रायपुर : छत्तीसगढ़ में कांग्रेस संगठन इस बार चुनाव में अधिक मुखरता और आक्रामकता के साथ मैदान में नजर आ रही है। बीते चुनाव में झीरम नक्सल हादसे के बाद चुनाव प्रचार की आक्रामकता खत्म हो गई थी। वहीं विपक्ष अपने नेताओं की हत्या से सदमें में डूबा था। चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस नेताओं के नरसंहार के चलते विपक्ष का दांव ठहर सा गया था। इसके बाद प्रदेश में नए सिरे से संगठन के स्तर पर बदलाव हुए। वहीं उपनेता प्रतिपक्ष रहे भूपेश बघेल को कमान दी गई।
भूपेश बघेल तत्कालीन झीरम हत्याकांड से पहले संगठन में चुनाव अभियान के समन्वयक थे। प्रदेश में वर्ष 2013 के बाद कांग्रेस के अभियान में लगातार बदलाव आया। संगठन की कमान संभालने के बाद आक्रामक हुए कांग्रेस अध्यक्ष पर राजनीतिक विरोधियों की ओर से कई मामले भी दर्ज कराए। वहीं राज्य के चर्चित सीडी कांड में अपराध पंजीबद्ध किया गया। इसके बावजूद उन्होंने संगठन की आक्रामकता कम नहीं होने दी। भूपेश बघेल की आक्रामकता ही रमन सरकार के लिए परेशानी का सबब मानी जा रही है। इससे पहले ठीक इसी तरह की आक्रामकता तत्कालीन अध्यक्ष शहीद नंदकुमार पटेल ने दिखाई थी।
राज्य गठन के बाद पटेल और भूपेश कांग्रेस की राजनीति में विरोधी जरूर हो गए लेकिन दोनों के बीच अंदरूनी संबंध बेहतर रहे थे। पटेल के फार्मूले को आगे बढ़ाते हुए ही भूपेश बघेल ने कांग्रेस की चुनावी बिसात बिछाई है। इस मामले में संगठन को दिल्ली दरबार ने अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर भी माना है। लगातार हार के बावजूद बीते पांच साल से संगठन को सक्रिय रखने के पीछे भी आक्रामकता को ही वजह माना जा रहा है। वहीं राज्य गठन के बाद पहली बार कांग्रेस ने स्थानीय स्तर के पंचायती राज और नगरीय चुनाव में सत्ताधारी दल को पटखनी देने में सफल हो गई। अब विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस संगठन भले ही सामूहिक नेतृत्व पर आगे बढ़ा है लेकिन इसमें भी भूपेश बघेल की रणनीति मानी जा रही है।
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