मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के लिए मतदान की तारीख 19 अप्रैल और वोटों की गिनती की तारीख 4 जून तय करने वाली चुनाव अधिसूचना को रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका बुधवार को खारिज कर दी। रिट याचिका एझिलन नामक एक व्यक्ति ने दायर की थी, जो चाहता था कि अदालत चुनाव आयोग को मतदान की तारीख और मतगणना की तारीख के बीच 45 दिनों के लंबे अंतराल को कम करने का निर्देश जारी करे।
- चुनाव कार्यक्रम में हस्तक्षेप करना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं
- निश्चित अवधि के भीतर वोटों की गिनती कराना जरूरी
- वोटों की गिनती में देरी करना गैरकानूनी
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की भावना के खिलाफ
हालांकि, मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय वी. गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति डी. भरत चक्रवर्ती की पीठ ने याचिका खारिज कर दी। एझिलन के वकील ए. रजनी ने तर्क दिया कि 45 दिनों का लंबा अंतराल देना स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के प्रावधान वाले जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की भावना के खिलाफ है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि वोटों की गिनती में देरी करना मनमाना और गैरकानूनी है।
निश्चित अवधि के भीतर वोटों की गिनती कराना जरूरी
मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि क्या उस अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान है, जिसके तहत चुनाव आयोग को एक निश्चित अवधि के भीतर वोटों की गिनती कराना जरूरी हो। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। उनकी दलील दर्ज करने के बाद न्यायाधीशों ने कहा, हमें नहीं लगता कि वर्तमान याचिका किसी सार्वजनिक मुद्दे का समर्थन करती है। यह प्रचार हित याचिका जैसी है। मतदान और वोटों की गिनती की तारीख केवल चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित की जाती है।
चुनाव कार्यक्रम में हस्तक्षेप करना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं
मद्रास उच्च न्यायालय की प्रथम पीठ ने यह भी कहा, संविधान के अनुच्छेद 226 (रिट क्षेत्राधिकार) के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करके चुनाव कार्यक्रम में हस्तक्षेप करना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। खंडपीठ ने आगे कहा, संविधान का अनुच्छेद 329 (चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक) भी उसे चुनाव कार्यक्रम में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देता।
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