर दोनों मिलकर संयुक्त मान्यता विकसित कर लें। मुस्लिम और हिन्दू दो मान्यताओं का समाज है, दोनों को किसी कीमत पर मिलाया नहीं जा सकता। शादी के बहाने जबरन धर्म परिवर्तन के भी कई मामले सामने आए हैं। ऐसी शादियां जब असफल होती हैं तो महिलाओं का जीवन बर्बाद हो जाता है। आप हिन्दू हो या मुसलमान यदि आपका धर्म बिना धर्म बदले शादियों की इजाजत नहीं देता तो आप अपने धर्म में खुश रहें। प्रेम तक तो ठीक है, अन्तरधार्मिक विवाह आपके लिए नहीं है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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