सर्विस रूल्स का उल्लंघन करने पर गौतमबुद्ध नगर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण को उत्तर प्रदेश सरकार ने निलम्बित कर दिया है। इसके साथ ही सरकार ने वैभव कृष्ण की रिपोर्ट में आरोपी 5 आईपीएस के हटाने के साथ ही जांच के लिए एसआईटी भी गठित कर दी है। इसके अलावा कुछ पुलिस कप्तानों का तबादला भी किया गया। वैसे तो निलम्बन, तबादले और बहाली पुलिस अफसरों और कर्मचारियों के जीवन का हिस्सा है लेकिन वैभव कृष्ण मामले में जो भी सामने आया उससे उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि काफी प्रभावित हुई है।
निलम्बित एसएसपी वैभव कृष्ण का एक वीडियो वायरल होने के बाद आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला रुक नहीं पा रहा था। नोएडा, मेरठ, गाजियाबाद से लखनऊ तक पूरे राज्य में खलबली मची हुई थी। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर जिस तरह का उपद्रव उत्तर प्रदेश में हुआ और जिस तरीके से पुलिस ने उपद्रवियों से निपटा, उसे लेकर भी पुलिस जबरदस्त आलोचना का शिकार हुई। कहीं बेगुनाहों को गिरफ्तार किया गया तो कहीं मृतकों और हज यात्रा के लिए गए लोगों को आरोपी बनाया गया।
पहले से ही शर्मसार हो चुकी उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए यह बहुत ही शर्मनाक रहा कि एक एसएसपी का वीडियो वायरल होता है जिसमें वह विभाग के आईपीएस अधिकारियों पर तबादलों और नियुक्तियों में रिश्वत लेने का आरोप लगाता है। जो पुलिस विभाग पहले ही आंतरिक कलह का शिकार हो उससे सही तरीके से काम करने की उम्मीद कैसे की जा सकती है। रिश्वत और भ्रष्टाचार के आरोप तो पुलिस वालों पर लगते रहे हैं क्योंकि उसकी छवि पर पहले ही ग्रहण लगा हुआ है लेकिन दुखद पहलु यह है कि जिन अधिकारियों पर राज्य की जनता की सुरक्षा का दायित्व है, जिन पर कानून की रक्षा और पालन की जिम्मेदारी है उन पर आरोप लगना गम्भीर मामला है।
निलम्बित एसएसपी की महिला के साथ चैटिंग के वायरल वीडियो की फारेंसिक लैब से जांच कराई गई। वैभव कृष्ण ने वायरल वीडियो को फर्जी बताया था लेकिन जांच में वीडियो और चैटिंग सही पाई गई। हैरानी की बात तो यह है कि वैभव कृष्ण ने वायरल वीडियो के संबंध में खुद एफआईआर कराई थी। तब उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि एक बड़ी लाबी उनके खिलाफ साजिश रच रही है। जब पुलिस की छवि पर आंच आने लगी तो जांच के बाद वैभव कृष्ण और अन्य पर गाज गिरा दी गई है।
इस पूरे प्रकरण ने पुलिस अधिकारियों के आचरण को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। पहले वीडियो वायरल हुए फिर एसएसपी प्राथमिकी दर्ज कराते हैं और फिर स्वयं प्रैस कांफ्रैस कर मीडिया को जानकारी देते हैं। इससे आचरण नियमावली का घोर उल्लंघन हुआ। इसके बाद योगी सरकार के पास उनके निलम्बन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। आईपीएस अफसर जसवीर सिंह ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर पुलिस विभाग के वरिष्ठ अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच स्वतंत्र एजैंसी से कराने की मांग की है और नोएडा के थाने में एफआईआर दर्ज कराने की तहरीर भी दी है।
पत्र में लिखा गया है कि जिलों में तैनाती के लिए पैसे और अन्य प्रकार का प्रलोभन प्रथम दृष्टया दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है। जसवीर सिंह ने यह भी लिखा है कि वह यह पत्र एक नागरिक के तौर पर, एक करदाता की हैसियत से लिख रहे हैं। पुलिस के बर्बर, गैर जिम्मेदार, लापरवाह और अमानवीय चेहरे की मिसालें अक्सर मिलती रहती हैं। इस संबंध में एक ग्रंथ की रचना की जा सकती है लेकिन प्रश्न फिर भी वही रहेगा कि आखिर हमारी पुलिस सुधरती क्यों नहीं। वह इतनी बर्बर और मानव विरोधी क्यों है? आखिर कौन पुलिस को पुलिस कहेगा? एक लोकतंत्र में पुलिस का कर्त्तव्य यह है कि वह कानून व्यवस्था बनाए रखे और नागरिकों को शांति से जीने के लिए उचित वातावरण मुहैया कराए।
देश को स्वतंत्र हुए 73 वर्ष हो चुके हैं लेकिन पुलिस के उपनिवेशवादी रवैये में कोई खास सुधार नहीं आया। पुलिस के आला अफसर अगर अपने अधीनस्थों के साथ ऐसा व्यवहार करते हों, उनसे तबादलों और नियुक्तियाें के लिए रिश्वत लेते हों, जिस राज्य में पुलिस थाने बिकते हों, उनसे आम नागरिकों को न्याय करने की उम्मीद कैसे पाली जा सकती है। इसके लिए जिम्मेदार जितनी पुलिस है उतनी ही जिम्मेदार राजनीतिक व्यवस्था भी है। पुलिस का राजनीतिकरण भी सबसे बड़ा कारण है। पुलिस जनसेवा और कानून व्यवस्था बनाए रखने की बजाय अपने सियासी आकाओं को ही प्रसन्न करने में लगी रहती है। प्रमोशन के लिए फर्जी मुठभेड़ें की जाती हैं।
बहादुरी का इनाम पाने वाले कई अधिकारी भी अपराधियों के जाल में फंस जाते रहे हैं। पुलिस के एनकाउंटर स्पेशलिस्टों पर भी अपराधियों को मौत का भय दिखाकर धन ऐंठने के कारनामों का पर्दाफाश होता रहा है। पुलिस अफसरों का एक-दूसरे के प्रति खुलेआम जहर उगलना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि बल में व्यवस्था के प्रति आक्रोश है, जो कहीं न कहीं फूट पड़ता है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जांच के लिए बनाई गई एसआईटी को निष्पक्ष जांच करके दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए और व्यवस्था में सुधार करना चाहिए।