पूरा देश जहां‘बुराई पर अच्छाई की जीत’का प्रतीक विजयादशमी का त्यौहार मना रहा था वहीं इसके उलट झारखंड के जनजातीय इलाके में रावण दहन का विरोध और कुछ जगहों पर महिषासुर शहादत दिवस मनाया गया। पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया इलाके में महिषासुर शहादत दिवस मनाया गया। इस आयोजन में बड़ संख्या में भूमिज, कुर्मी, संथाल और दलित समाज के लोग शामिल हैं। लोगों ने महिषासुर के वध पर दुख जताया और दशाय नृत्य तथा काठी नृत्य के जरिये अपने दुख को प्रकट भी किया।
महिषासुर शहादत दिवस में शामिल लोगों का कहना है कि लोग दुर्गा की पूजा करें इसका विरोध नहीं है लेकिन जिस तरीके से आदिवासी समाज के महिषासुर के वध को दिखाया जाता है वह गलत है। धर्म आपसी सद्भाव और भाईचारे का संदेश देता है लेकिन दुर्गा पूजा में हिंसा को बढ़वा देने वाला स्वरुप दिखता है। यह त्योहार सिर्फ हिंसा ही नहीं बल्कि आदिवासी समाज को प्रताड़ित होता दिखाता है।
शहादत दिवस का आयोजन करने वाले जयराम महतो का कहना है कि कुर्मी समाज काठी नृत्य के माध्यम से दशहरा के समय समाज के ऊपर हुए अत्याचार एवं शोषण को व्यक्त करता है। उन्होंने कहा कि झारखंड में सदियों से आदिवासी संथाल समाज दुर्गा पूजा के समय दशाय नृत्य के जरिये समाज का दुख व्यक्त करते आ रहा है। आदिवासी समाज का मानना है कि राजा महिषासुर उसके समाज से थे और उनका समाज उन्हें सम्मान से देखता है। राजा महिषासुर के संबंध में निष्पक्ष शोध होना चाहिए ताकि लोगों को उनके संबंध में वास्तविक जानकारी मिल सके।