उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी (आप) के मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री सीट से चुनावी समर में उतरेंगे।
मनीष सिसोदिया ने जनसभा में की घोषणा
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उत्तरकाशी में एक जनसभा के दौरान यह घोषणा की । सिसोदिया ने कहा कि इसी के साथ पवित्र गंगा नदी के उद्गम स्थल गंगोत्री से उत्तराखंड में स्वच्छ राजनीति के युग की शुरूआत होगी । उत्तराखंड में सत्ता में अब तक रहीं कांग्रेस और भाजपा की सरकारों को अपने वादे पूरा न करने का दोषी ठहराते हुए आप नेता ने कर्नल कोठियाल के लिए प्रदेश की जनता से एक मौका मांगा ।
.@msisodia जी ने जबसे हमारे गंगोत्री विधानसभा से चुनाव लड़ने की घोषणा की है तभी से लगातार स्थानीय जनता और शुभचिंतकों के फ़ोन आ रहे हैं, गंगोत्री की स्थानीय जनता आम आदमी पार्टी से जुड़ने को काफी उत्साहित है। (1/2) pic.twitter.com/81mjqcKUDB
— Col Ajay Kothiyal, KC, SC, VSM (R.) (@ColAjayKothiyal) November 18, 2021
हम आपको विश्वास दिलाते हैं आपका ये कर्नल कोठियाल कभी आपका भरोसा टूटने नहीं देगा, गंगोत्री की जनता उत्तराखंड नवनिर्माण के सपने को साकार करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाएगी।जय हिंद, जय उत्तराखंड। (2/2)— Col Ajay Kothiyal, KC, SC, VSM (R.) (@ColAjayKothiyal) November 18, 2021
प्रदेश में काफी लोकप्रिय हैं कोठियाल
गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि के होने के बावजूद कोठियाल प्रदेश में काफी लोकप्रिय हैं जिन्होंने 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद अपने सैन्य अनुभव को स्थानीय लोगों की मदद के लिए इस्तेमाल किया । वह पहले उत्तरकाशी में नेहरू पर्वतरोहण संस्थान के प्राचार्य भी रह चुके हैं । गंगोत्री का चुनावी इतिहास बहुत दिलचस्प है और यहां से जिस पार्टी का उम्मीदवार विजयी होता है, प्रदेश में सरकार उसी की बनती है।
देवस्थानम बोर्ड मामले को भुना सकते है कोठियाल
राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि कोठियाल को गंगोत्री सीट से चुनावी समर में उतारने का निर्णय चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों में देवस्थानम बोर्ड को लागू करने से भाजपा सरकार के प्रति उपजी नाराजगी को आप के पक्ष में भुनाने का प्रयास भी है । पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के कार्यकाल के दौरान गठित देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की तीर्थ पुरोहित लंबे समय से मांग कर रहे हैं और उनका मानना है कि यह उनके पारंपरिक अधिकारों का हनन है ।