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कब हुई थी जातीय जनगणना की पहली मांग ? जानिए इसका पूरा इतिहास

देश के अंदर विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही बिहार सरकार ने देश में कास्ट सर्वे के आंकड़ों को जारी कर हर तरफ सियासी हलचल पैदा कर दी है। जिसके कारण बिहार की तरह ही अब देश के अन्य राज्यों में जातीय सर्वे की चर्चाएं भी तेज हो गई है साथ ही चुनावी राज्यों में राजनीतिक पार्टियों ने इस मुद्दे को अपने एजेंडे में भी शामिल कर लिया है। जहां अब मध्य प्रदेश के अंदर भी कांग्रेस ने ये कहा है कि जैसे ही वो सत्ता में आयी वो सर्वे जरूर करवाएगी। अब आपके मन में ये सवाल तो ज़रूर उठ रहा होगा की आखिरक पहली बार देश में जातीय जनगणना कब हुई थी ? और किसने की थी ? तो आइये आपके स्काभी सवालों का जवाब आज हम देते हैं।

कब हुई थी देश में पहली जातीय जनगणना?

जातीय सर्वेक्षण यानी की देश के हर हिस्से में यह पता लगाना की किस वर्ग के लोग कितने आंकड़ों में रहते हैं। आदेश के अंदर पहली बार साल 1931 में राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना हुई थी इसके आंकड़े भी प्रकाशित किए गए लेकिन इसके कई समय बाद भी मांग होने के बावजूद देश में कोई जाति जनगणना नहीं है लेकिन इस बीच यूपीए के कार्यकाल में पूरे देश में जाति जनगणना हुई थी इसके आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए थे।

किसने उठाई थी जातीय जनगणना की मांग ?

जब बात जाकर सर्वेक्षण की हो रही है तो यह बताना भी जरूरी होगा कि आखिरकार इस आरक्षण की मांग सबसे पहले किसने की थी और क्यों की थी तो आपको बता दे की जाती है जनसंख्या के आधार पर सबसे पहले भोजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम ने जातीय जनगणना की मांग की थी साथ ही उन्होंने इसके अलावा “जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी” का नारा भी दिया था।

 

 

 

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