भारत में सरकारी कर्मचारियों की पेंशन स्कीम को लेकर भारी विवाद 2004 से नई पेंशन स्कीम के लागू होने से ही रहा है। नई पेंशन स्कीम में रिटायर होने के बाद कर्मचारियों की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा के साथ इस प्रकार समझौता किया गया था कि उनकी पेंशन देनदारियों से देश की सकल अर्थव्यवस्था पर अधिभार न पड़े। इसके तहत कर्मचारियों के समक्ष फार्मूला रखा गया कि नौकरी में रहते हुए वह अपने मूल वेतन की प्रतिमाह दस प्रतिशत राशि पेंशन कोष में कटवायें जिसके बराबर की धनराशि सरकार भी इस कोष में जमा करायेगी औऱ रिटायर होने के बाद उनकी कुल जमा धनराशि का भुगतान उन्हें एकमुश्त या उस धनराशि से संग्रहित ब्याज रकम का भुगतान प्रतिमाह होता रहे।
सरकार ने पेंशन कोष की धनराशियों को बाजार में भी निवेश करने की छूट दी हुई है जिसे देखते हुए पेंशन कोष बाजार जोखिमों के अधीन रहने की संभावना भी रहती है मगर अधिक संभावना इसमें इजाफा रहने की ही रहती है। इसके बावजूद कर्मचारियों व सरकार द्वारा बराबर-बराबर की जमा धनराशियों पर मिलने वाली ब्याज दरों के अनुसार ही इसमें मुख्य इजाफा होता है। इस हिसाब से देखा जाये तो किसी भी कर्मचारी को रिटायर होने के बाद अपनी नौकरी के कार्यकाल के अन्तिम महीने में मिले वेतन का रिटायर होने पर प्रतिमाह केवल 20 प्रतिशत धनराशि ही मिल पायेगी। जबकि पुरानी पेंशन स्कीम के तहत किसी भी कर्मचारी को रिटायर होने बाद अपने अन्तिम महीने के वेतन की 50 प्रतिशत धनराशि हर महीने मिला करती थी। मगर इस स्कीम के तहत पेंशन देने की जिम्मेदारी आने वाली सरकारों या नई पीढि़यों की होती थी। इससे सरकार पर भविष्य में अतिरिक्त देनदारियों का बोझ पड़ता था। यह सारा खर्चा गैर योजनागत मद में ही होता था मगर इसका उपाय करने की जिम्मेदारी भविष्य की सरकारों की होती थी।
2004 में इस प्रणाली से निजात पाने के लिए ही नई पेंशन स्कीम लाई गई और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी में कर्मचारियों को ही सहभागी बनाया गया। एक प्रकार से यह नया कायदा बाजार मूलक अर्थव्यवस्था के दबावों के चलते बनाया गया था जो कि भारत की सामाजिक-आर्थिक संरचना को देखते हुए अनुकूल नहीं माना गया जिसकी वजह से कर्मचारियों ने नई पेंशन प्रणाली का विरोध भी किया। यह विरोध 2022 तक आते-आते ज्यादा उग्र हुआ और यहां तक हुआ कि यह चुनावी मुद्दा तक बनने लगा। पिछले दिनों हुए कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में यह मुद्दा केन्द्रीय चुनावी विमर्श तक बन गया औऱ हिमाचल प्रदेश में इसी मुद्दे पर लोगों ने भाजपा की सरकार को उखाड़ फेंका और पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का वादा करने वाली कांग्रेस पार्टी की सरकार बना डाली। इसकी वजह यह भी थी कि हिमाचल प्रदेश के सीमित आर्थिक संसाधनों में इस राज्य के लोगों का मुख्य धंधा सरकारी नौकरी ही थी। मगर यह समस्या केवल हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य तक ही सीमित हो एेसा भी नहीं है।
राजस्थान व छत्तीसगढ़ तक जैसे मैदानी राज्यों की सरकारों ने भी पुरानी पेंशन स्कीम पर लौटने की घोषणा की। बेशक इन राज्यों में विपक्षी पार्टी कांग्रेस की सरकारें हैं मगर महाराष्ट्र जैसे भाजपा शासित राज्य ने भी पुरानी पेंशन स्कीम पर लौटने पर अपनी असहमति नहीं दिखाई। इसे देखते हुए यह ज्वलन्त राजनैतिक मुद्दा माना जा सकता है। अतः अब इस मुद्दे का हल भी इसी दृष्टि से खोजने के उपाय हो सकते हैं। इस सन्दर्भ में आन्ध्र प्रदेश की वाई.एस.आर. कांग्रेस पार्टी की जगन मोहन रेड्डी सरकार ने पेंशन का ऐसा फार्मूला पेश कर दिया है जिसकी तरफ केन्द्र सरकार की भी रुची बताई जा रही है।
इस ‘गारंटीड पेंशन स्कीम’ या पक्की पेंशन स्कीम के तहत नई व पुरानी पेंशन स्कीमों का मिश्रित फार्मूला बनाया गया है। इसके तहत नौकरी के कार्यकाल के दौरान अगर कोई कर्मचारी अपने मूल वेतन की दस प्रतिशत धनराशि कटवाता है तो उतनी ही धनराशि सरकार भी जमा करेगी और उसके रिटायर होने के बाद कर्मचारी को अपनी नौकरी के अन्तिम महीने में मिले वेतन की 33 प्रतिशत धनराशि पेंशन के रूप में रिटायर होने के बाद हर महीने मिलेगी। यदि कर्मचारी 14 प्रतिशत धनराशि कटवाता है तो उसे रिटायर होने पर हर महीने अपने अंतिम वेतन की 40 प्रतिशत धनराशि पेंशन के रूप में मिलेगी। इसे एक तीर से कई शिकार के रूप में देखा जा रहा है। यह मिश्रित प्रणाली लागू होने से भविष्य की सरकारों पर आर्थिक बोझ भी घटेगा और कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा भी मिलेगी और साथ ही पेंशन कोष में धनराशि भी जमा होती रहेगी। अब इस फार्मूले के आर्थिक व वित्तीय पक्ष का गुणा-भाग लगाने में विशेषज्ञ मशगूल हो गये हैं क्योंकि चालू वर्ष लोकसभा चुनावों का पूर्ववर्ती वर्ष है जिसमें विभिन्न राजनैतिक व आर्थिक मुद्दे हवा में उछलेंगे और सत्ताधारी व विपक्षी पार्टियों के बीच इन पर जमकर खींचतान होगी। मिश्रित फार्मूले में सरकार और कर्मचारी दोनों ही खुश होने का अन्दाज दिखा सकते हैं। आन्ध्र प्रदेश की जगनमोहन सरकार ने हिसाब लगवाया कि अगर वह पुरानी पेंशन स्कीम लागू करें तो वर्ष 2023 में इस स्कीम के तहत कुल एक लाख 85 हजार करोड़ रुपए से अधिक की धनराशि जायेगी जबकि नई पेंशन स्कीम के अंतर्गत यह आधी से भी कम केवल 76 हजार करोड़ से अधिक की होगी। अतः इसने मिश्रित फार्मूला खोजा है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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