उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना के तहत राज्यभर में सामूहिक शादियों का आयोजन किया गया। एक ही पंडाल में मंत्रोचारण के साथ हिन्दू जोड़ों का विवाह सम्पन्न कराया गया और उसी पंडाल में मुस्लिम रीति-रिवाजों से निकाह भी कराए गए। नवविवाहित जोड़ों को समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने आशीर्वाद दिया। पूरे प्रदेश में 21 हजार गरीब बेटियों के घर बसाये गए। आज के दौर में जब शादियों पर लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लाखों रुपए पंडालों की साज-सज्जा पर खर्च किए जाते हैं और लाखों रुपए खान-पान पर खर्च किए जाते हैं।
लोग अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए बेतहाशा खर्च कर रहे हैं, ऐसे में सामूहिक शादियों का आयोजन समाज को नई दिशा दिखाने वाला है। हिन्दू धर्म की शादियों में तमाम रस्में, रीति-रिवाज निभाने के बाद ही विवाह को पूर्ण माना जाता है। तब जाकर कन्या और वर पति-पत्नी बनते हैं। विवाह की इन रस्मों में सबसे महत्वपूर्ण है कन्यादान। पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है। इसके बाद ही कन्या की सारी जिम्मेदारियां वर को निभानी होती हैं। यह एक भावुक संस्कार है, जिसमें एक बेटी अपने रूप में अपने पिता के त्याग को महसूस करती है।
पुराणों के अनुसार विवाह में वर को भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। विष्णु रूपी वर कन्या के पिता की हर बात मानकर आश्वस्त करता है कि वह हमेशा वधू को खुश रखेगा और उस पर कभी आंच नहीं आने देगा। कन्यादान को महादान माना जाता है। कन्यादान से ही माता-पिता और परिवार को भी सौभाग्य प्राप्त होता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सामूहिक विवाह योजना की शुरूआत की है। यह योजना ऐसे गरीब परिवारों के लिए है जो अपनी बेटियों की शादी का खर्च नहीं उठा सकते।
उन परिवारों की लड़कियों का विवाह सामूहिक विवाह के रूप में किया जाता है जिन पर 35 हजार रुपए खर्च किए जाते हैं। यह योजना एक अच्छी पहल है ताकि गरीब परिवार अपनी बेटियों को बोझ नहीं समझें। इस योजना का लाभ गरीब विधवा तथा तलाकशुदा महिलाएं भी उठा रही हैं। जोड़ों को उपहार स्वरूप एक नया मोबाइल और घरेलू सामान भी उपलब्ध कराया जाता है। योगी आदित्यनाथ यद्यपि गुरु गोरखानाथ पीठ के महंत हैं, लेकिन जिस तरीके से वह सामाजिक कार्य कर रहे हैं, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं।
जिस तरह से उन्होंने हर जाति के गरीब वर्ग के लिए सामूहिक विवाह योजना चलाई है, वह समाज के लिए अनुकरणीय है। रुढ़िवादी परम्पराओं के चलते समाज में अभी भी दहेज प्रथा समाप्त नहीं हुई है। इसी कारण चट मंगनी और पट तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। बड़े शहरों में ही नहीं बल्कि गांवों तक में युवा जोड़े तलाक लेने में जल्दबाजी दिखा रहे हैं। मुस्लिम समाज में भी तीन तलाक को कानूनी रूप से खत्म करने के बावजूद रोजाना तीन तलाक के मामले सामने आ रहे हैं। समाज शास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि संयुक्त परिवारों के घटते प्रभाव के कारण ऐसे मामले बढ़े हैं।
वैवाहिक विवादों के कारण दहेज की मांग, सम्पत्ति विवाद पर पारिवारिक कलह तो है ही लेकिन अब तो बहुत ही अजीबो-गरीब मसले सामने आ रहे हैं। बेहतर यही होगा कि सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन के लिए शादियों को पवित्र बंधन का संस्कार बनाया जाए। जिसमें न धन का दिखावा हो, न कोई आडम्बर हो और न ही खाद्य पदार्थों की वेस्टेज हो। महंगी शादियों में कितने ही प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं, बाद में यह व्यंजन फिजूलखर्ची ही साबित होते हैं। कई बार समाज ने शादियों के लिए नियम तय किए कि बारात में केवल 51 व्यक्ति ही आएंगे, केवल एक रुपए में शादी की जाएगी लेकिन लोग इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं।
योगी सरकार ने एक वर्ष में सामूहिक विवाह के लिए 250 करोड़ का बजट प्रावधान किया था। इस योजना से समाज में सर्वधर्म और सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिलता है। दहेज के कलंक से मुक्ति मिलती है और विवाह उत्सव में अनावश्यक खर्च पर रोक लगती है। अगर समाज में सब सुखी परिवार की कामना करते हैं तो हमें खोखली प्रतिष्ठा से बचना ही होगा और विवाह को पवित्र गठबंधन मानना होगा। राज्य सरकारों का दायित्व सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ा होता है। उनके लिए समाज कल्याण ही सर्वोपरि होता है। इस दृष्टि से योगी आदित्यनाथ सरकार समाज को नई दिशा देने के लिए गरीब बेटियों की शादी करा रही है तो यह उसका दायित्व भी है। अन्य राज्य सरकारों को भी ऐसी ही योजनाएं चलानी चाहिए। यह योजना सामाजिक सद्भाव का संदेश दे रही है।