भारतीय वायुसेना के लिए शनिवार का दिन भारी साबित हुआ जब मध्य प्रदेश के मुरैना में सुखोई-30 और मिराज 2000 उड़ान के बाद क्रैश हो गए। हवा में दोनों विमानों का आपस में टकराना एक अनहोनी ही है। एक साथ दो लड़ाकू विमानों के हादसे पर विशेषज्ञ भी हैरान हैं। दुर्घटना के कारणों की जांच के निष्कर्षों के बाद ही यह तय होगा कि यह अनहोनी आखिर हुई कैसे? एक साथ दो अलग-अलग लड़ाकू विमानों में टेक्नीकल खामी होना समझ से परे है। हो सकता है कि किसी खास ड्रिल को अंजाम देने के दौरान हादसा हो गया हो। हवा में आपस में प्लेन क्रैश की घटना 1995 में हुई थी। उसके 37 वर्षों बाद क्रैश की दुर्घटना सामने आई है। एक्सरसाइज को लेकर वेल स्ट्रक्चर्ड प्लान होता है। यह डिसाइड रहता है कि कितनी हाइट पर कौन सा प्लेन जाएगा। यहां तक कि हवा में किस ज्योग्राफिकल बिन्दु पर जाना है यह भी तय रहता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हादसे के पीछे दो कारण हो सकते हैं, या तो पायलटों के बीच कोई कन्फ्यूजन हुआ हो और वे आपस में कोई संदेश न दे पाए हों या फिर किसी एक विमान में तकनीकी खराबी आई हो, जिसके चलते पायलट प्लेन को कंट्रोल नहीं कर पाए हों। कारण कुछ भी रहे हों लेकिन इस हादसे से भारतीय वायुसेना को बड़ा नुक्सान पहुंचा है। एक पायलट शहीद हो गया और संतोष की बात यह है कि दो पायलट सुरक्षित बच गए। अब तक 13 मिराज 2000 विमान 1985 के बाद क्रैश हो चुके हैं। जबकि 1996 से अब तक 11 सुखोई-30 विमान क्रैश हो चुके हैं।
दोनों ही विमान हवा में सबसे विध्वंसक कोंबीनेशन माने जाते हैं। दोनों ही विमानों से दुश्मन थरथर कांपते हैं। सुखोई 30 एमकेआई करीब 3 हजार कि.मी. तक उड़ान भरने में सक्षम है, यह सैन्य अभियानों में लगातार पौने चार घंटे तक उड़ान भरने की क्षमता है। इसके साथ ही फ्लाइट के दौरान इसमें ईंधन भरा जा सकता है, जिसके बाद 10 घंटे तक उड़ान भरी जा सकती है। मैक 2 की स्पीड से इसे उड़ाया जा सकता है। यानी कि ध्वनि गति के दोगुने रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है। करीब 38.8 टन के भार को सहने में यह सक्षम है। सुखोई 30 को रूस ने बनाया था। हालांकि अब इसका निर्माण एचएएल द्वारा भारत में ही किया जा रहा है। 1997 में सुखोई-30 एमके ने पहली उड़ान भरी थी। जबकि 2000 में एडवांस्ड वर्जन सुखोई-30 एमकेआई ऑपरेशन में और भारतीय वायुसेना इस्तेमाल कर रही है।
2019 में पाकिस्तान में बालाकोट एयरस्ट्राइक के दौरान इसका इस्तेमाल किया गया था। आमतौर पर इसे बूढ़ा एयरक्राफ्ट कहा जाता है। अगर भारतीय वायुसेना के पास मौजूद लड़ाकू विमानों को देखें तो िमराज 2000 से बेहतर फाइटर जेट है। लेकिन बालाकोट एयरस्ट्राइक के दौरान इसके पीछे इस्तेमाल की बड़ी वजह यह थी कि इस्राइली स्पाइस 2000 को इसमें आसानी से फिट किया जा सकता था। मिराज की टॉप स्पीड 2,336 कि.मी. प्रति घंटे है, जूून 1984 में इसे शामिल किया गया था। इसकी लम्बाई 14 मीटर है। फ्रांस की कम्पनी ने डसॉल्ट एविएशन ने इसे बनाया था।
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि मिराज विमान अब बूढ़े हो चुके हैं और सुखोई-30 भी पुराने हैं, इसलिए इन पर ज्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता। हाल ही में मिराज 2000 एयरक्राफ्ट को अपग्रेड करने की चर्चा चली थी लेकिन काम अटकता रहा। 2.5 अरब डालर के प्लान के तहत फ्रांस की कम्पनी 2 जेट को अपग्रेड करने वाली है और बाकी तकनीक ट्रांसफर की मदद से बेंगलुरु में होना है। भारतीय वायुसेना सुखोई फाइटर जैट को भी अपग्रेड करना चाहती है। सुखोई लड़ाकू विमान रूस की कम्पनी बनाती है। यह करीब 20 साल से भारत के पास है। भारतीय वायुसेना सुखोई को ज्यादा ताकतवर रेडार और युद्धक क्षमता से लैस करना चाहती है। रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते सुखोई को अपग्रेड करने के काम में देरी हुई। सरकार यह सब काम मेड इन इंडिया के तहत करना चाहती है ताकि रक्षा उत्पादों में भारत आत्मनिर्भर बन जाए। मौजूदा समय में भारत को पाकिस्तान से कहीं ज्यादा खतरा चीन से है। भविष्य में युद्ध की आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों को अपग्रेड किए जाने की जरूरत है। हालांकि हमारे पास राफेल भी है। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए भी सतर्कता और प्रशिक्षण भी जरूरी है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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