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बेहद रोचक रहा ‘किक बॉक्सर’ से मुक्केबाज बनी लवलीना का सफर, संयम है सबसे बड़ी खूबी

लवलीना पहले ‘किक-बॉक्सर’ थी और उन्हें एमेच्योर मुक्केबाजी में लाने का श्रेय बोरो को जाता है। उनकी इस शिष्या ने शुक्रवार को उन्हें निराश भी नहीं किया।

ओलंपिक में देश के लिए दूसरा पदक पक्का करने वाली मुक्केबाज लवलीना बोरगोहेन को इस खेल से जुड़ने के  लिए प्रेरित करने वाले भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच पदम बोरो ने एक दिन पहले ही कह दिया था ,‘‘‘वह आराम से जीतेगी, कोई टेंशन नहीं है।’’ लवलीना पहले ‘किक-बॉक्सर’ थी और उन्हें एमेच्योर मुक्केबाजी में लाने का श्रेय बोरो को जाता है। उनकी इस शिष्या ने शुक्रवार को उन्हें निराश भी नहीं किया। 
विश्व चैम्पियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीतने वाली लवलीना ने 69 किग्रा भारवर्ग के मुकाबले में शानदार संयम का प्रदर्शन करते हुए पूर्व विश्व चैम्पियन चीनी ताइपे की नियेन चिन चेन को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश के साथ तोक्यो ओलंपिक की मुक्केबाजी स्पर्धा में भारत का पदक पक्का कर दिया । वह मुक्केबाजी में पदक जीतने वाली तीसरी भारतीय खिलाड़ी है। 
असम की 23 वर्ष की मुक्केबाज ने 4 . 1 से जीत दर्ज की । अब उसका सामना मौजूदा विश्व चैम्पियन तुर्की की बुसानेज सुरमेनेली से होगा जिसने क्वार्टर फाइनल में उक्रेन की अन्ना लिसेंको को मात दी । लवलीना का खेलों के साथ सफर असम के गोलाघाट जिले के बरो मुखिया गांव से शुरू हुआ। यह स्थान काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के लिए भी प्रसिद्ध है। 
उनकी बड़ी बहनें लीचा और लीमा  किक-बॉक्सर हैं और सीमित साधनों के बाद भी उनके माता-पिता बच्चों की खेल महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने से कभी पीछे नहीं हटे। बोरो ने कहा, ‘‘ उन्होंने (माता-पिता) ने लवलीना का पूरा समर्थन किया, वे अक्सर मेरे साथ उसके खेल पर चर्चा करते थे और उसके सपनों के लिए कुछ भी करने को तैयार थे।’’ 
लवलीना ने किसी को निराश नहीं किया। हमेशा मुस्कुराती रहने वाली यह मुक्केबाज तोक्यो का टिकट कटाकर असम की पहली महिला ओलंपियन बनी। उन्होंने इसे पदक में बदल कर और भी यादगार बना दिया। इस 23 साल की खिलाड़ी की जीत को भारतीय महिला मुक्केबाजी में नये अध्याय की तरह देखा जा रहा है। दिग्गज एमसी मैरीकॉम के ओलंपिक से बाहर होने के बाद लवलीना ने अपने करियर के सबसे यादगार पल के साथ भारतीय प्रशंसकों को जश्न मनाने का मौका दिया। 
बोरो ने कहा, ‘‘ उनमें एक अच्छा मुक्केबाज बनाने की प्रतिभा थी और उसकी शरीर भी मुक्केबाजी के लिए उपयुक्त है। हमने केवल उसका मार्गदर्शन किया। करियर के शुरू में भी उसका शांत दिमाग उनकी सबसे खास बात थी। वह ऐसी नहीं है जो आसानी से हार मान जाये। वह तनाव नहीं लेती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘वह बहुत अनुशासित खिलाड़ी है।’’ 
उनकी मां ममोनी का पिछले साल किडनी प्रत्यारोपण हुआ था। लवलीना ने उस समय कुछ दिनों के लिए उनसे मुलाकात की लेकिन टूर्नामेंटों की तैयारियों के लिए 52 दिनों के लिए यूरोप जाने से पहले वह कोरोना वायरस से संक्रमित हो गयी। 
यह प्रशिक्षण दौरा उनके लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि महामारी के कारण भारत में कई तरह की पाबंदियां थी। मुक्केबाजों को शिविरों के फिर से खुलने के बाद भी कई दिनों तक उन्हें स्पैरिेग (दूसरे मुक्केबाज के साथ अभ्यास) की अनुमति नहीं थी। 
दूसरे खिलाड़ियों से अलग रह कर उनके लिए तैयारी करना मुश्किल था और इसका असर एशियाई चैम्पियनशिप में भी दिखा, जहां वह पहले ही बाउट में हार गयी। ड्रॉ के छोटे होने के कारण हार के बावजूद भी उन्हें कांस्य पदक मिला। 
लवलीना अपने आत्मविश्वास की कमी के बारे में बात करने से कभी पीछे नहीं हटी, ऐसा 2018 राष्ट्रमंडल खेलों से पहले दौर से बाहर होने के बाद हुआ था। उन्होंने अपनी एकाग्रता को बनाये रखने के लिए ध्यान (मेडिटेशन) का सहारा लिया। इसी एकाग्रता ने उसे शुक्रवार को तोक्यो उनके करियर का सबसे बड़ा पुरस्कार दिया। 

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