नवीन पटनायक को मिल गया उत्तराधिकारी - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

नवीन पटनायक को मिल गया उत्तराधिकारी

‘तेरी देहरी पर कई शाम छोड़ आया हूं मैं
यह रुत बदलेगी ये पैगाम छोड़ आया हूं मैं’
बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक अपनी उम्र और स्वास्थ्यगत कारणों से ओडिशा में ‘चेंज ऑफ गार्ड’ के प्रयासों में जुटे हैं, वे जल्द से जल्द अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी घोषित करना चाहते हैं। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों नवीन ने अपने बड़े भाई प्रेम पटनायक के पुत्र अरुण पटनायक और अपनी स्वर्गीय बहन गीता मेहता के पुत्र आदित्य सिंह मेहता को इकट्ठे अपने पास बुलाया और कहा कि ‘बीजू जनता दल तुम्हारे दादा व नाना की पार्टी है अब वक्त आ गया है कि तुम इसकी कमान संभालो।’
नवीन के बड़े भाई प्रेम पटनायक एक उद्योगपति हैं जो अपने पुत्र अरुण के साथ दिल्ली में रहते हैं, वहीं आदित्य सिंह मेहता सिंगापुर में रहते हैं। सो, अरुण व आदित्य ने एक स्वर में नवीन से पूछा कि ‘हम तो ओडिशा में रहते ही नहीं है, फिर राज्य के लोग हम दोनों को कैसे स्वीकार कर पाएंगे।’ नवीन का जवाब था-‘राजनीति में आने से पहले कौन सा मैं ओडिशा में रहता था, मैं यहां आया, रहा और यहां की जनता ने मुझे इतना सारा प्यार दिया।’ पहले ये कयास लग रहे थे कि नवीन अपने सबसे भरोसेमंद आईएएस अधिकारी पांडियन को जिन्होंने नौकरी छोड़ बीजू जनता दल ज्वॉइन कर लिया था, उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित करेंगे, पर नवीन के मन में कहीं न कहीं यह पहले से चल रहा था कि ओडिशा के लोग तमिलनाडु के रहने वाले इस तमिल ब्राह्मण पांडियन को शायद ही स्वीकार कर पाएं।अपने पिता बीजू पटनायक की मृत्यु के बाद नवीन जब 1997 में ओडिशा आए तो इससे पहले उन्हें राजनीति का कोई अनुभव नहीं था, उनके बड़े भाई प्रेम पटनायक की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है, नवीन ने 2019 के विधानसभा चुनाव के वक्त भी अपने भतीजे अरुण को हिंजिली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था, पर तब अरुण इसके लिए तैयार नहीं हुए थे।
गांधी परिवार में इतनी उथल-पुथल क्यों है?
सोनिया गांधी के राजस्थान से राज्यसभा में जाने के ऐलान के बाद प्रियंका गांधी की कोर टीम जिसमें संदीप सिंह, मोहित पांडे व तौकीर शामिल थे, यह टीम दिल्ली में प्रियंका से मिलने पहुंची और उनसे कहा कि ’अब ये रायबरेली मूव कर रहे हैं और अगले तीन महीनों तक वहीं जमे रहेंगे।’ पर कहते हैं प्रियंका ने उन्हें मना कर दिया कि ‘उनका लोकसभा चुनाव लड़ने का कोई मन नहीं है।’ दरअसल, पहले प्रियंका के हिमाचल से राज्यसभा में आने की बात बिल्कुल तय थी। हिमाचल के सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इस बाबत कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को प्रियंका के नाम का प्रस्ताव भी भेज दिया था।
कहते हैं इसके बाद खड़गे ने सोनिया से बात की तो सोनिया ने इस प्रस्ताव पर हामी नहीं भरी। इसके बाद सोनिया ने प्रियंका से बात कर उनसे कहा कि ‘मैं तो इसीलिए राज्यसभा जाने को बाध्य हुई कि इन दिनों मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता, अगर तुम भी राज्यसभा चली गई तो इससे संदेश ठीक नहीं जाएगा, तुम्हें मेरी सीट पर रायबरेली से चुनाव लड़ना चाहिए।’ इसके बाद सोनिया ने रायबरेली की जनता के नाम एक भावुक खुला पत्र जारी कर दिया जिससे रायबरेली से गांधी परिवार के इतने भावानात्मक ​िरश्तों की बयानी हो सके और प्रियंका पर रायबरेली से चुनाव लड़ने का दबाव बनाया जा सके।
क्या मेरठ से चुनाव लड़ेंगे पीयूष गोयल?
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल का यूं तो हरियाणा व महाराष्ट्र कनेक्शन समझ में आता है। क्योंकि उनका पुश्तैनी गांव हरियाणा में है और उनके पिता व उनकी मां की कर्मभूमि महाराष्ट्र रही है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इस दफे रालोद के जयंत चौधरी को भाजपा में लाने के सूत्रधार पीयूष गोयल ही थे। इसके पीछे गोयल का अपना निजी मंतव्य भी हो सकता है। सूत्रों की मानें तो 2024 का लोकसभा चुनाव पीयूष गोयल मेरठ से लड़ सकते हैं। वहां के मौजूदा सांसद राजेंद्र अग्रवाल मेरठ-हापुड़ सीट पर जीत की तिकड़ी लगा चुके हैं। इस सीट पर बनिया वोटरों का खासा दबदबा है। किसानों के वोट भी थोकभाव में हैं। दलित व मुस्लिम वोटर भी यहां खासा असर रखते हैं। सो, सियासत के माहिर खिलाड़ियों में शुमार हो चुके पीयूष गोयल को रालोद-सपा-कांग्रेस गठबंधन को तोड़ना था जिससे कि वे इस सीट पर भारी मतों से जीत दर्ज करा सकें। रही बात दलित मतों की तो बसपा का आचरण अब तक भाजपा की ‘बी’ पार्टी के तौर पर ही रहा है, सो दलित वोटों को लेकर वैसे भी भगवा पेशानियों पर अब कोई ​शिकन नज़र नहीं आ रही।
योगी को डिगाना आसान नहीं
ओम प्रकाश राजभर व दारा सिंह चौहान को अपनी कैबिनेट में शामिल करने को लेकर योगी फिलहाल जल्दीबाजी में नहीं हैं। इसके पीछे योगी का साफ तौर पर मानना है कि ‘ये दोनों जनाधार वाले नेताओं में से नहीं हैं तो इन्हें अतिरिक्त भाव दिए जाने की भी कोई जरूरत नहीं।’ उधर योगी से दो स्थानीय भाजपा नेताओं ने राजभर और चौहान को शामिल करने को लेकर लगातार अनुरोध करते रहे, पर राजभर व चौहान को लेकर योगी के नजरिए में किंचित ही कोई बदलाव दिखा, उल्टे योगी मंत्रिमंडल के विस्तार का मामला भी अधर में अटक गया। योगी पर यह दबाव बना रहा है कि ‘इन दोनों नेताओं को इस लोकसभा चुनाव से पहले मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए’, जब पानी सिर के ऊपर से होकर गुजरने लगा तो कहा जाता है कि योगी ने सीधे भाजपा शीर्ष नेतृत्व से संपर्क साधा और उनसे निवेदन किया कि ‘मुझे सरकार अपने तरीके से चलाने दिया जाए।’ शीर्ष नेतृत्व के मूक समर्थन हासिल होने के बाद योगी अपने फैसले पर अडिग हैं, सो लगता है कि लोकसभा चुनाव तक योगी मंत्रिमंडल का विस्तार लंबित ही रहने वाला है।
जिनके लिए दिल्ली दूर है
भाजपा अपने दिल्ली के सांसदों को लेकर एक के बाद एक कई जनमत सर्वेक्षण करा चुकी है, इसके आधार पर ही दिल्ली के सांसदों के फाइनल रिपोर्ट कार्ड तैयार हुए हैं। जिन सांसदों के नंबर कम हैं वे अपने संसदीय क्षेत्रों में इन दिनों ज्यादा एक्टिव दिख रहे हैं। गौतम गंभीर, मनोज तिवारी, प्रवेश वर्मा, मीनाक्षी लेखी, हर्षवर्द्धन, हंसराज हंस जैसों को संकेत दिए जा चुके हैं कि इस बार उनकी सीट बदली जा सकती है या फिर इन्हें संगठन की सेवा में लगाया जा सकता है। बहरहाल जब अयोध्या में ‘श्रीराम प्राण प्रतिष्ठा’ का भव्य आयोजन था तो प्रवेश साहिब सिंह वर्मा ने अपने दिल्ली स्थित सरकारी आवास पर श्रीराम की भव्य मूर्ति रखवाई थी ताकि वे अपने लोगों से इसी बहाने मिल सकें।
…और अंत में
भाजपा नेतृत्व ने 13 ऐसी संसदीय सीटों की शिनाख्त पूरी कर ली है कि अगर यहां के मौजूदा सांसदों के टिकट काटे जाते हैं तो वे बागी होकर अन्य पार्टियों का रुख कर सकते हैं या फिर निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर सकते हैं। इनमें से एक सीट राजस्थान की झालावाड़ बारां की भी है, जहां से पार्टी नेतृत्व दुष्यंत सिंह का टिकट काट कर यहां से उनकी माता जी वसुंधरा राजे
को इस दफे चुनावी मैदान में उतारना चाहता है।

– त्रिदीब रमण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two + 13 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।