प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने एक के बाद एक साहसिक फैसले लेकर सबको चौंकाया है। केन्द्र सरकार ने कई ऐसे पुराने कानून निरस्त किए हैं जिनका आज की परिस्थितियों में कोई औचित्य ही नहीं है। कई बार कानूनों में संशोधन करना जरूरी हो जाता है। केन्द्र सरकार ने उस 2012 के आयकर कानून रैट्रोस्पैक्टिव टैक्स एक्ट को खत्म करने का फैसला किया है और इस संशोधन विधेयक को लोकसभा की मंजूरी भी मिल गई है। इस रैट्रोस्पैक्टिव कानून के कारण सरकार और वोडाफोन और केयर्न एनर्जी जैसी कम्पनियों से विवाद शुरू हुआ था। वोडाफोन ने इसी कानून को लेकर सरकार के खिलाफ केस दायर िकया था। रैट्रोस्पैक्टिव टैक्स वो टैक्स होता है, जिसके तहत आयकर विभाग कम्पनियों पर टैक्स लगाती है और विभाग उन कम्पनियों से पुरानी डील के भी बकाये की मांग करती है। यह टैक्स खासकर उन विदेशी कम्पनियों के लिए है, जो यहां निवेश करना चाहती हैं। यह कानून 2012 में बना था। उस समय स्वर्गीय प्रणव मुखर्जी वित्त मंत्री थे। उनका कहना था कि भारत टैक्स हैवन देश नहीं है इसलिए भारत में अगर कोई विदेशी कम्पनी निवेश करती है तो उसे टैक्स तो चुकाना ही पड़ेगा। तब उन्होंने फाइनेंस एक्ट में बदलाव कर दिया। इस कानून के लागू होते ही आयकर विभाग वोडाफोन और केयर्न जैसी कम्पनियों से टैक्स वसूली के लिए हाथ धोकर पीछे पड़ गया। वोडाफोन ने 2007 में हच को खरीदकर भारतीय बाजार में एंट्री की थी।
वोडाफोन ने हच में 67 फीसदी उस समय 11 अरब डालर में खरीदी थी। इस डील में हच का इंडियन टेलीफोन बिजनेस और अन्य सम्पत्तियां शामिल हैं। उसी साल वोडाफोन ने कहा कि उसे कैपिटल गेन आैर विद होल्डिंग टैक्स के रूप में 7990 करोड़ चुकाने होंगे। वोडाफोन इनकम टैक्स के इस दावे के खिलाफ बाम्बे हाईकोर्ट पहुंचा। पहले कोर्ट ने आयकर विभाग के हक में फैसला सुनाया। जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उसने कहा कि वोडाफोन पर हिस्सेदारी खरीदने के कारण टैक्स लाएबिलिटी नहीं बनती। उसने आपका कानून 1961 का जो अर्थ निकाला है वह ठीक है। जब यह मामला ब्रिटिश कम्पनी वोडाफोन परमानैंट कोर्ट आफ आर्बिट्रेशन में ले गई तो वहां भारत सरकार की किरकिरी हुई। उसके फैसले के बाद भारत सरकार की देनदारी करीब 75 करोड़ रुपए तक सीमित हो गई। कोर्ट ने कहा कि भारत सरकार की तरफ से द्विपक्षीय निवेश संधि को तोड़ने की कोशिश की गई। ऐसा ही िववाद ब्रिटेन की कम्पनी केयर्न और भारत सरकार के बीच चल रहा था। जिसके चलते भारत सरकार को भारी-भरकम जुर्माना लगाया गया। अदालत ने केयर्न के पक्ष में फैसला सुनाया और जिसके बाद भारत सरकार को 1.7 अरब डालर के भुगतान का आदेश दिया था। केयर्न एनर्जी अब मुआवजे की राशि वसूल करने के लिए अमेरिका से लेकर सिंगापुर तक के देशों में भारतीय सम्पत्तियों को लिक्षत करने की योजना बना रही है। केयर्न ने न्यूयार्क की एक अदालत में एयर इंडिया पर मुकदमा दायर कर उसकी सम्पत्ति जब्त करने के लिए 1.2 अरब डालर का मध्यस्थता एवार्ड जीता था।
सरकार द्वारा 2012 के विवादित कानून को रद्द करने का फैसला एक बड़े कर सुधार के रूप में देखा जा रहा है। सरकार के इस कदम से वोडाफोन और केयर्न समेत 15 कम्पनियों को मदद मिलेगी।
नया बिल आने के बाद कम्पनियों द्वारा जो कुछ भी सरकार को भुगतान किया गया है, वह वापिस हो सकता है। कम्पनियों को मुकदमा खत्म करने और किसी नुक्सान का दावा नहीं करने की गारंटी देने जैसी शर्तों को मानना पड़ सकता है। यह कहा जा रहा है कि सरकार ने अरबों रुपए विवादों को निपटाने के लिए रेट्राे टैक्स कानून में संशोधन का फैसला लिया है। लेकिन सरकार ने निवेशकों के हितों के लिए यह फैसला िलया है। अब अगर लेन-देन 28 मई 2012 से पहले हुआ है तो उस पर रेट्रो टैक्स की डिमांड नहीं की जाएगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संशोधन विधेयक पेश किए जाते समय यह पूरी तरह स्पष्ट कर दिया है।
कानून की वजह से निवेशक निवेश का अच्छा माहौल बनने के बावजूद पीछे हट रहे थे। कोरोना महामारी के चलते अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई है। देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए विदेशी निवेश को बढ़ाने के लिए अहम बदलाव की जरूरत है। यह कानून निवेश में बड़ा बाधक बन गया था। कोरोना संकट के बाद देश उस जगह पर आकर खड़ा हो गया है, जहां अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ौतरी करना समय की मांग बन चुका है। निवेश होगा तो देश में रोजगार के नए मौके भी पैदा होंगे। सरकार अब बिना ब्याज के कम्पनियों को भुगतान की गई राशि लौटाने को तैयार हैं तो कम्पनियों को शर्तों के जरिये मामले सुलझा लेने चाहिएं। सरकार के कदम से वोडाफोन जैसी कम्पनियों को फायदा होगा। वोडाफोन अपने मार्केट कैम्प में तेज गिरावट से परेशान है। कुमार मंगलम बिडला ने वोडाफोन बोर्ड छोड़ने का फैसला लेते समय कर्ज में डूबी इस दूरसंचार कम्पनी की अपनी 27 फीसदी हिस्सेदारी सरकार देने की पेशकश की है। निवेश के लिए उत्साहजनक वातावरण बहुत जरूरी है। उम्मीद है कि सरकार के इस फैसले से विदेशी कम्पनियां भारत में िनवेश के लिए तैयार होंगी।