पटना : उपमुख्यमंत्री सह वित्तमंत्री सुशील कुमार मोदी ने बिहार के 12वां आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 का विधानसभा के सदन पटल पर रखा। उसके बाद अपने कक्ष में पत्रकारों से कहा कि आजादी के बाद 1964 तक विकास किया। लेकिन उसके बाद राज्य में अस्थिर सरकार रहने के बाद कई मुख्यमंत्री बनते गये। मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाने के चलते विकास से पीछा छुटता गया। 1990 से 2005 तक की सरकार स्थिर रहते हुए विकास से कोसो दूर रही।
2005 में एनडीए की नई सरकार बनी तब से राज्य सरकार ने विकास को गति प्रदान की। वित्त मंत्री ने बताया कि उच्च विकास, खासकर सेवा क्षेत्र में उच्च विकास के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था में ढांचागत रूपांतरण हुआ। पिछले दशक में 2004-05 से 2014-15 के बीच स्थिर मूल्य पर राज्य की आय 10.1 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ी हाल के समय में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 2015-16 में 7.5 प्रतिशत और 2016-17 में 10.3 प्रतिशत रही। ये वृद्धि दरें लगभग 7.0 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से अधिक है।
इसी प्रकार बिहार की प्रति व्यक्ति आय 2015-16 में संपूर्ण भारत के औसत का 31.6 प्रतिशत थी जो 2016-17 में बढ़कर 32.4 प्रतिशत हो गयी। पिछले पांच वर्ष के दौरान बिहार की अर्थव्यवस्था के विकास के वाहक क्षेत्र खनन एवं प्रस्तर खनन 67.5 प्रतिशत, विनिर्माण 25.9 प्रतिशत और परिवहन, भंडारण एवं संचार 13.5 प्रतिशत थे इन सारे क्षेत्रों की विकास दर 10 प्रतिशत से अधिक दर्ज हुई है। श्री मोदी ने बताया कि पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए राजस्व-लेखे में अधिशेष होना चाहिए।
बिहार लगातार राजस्व अधिशेष बनाये रखने वाला राज्य रहा है। राजस्व अधिशेष 2012-13 के 5,101 करोड़ रुपये से बढ़कर 2016-17 में 10,819 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2017-18 में राजस्व अधिशेष का 14,556 करोड़ रुपये हो जाना अनुमानित है। वर्ष 2016-17 में सकल राजकोषीय बजट में 4,418 करोड़ रुपये वृद्धि हुई है जबकि 2015-16 में उसमें मात्र 883 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई थी। पूंजीगत परिव्यय और प्रशासनिक तथा सामाजिक क्षेत्र के व्ययों में काफी वृद्धि होने के कारण वर्तमान वित्तवर्ष 2017-18 में उसके 18,112 करोड़ रुपये तक पहुंच जाने का अनुमान है।
वर्ष 2016-17 में कुल ऋणग्रहण 21,577 करोड़ था जा गत वर्ष से 3,194 करोड़ रुपये अधिक था। इस रकम का उपयोग राज्य में सामाजिक और भौतिक अधिसंरचना के निर्माण में किया गया है। वर्ष 2012-13 से 2016-17 के बीच विकासमूलक राजस्व व्यय 79 प्रतिशत बढ़कर 35,817 करोड़ रुपये से 64,154 करोड़ रुपये पहुंच गया। वहीं विकासेतर राजस्व व्यय इस अवधि में अपेक्षाकृत कम 47 प्रतिशत बढ़ा। प्रेसवार्ता में वित्त विभाग के प्रधान सचिव सुजाता चतुर्वेदी, सचिव राहुल सिंह, वित्त परामर्शी सह आद्री सचिव शैवाल गुप्ता,डा.पपिया घोष इत्यादि शामिल थे।
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