केवल वजूद में आने के 75 सालों के भीतर ही भारत से टूट कर अलग हुआ पाकिस्तान दहशत की दल-दल पर खड़े हुए ऐसे मुल्क में तब्दील हो चुका है जिसकी हर दर-ओ-दीवार अपने धंसने का ऐलान करती लगती है और पूरी दुनिया यह नजारा देखकर उसकी हालत पर तरस भर खा रही है। पाकिस्तान को इस मुकाम पर पहुंचाने में इसके ही सियासत दानों और फौजी हुक्मरानों का हाथ रहा है जिन्होंने सिर्फ भारत के खिलाफ दुश्मनी के ईमान पर इस मुल्क की परवरिश की और इसे जहालत की आंधी में झोंक दिया। नफरत की बुनियाद पर 15 अगस्त, 1947 को बने इस मुल्क के सरपराह कहे जाने वाले मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत को हिन्दू और मुसलमान में बांट कर पाकिस्तान तो बनवा लिया मगर मुसलमानों के इस नये मुल्क के लिए कोई नजरिया पेश नहीं किया जिसकी वजह से यह कभी इस्लाम का किला कहलाया तो कभी इस्लामी परमाणु बम का फरमावरदार मगर किसी भी हालत में इंसानियत का पैरोकार नहीं हो सका।
इसी वजह से यह मुल्क आज तबाही के उस शोले पर बैठा हुआ लगता है जहां सिर्फ गुबार के दूसरा रास्ता नजर नहीं आ रहा है। रंजिश, दुश्मनी और नफरत के हथियारों से लैस इस मुल्क ने सबसे बड़ा नुक्सान अपनी अवाम का ही किया और उसे मजहबी फिरकापरस्ती में झोंक कर एक ही इस्लाम को मानने वाले लोगों के बीच दुश्मनी तक को फलने–फूलने का मौका दिया। जहालत फैलाने वाले लोगों को इस मुल्क के रहनुमाओं ने अपनी पनाह में रखा और पूरी कौम को ही दहशतगर्दी की आग में झोंक डाला। अब इस मुल्क की हालत यह हो गई है कि पेशावर की एक मस्जिद में ही बम रखने के लिए पुलिस की वर्दी में एक दहशतगर्द जाता है वहां 101 लोगों को हलाक कर देता है। मरने वाले
सभी मुसलमान थे। मुसलमानों के लिए बने मुल्क में ही अगर मुसलमानों का कत्ल कोई मुसलमान आतंकवादी ही करता है तो उसके तामीर होने की कैफियत का अन्दाजा लगाया जा सकता है। जो दहशतगर्दी का तूफान उठाकर पाकिस्तान ने एक वक्त में भारत को जख्मी करने का इरादा किया था आज वही तूफान उसकी बुनियादों को हिला रहा है और जिन्ना का मरसीहा पढ़ रहा है।
इस मुल्क की सियासत भी सिर्फ नफरत से लबरेज हो चुकी है और सियासी पार्टियों में एक-दूसरे को सहन करने की कूव्वत खत्म हो चुकी है। पिछली सरकार में मन्त्री रहे लोग दूसरी पार्टी के लोगों पर खुद को कत्ल किये जाने की साजिश रचने के आरोप लगा रहे हैं और पूरी दुनिया के सामने अपने अधकचरे लोकतन्त्र का तमाशा पेश कर रहे हैं। मगर इस मुल्क में होना ही था क्योंकि 1947 इसके तामीर होने के बाद सबसे पहले खुद मुहम्मद अली जिन्ना ने गवर्नर जनरल का औहदा संभालने के बाद उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्तः (एनडब्लूएफपी) की चुनी हुई खुदाई खिदमतगार पार्टी की सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के बड़े भाई खान साहब की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। इसलिए अगर आज पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान के सहयोगी रहे पूर्व गृहमन्त्री शेख रशीद अहमद को झूठे आरोप लगाने के जुर्म में वर्तमान शहबाज शरीफ सरकार गिरफ्तार करती है तो कोई हैरानी की बात नहीं है। इससे पहले सूचना मन्त्री रहे फवाद चौधरी को भी ऐसी ही बयानबाजी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। शेख रशीद ने तो पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर ही आरोप लगा दिया कि उन्होंने इमरान खान की हत्या के लिए एक दहशतगर्द तंजीम के साथ साजिश रची थी। सोचने वाली बात यह है कि जिस पाकिस्तान की मुद्रा रुपये की कीमत डालर के मुकाबले ढाई सौ रुपये तक पहुंच गई हो उसकी वित्तीय हालत क्या होगी। जिस मुल्क में आटे से लेकर दूध और सब्जियों की कीमतें आसमान इस तरह छू रही हों कि वहां का आम आदमी भूखे मरने की नौबत में आ गया हो तो वहां निजाम किस तरह का होगा। मगर इसमें मौजूदा वजीरे आजम शहबाज शरीफ की कोई गलती नहीं है क्योंकि पूर्व प्रधानमन्त्री इमरान खान की हुकूमत में पाकिस्तान की अवाम को जहालत में झोंकने के इन्तजाम इस तरह बांधे गये थे कि सिवाय फौज के कोई दूसरा शहरी बेफिक्र न रह सके।
इमरान खान की हुक्मरानी के दौरान ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के आगे गिरवी रख दिया गया था और उसकी मदद से इस मुल्क का बजट बनाया जा रहा था। इसके साथ ही चीन से कर्जें के बूते पर यह मुल्क अपने आर्थिक विकास को भी रहन रख चुका था। आज यह जिस हालत में पहुंच चुका है उसे सिर्फ दिवालियेपन की निशानी ही कह सकते हैं। इसीलिए आज इसके हुक्मरान अपने आप से ही पूछ रहे हैं कि हमने खुद ही दहशतगर्दों को पालकर और उन्हें अपना हम साया बनाकर किसका भला किया? तहरीके तालिबान पाकिस्तान जैसी दहशतगर्द तंजीम और पाकिस्तान के एक सूबे खैबर पख्तूनख्वा में अपनी ही सरकार बनाने का ऐलान कर रहा है। यह सारा नतीजा नफरत की खेती करके अवाम को मजहबी जुनून में झोंकने का ही है । यही वजह है कि आज दुनिया के इस्लामी मुल्क तक पाकिस्तान की मदद करने से हाथ पीछे खींच रहे हैं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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