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और भी गम हैं दुनिया में सियासत के सिवा !

संसद के दोनों सदनों में प्रायः अपनी दलील को मज़बूत ढंग से रखने के लिए सांसद शायरी के शहंशाह, मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ान गालिब के शेरों द्वारा अपनी बात को वज़न तो देते चले आए ही हैं मगर साथ ही साथ इससे सदन और जनता का भी मनोरंजन होता है। चाहे वह पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हों, स्वर्गीय सुषमा स्वराज हों, असदुद्दीन ओवैसी हों या वसंत साठे हों या कोई और, शायरी का अपना रंग और मज़ा है।
अगर आपको 1998 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सुषमा जी के बीच हुई रोचक और शायराना नोक-झोंक का अंदाज़ा है तो ठीक, मगर फिर भी हम उसका हवाला यहां देना चाहते हैं। मनमोहनजी ने फ़रमाया, “हमको है उनसे वफा की उम्मीद, जो जानते नहीं वफ़ा क्या है। “उस पर चटखारा लेते हुए सुषमा साहिबा बोलीं, “प्रधानमंत्री जी ने भाजपा को मुखातिब करते हुए कहा कि हमको है उनसे वफा की उम्मीद, जो जानते नहीं वफ़ा क्या है तो शायरी के एंड का उसूल है कि शेर कभी उधार नहीं रखा जाता, लिहाजा जवाब दे कर उधार चुकता करना ज़रूरी है और मैं एक नहीं, दो-दो शेरों से हिसाब बराबर करूंगी। मुलाहिजा फरमाएं। यूं ही कोई बेवफ़ा नहीं होता, कुछ तो मजबूरियां रही होंगी!” जब उन्होंने दूसरे शेर की बात करी तो उपसभापति, मीरा कुमार ने कहा, “फिर उन पर दूसरा शेर उधार हो जाएगा।”
अपने मुनफारिद (विलक्षण) अंदाज़ में सुषमाजी बोलीं, “प्रधानमंत्री जी, आपने हमारे को शेर पढ़ा था, उसका तो जवाब मैंने दे दिया मगर देश के ख़िलाफ़ जो बेवफ़ाई आपने की है उस पर भी सुन लीजिए, क्योंकि हम देश के साथ बेवफ़ाई करने वालों के साथ नहीं खड़े हो सकते, “तुम्हें वफ़ा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं/ ज़िंदगी और मौत के दो ही तो तराने हैं, एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें याद नहीं।” मनमोहन सिंह साहब के पास इसका जवाब नहीं था। अब सुषमा जैसी मुखर महिला सांसद शायद ही कोई आए।
ऐसे ही एक बार कांग्रेस के एक बहुत वरिष्ठ नेता को वरुण फिरोज़ गांधी ने ईंट का जवाब पत्थर से दिया तो उन नेता ने वरुण पर यह तंज कसा, “हमने जब उनको दी नहीं तहज़ीब/ फिर नई नस्ल से गिला क्या।” वरुण गांधी कहां कम थे, अपने शायरी के तरकश से तीर सीधा निशाने पे साधा, “पहले हुकूक का किरदार दिया जाता है, फिर कहानी में उसे मार दिया जाता है।” इस पर बड़ी दाद मिली थी वरुणजी को।
संसद में हुई एक और शायरी की दास्तां उस समय की है कि जब उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधीजी और मुस्लिम लीग के सांसद गुलाम महमूद बनातवाला में दिलचस्प शायराना अंदाज़ में नोक-झोंक हुई थी। बनातवाला उर्दू भाषा को राष्ट्र में तीसरी भाषा का स्थान देना चाहते थे तो श्रीमती इंदिरा गांधी ने गालिब के शेर से उन पर तंज़ किया, “हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले/ बहुत निकले मेरे अरमां, फिर भी कम निकले।” इस पर बनातवाला ने भी श्रीमती इंदिरा को जवाब देते हुए ग़ालिब का शेर दाग दिया, “आदरणीय प्रधानमंत्री मैडम, उर्दू भाषा के उत्थान का अरमान मात्र मुझ जैसे हकीर (मामूली) शख्स का नहीं है, मगर मशहूर शायरों और अदीबों, जैसे, चकबस्त, कुंवर महिंद्र सिंह बेदी, राजिंदर सिंह बेदी, कृष्ण चंद्र, लाला बंसी धर, पंडित हरि चंद अख्तर, जगन्नाथ आज़ाद, बशेशर प्रदीप, कश्मीरी लाल जाकिर, तिलोक चंद महरूम, पंडित आनंद जुत्शी गुलज़ार देहलवी, राम लाल, जोश मलसियानी आदि का भी है। और हां, आपके मोहतरम वालिद, पंडित जवाहरलाल नेहरू भी उर्दू पर जान छिड़कते थे। तो ग़ालिब के ही शेर से अपना जवाब सुन लीजिए, ‘हम ने माना के तगाफुल न करोगे लेकिन/ ख़ाक हो जाएंगे हम तुम को ख़बर होने तक।’
जब बात ग़ालिब की चल रही है तो पाठकों को यह बताना भी हमारा परम दायित्व है कि हाल ही में दिल्ली सरकार के सौजन्य से गालिब की हवेली पर विश्व विख्यात कत्थक नृत्यांगना उमा शर्मा द्वारा एक तीन दिवसीय कार्यक्रम रखा गया जिसमें चांदनी चौक से ग़ालिब की हवेली तक कैंडल मार्च निकाला गया और दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ शुक्ला ने ग़ालिब की प्रशंसा में कहा कि मिर्ज़ा तो तहज़ीब के चाहने वालों के दिल में बसे हैं और यह कि आने वाले दिनों में केजरीवाल सरकार इस हवेली में उर्दू को उसका अधिकार दिलाने के लिए एक पुस्तकालय और गालिब की शायरी को हिंदी में उनके चाहने वालों के पास पुस्तकें प्रकाशित करेगी, जिसका हवेली में आए लोगों ने तपाक से इस्तकबाल किया।
27 फ़रवरी को इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में 77 वर्षीय उमा शर्मा, अपनी साहित्य कला परिषद की शिष्याओं के साथ नृत्य नाटिका, “शमा जलती है हर रंग में सहर होने तक” के जैहर दिल्ली घराना के नामचीन कव्वाल उस्ताद इमरान खान की ग़ज़लों के स्वरों की लहरों पर रक्स (नाच) द्वारा प्रस्तुत करेंगी, जबकि 28 फ़रवरी को लोग मुशायरे का लुत्फ लूटेंगे।

– फ़िरोज़ बख्त अहमद

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