इस समय मानसून का मौसम हैं। इसे बड़ा ही अच्छा और ठण्डा मौसम बताया जाता हैं। ऐसे में बारिश को देखते ही लोगो के मन में अलग-अलग खाने की फरमाईशें उठने लग जाती हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा इस मौसम में पीलीभीत व यहां से जुड़े तमाम लोग कटरुआ का स्वाद लेने के लिए बेचैनी उत्पन्न होने लग जाती हैं। वैसे तो इस सब्जी को खरीदना या बेचना कानूनी जुर्म हैं लेकिन पिछले साल ही ये सब्जी धड़ल्ले के साथ बेकी जाती हुई देखि गई थी।
लेकिन पिछले साल की इसी लापरवाही को देखते हुए इस साल वन विभाग सख्त मूड में है और इसपर रोकथाम के लिए बेहद ही गंभीर भी। बीते दिनों लगातार छापेमारी के बाद से कटरुआ बाजार से नदारद है, तो बस वही अब पीलीभीत टाइगर रिज़र्व प्रशासन ने इसको लेकर एक नोटिस भी जारी किया गया हैं जिसे फोलोव करना अत्यंत ज़रूरी और स्ट्रीक होगा।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व व आसपास के जंगलों में साल के वृक्ष की जड़ों में एक जंगली सब्जी पाई जाती है जिसे पीलीभीत व आसपास के इलाकों में कटरुआ नाम से पहचाना जाता हैं साथ ही जिसके चलते इसके सेवन और बिक्री पर सबकी नज़रे गढ़ी पड़ी रहती हैं। इसका सेवन और बिक्री दोनों ही मानसून के मौसम में में कुछ ही समय के लिए किया जाता हैं लेकिन इसपर रोकथाम के बावजूद ये तोड़कर किया जाता हैं।
बीते सालों प्रतिबंध के बावजूद भी शहर के स्टेशन चौराहे पर इसकी बिक्री धड़ल्ले से कटरुआ मंडी के नाम से लगाई जाती थी जो कानूनन जुर्म थी। इस साल भी शुरुआती दिनों में मंडी लगी तो थी, लेकिन वन विभाग ने एक के बाद एक छापेमारी कर जंगली सब्जी को नष्ट कर दिया था और सीधा ऐसे करने वालो पर स्त्रिक्त एक्शन लिया था। इसके बाद से ही बाजार से कटरुआ नदारद नजर आ रहा है। हालांकि, इतनी सख्ती के बावजूद चोरी छिपे इसे ऊंचे दामों पर बेचा जा रहा है।
सब्जी के लिए सरकार ने किया नोटिस जारी
जी हाँ…! हाल ही में इसकी रोकथाम के लिए रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल ने एक सख्त नोटिस भी जारी किया है, जिसमें पिछले वर्ष कटरुआ बीनने के दौरान ग्रामीणों के वन्यजीव हमलों में घायल होने के बात कही गई है। वहीं ऐसे में वन्यजीवों को लेकर भी खतरे की आशंका जताई गई है। इसी के चलते अब टाइगर रिजर्व प्रशासन ने नोटिस जारी करते हुए चेतावनी जारी की है।
ऐसा न करने पर होगी सख्त कार्यवाही
अगर इसपर जल्द ही रोकथम देखने को नहीं मिली तो पीलीभीत टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल इसके विषय में आगे एक ओर भी बात कही हैं, “अगर कोई भी व्यक्ति आरक्षित वन भूमि में अनाधिकृत रूप से पाया गया तो उस पर वन अधिनियम 1927 व वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत कार्रवाई की जाएगी. वहीं कोई भी व्यक्ति अगर कटरुआ बेचता हुआ या फिर खरीदता हुआ पाया गया तो उस पर भी अधिनियम के तहत वन उपज से जुड़ी धाराओं में कार्रवाई की जाएगी.”