केंद्र सरकार की ओर से तीन कृषि कानून (मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 पर कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता; कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020) को रद्द कर दिया गया है। हालांकि, कानूनों का अध्ययन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने इन्हें किसानों के लिए फायदेमंद बताते हुए निरस्त नहीं करने की सिफारिश की थी।
यह बात 19 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई एक रिपोर्ट में कहा गया था, जिसे आज यानी सोमवार को सार्वजानिक किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, तीन सदस्यीय समिति ने राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को कानूनी रूप देने की स्वतंत्रता समेत कानूनों में कई बदलावों का भी सुझाव दिया था।
समिति के सदस्यों में से एक अनिल घनवट ने दिल्ली में संवाददाता सम्मेलन में रिपोर्ट के निष्कर्ष जारी किए। स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट ने कहा, ‘‘19 मार्च 2021 को हमने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी। हमने सुप्रीम कोर्ट को तीन बार पत्र लिखकर रिपोर्ट जारी करने का अनुरोध किया। लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं आज यह रिपोर्ट जारी कर रहा हूं। तीनों कानूनों को निरस्त कर दिया गया है। इसलिए अब इसकी कोई प्रासंगिकता नहीं है।’’ घनवट के अनुसार, रिपोर्ट से भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। घनवट ने कहा कि समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ‘‘इन कानूनों को निरस्त करना या लंबे समय तक निलंबन उन खामोश बहुमत के खिलाफ अनुचित होगा जो कृषि कानूनों का समर्थन करते हैं।’’
61 किसान संगठनों ने किया था कृषि कानून का समर्थन
अनिल घनवट ने कहा कि समिति के समक्ष 73 किसान संगठनों ने अपनी बात रखी जिनमें से 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 61 संगठनों ने कृषि कानूनों का समर्थन किया। घनवट ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले आंदोलन करने वाले 40 संगठनों ने बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अपनी राय प्रस्तुत नहीं की।
समिति के दो अन्य सदस्य कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के पूर्व अध्यक्ष अशोक गुलाटी तथा कृषि अर्थशास्त्री प्रमोद कुमार जोशी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते हुए कहा कि सरकार कृषि क्षेत्र के सुधारों के लाभों के बारे में विरोध करने वाले किसानों को नहीं समझा सकी। तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करना दिल्ली की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करने वाले 40 किसान संगठनों की प्रमुख मांगों में से एक था।