50 वर्षों से अधिक समय से लंबित मुकदमों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

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50 वर्षों से अधिक समय से लंबित मुकदमों पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी, कहा न्यायिक देरी से जनता का हो रहा मोहभंग

सुप्रीम कोर्ट ने मामलों के देरी से हो रहे निपटारे पर अपनी चिंता और नाराजगी भी जाहिर की है। सर्वोच्च न्यायलय ने अपने हालिया फैसले में 50 साल से अधिक समय से लंबित मुकदमेबाजी पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि न्यायिक देरी के कारण जनता का न्याय वितरण प्रणाली से मोहभंग हो रहा है।

न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेजीडी) से डेटा निकाला। इसमें पाया गया कि देश का सबसे पुराना सिविल मामला 1952 से पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में लंबित है। पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र में विभिन्न मजिस्ट्रेट अदालतों में लंबित शीर्ष तीन आपराधिक मामले 1961 और उससे भी पहले के हैं। इसमें कहा गया है कि कानून में कई खामियां, अनावश्यक और बड़ी कागजी कार्रवाई, गवाहों की अनुपस्थिति, बिना किसी उचित कारण के स्थगन मांगा और दिया गया, समन की सेवा में देरी, नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के प्रावधानों के कार्यान्वयन की कमी और दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) देरी का प्रमुख कारण है।

सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी करने की बात कही। कोर्ट ने कहा, ”न केवल सभी स्तरों पर लंबित मामलों के विशाल ढेर को निपटाने के लिए सक्रिय कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है, बल्कि वादी जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी हितधारकों को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए।” भारत में लगभग 6 प्रतिशत आबादी मुकदमेबाजी से प्रभावित है और अदालतें कानून के शासन द्वारा शासित राष्ट्र के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वादी जनता या बार के सदस्यों या न्याय देने की प्रक्रिया से जुड़े किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह से उक्त प्रक्रिया में देरी करके न्यायिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
हमें प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना चाहिए, बुनियादी ढांचे को मजबूत करना चाहिए, प्रौद्योगिकी में निवेश करना चाहिए और हमारे समय की मांगों को पूरा करने के लिए अपनी न्यायपालिका को सशक्त बनाना चाहिए।
इसने शीर्ष अदालत के महासचिव को उचित कदम उठाने के लिए सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को अपने फैसले की एक प्रति प्रसारित करने का आदेश दिया।

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