सांप्रदायिक हिंसा के मुकाबले के लिए महात्मा गांधी द्वारा परकल्पित ‘शांति सेना’ की बहाली के विचार का लींचिंग (भीड़ हिंसा) की घटनाओं से कोई लेना देना नहीं है। अधिकारियों ने गुरुवार को यह बात कही। हालांकि अधिकारियों को उम्मीद है कि इनसे ऐसा माहौल बनेगा जो ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में मदद करेगा।
गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति ने बृहस्पतिवार को ‘शांति सेना’ की बहाली के रोडमैप की घोषणा की। इसके तहत देशभर में युवाओं के लिए सात प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये जाएंगे और उनके माध्यम से ‘शांति सेना’ तैयार की जाएगी। गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति के निदेशक दीपांकर श्री ज्ञान ने कहा कि गांधीजी के 150 वें जयंती वर्ष में ‘शांति सेना’ को बहाल किया जा रहा है। महात्मा गांधी ने सांप्रदायिक हिंसा का मुकाबला करने के लिए इसकी परिकल्पना पेश की थी और आचार्य विनोबा भावे ने 23 अगस्त, 1957 को इसकी स्थापना की थी।
बहाली के तहत 23 अगस्त को ‘शांति सेना दिवस’ मनाया जाएगा और इस मौके पर शांति सेना के उद्गम स्थल केरल के मंजेश्वरम में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। गांधी पीस फाउंडेशन मिशन के अध्यक्ष एन राधाकृष्णन और अकादमिक क्षेत्र के कुछ अन्य गांधीवादी भी इस संवाददाता सम्मेलन में मौजूद थे।
जब ज्ञान से पूछा गया कि क्या बहाली की वजह पिछले कुछ वर्षों के दौरान हुईं सांप्रदायिक हिंसा की और लीचिंग की विभिन्न घटनाएं नहीं है, तो उन्होंने कहा कि यह कदम गांधी के 150 वें जयंती वर्ष में उठाया जा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘शांति सेना एक गैर राजनीतिक मंच है। लीचिंग या अन्य ऐसी हिंसक घटनाएं इसकी बहाली के लिए जिम्मेदार कारक नहीं हैं। हमारी प्रेरणादायी शक्ति एक ऐसा शांतिपूर्ण समाज तैयार करना है…जहां ऐसी घटनाएं न हों।’’