शिव यानी कल्याण, शिव यानी संहार। सृष्टि के कल्याण का दायित्व शिव का और संहार भी शिव के हाथों। यह तो क्षणभंगुर मनुष्य के विवेक पर निर्भर करता है कि जब तक दुनिया में रहे, उसके ऊपर शिव कल्याणकारी रूप की कृपा बनाए रखें लेकिन मनुष्य बार-बार शिव को तीसरा नेत्र खोलने को मजबूर कर रहा है। पहले 2013 में शिव ने अपने ही परमधाम केदारनाथ से अतिवृष्टि का जो तांडव किया, उसमें इंसान का अस्तित्व क्षण भर में तिनके की तरह बह गया। इस बार भी ऐसा ही हुआ। चार धाम हिमालय में स्थित ऋषि गंगा आैर धौली गंगा घाटियों में आयी भीषण जल प्रलय ने एक बार फिर इंसानों को तिनके की तरह बहा दिया। प्रकृति के क्रोध को हमें सहन करना ही पड़ेगा लेकिन हमारा बोध गायब है। प्रकृति के क्रोध के बाद जिस तरह से एनडीआरएफ और आईटीबीपी समेत अन्य बलों के जवानों ने सुरंग से जानें बचाने, प्रभावित लोगों को खाद्यान्न सामग्री पहुंचाने, हजारों टन मलबा हटाने और गांवों से सम्पर्क कायम करने का काम जिस तीव्रता से किया है, उसे देखकर हर देशवासी सोचने को विवश हैं कि इंसान ही विनाश का जिम्मेदार है और इंसान ही नवसृजन कर सकता है। केदारनाथ आपदा में भी आईटीबीपी और एनडीआरएफ के जवान देवदूत बने थे और इस बार भी वे देवदूत बनकर आए हैं।
प्रकृति का धन्यवाद है कि इस बार जल ज्यादा नहीं बढ़ा और न ही वर्षा हुई अन्यथा राहत एवं बचाव कार्य चलाना बहुत मुश्किल होता। युद्ध हो या शांतिकाल, प्राकृतिक आपदा हो या साम्प्रदायिक दंगे हमेशा सुरक्षा बलों ने मानव की रक्षा की है, इसलिए हमें उन पर गर्व है। इस बात की किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि शीत ऋतु में ग्लेशियर टूट कर जल प्रलय का सबब बन जाएगा। तापमान भी कोई ज्यादा गर्म नहीं था फिर ग्लेशियर क्यों टूट गया। पानी के तेज बहाव में ऋषि गंगा हाइडल पावर प्रोजेक्ट के तो अवशेष भी नहीं बचे जबकि एनटीपीसी के प्रोजैक्ट को काफी नुक्सान पहुंचा है।
केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इस खतरे से बार-बार आग्रह िकया था कि ये क्षेत्र ‘पैरा ग्लोसिएल जोन’ के खतरे में है, जहां ग्लेशियर की कोई भी गतिविधि और इनके द्वारा छोड़े गए मलबे की सक्रियता आपदा का कारण बन सकती है। समिति ने इन क्षेत्रों में बांध परियोजना को घातक बता इन्हें स्थापित नहीं करने की ठोस सिफारिश की थी। समिति की रिपोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 24 बांधों का निर्माण का काम रोक दिया था लेकिन इनमें से कुछ परियोजनाओं के निर्माण में राज्य सरकार लगी रही। निर्माणाधीन ऋषि गंगा पावर प्रोजैक्ट तथा तपोवन विष्णुगाड पॉवर प्रोजैक्ट तो लगभग तबाह हो चुका है, करोड़ों का नुक्सान हुआ है और बेशकीमती जानें भी चली गईं।
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिसम्बर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के प्रस्तावित बांधों पर आए निर्णय के बाद गंगा के हिमालयी क्षेत्र में बिगड़ रहे पर्यावरण पर हलफनामा भी दाखिल किया था। उत्तराखंड में बांधों के निर्माण के लगभग छोटे-बड़े सौ प्रोजैक्टों पर काम चल रहा है। अफसोस सरकार इतनी संवेदनहीन बनी रही, जबकि राष्ट्रीय नदी गंगा की घोर उपेक्षा में आहत स्वामी सानंद (डा. जी.डी. अग्रवाल) ने 2018 में गंगा की अविरलता बनाए रखने के लिए बांधों को निरस्त करने की मांग उठाते हुए आमरण अनशन किया। 115 दिन के उपवास के बाद भी सरकार निष्ठुर बनी रही। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी 50 फीसदी बांधों को निरस्त करने की बात कही थी।
सभी सबक भुलाकर चारधाम प्रोजैक्ट के नाम पर घाटियों में सड़कों के चौड़ीकरण की अंधाधुंध गतिविधियां शुरू कर दी गईं। तीर्थों की पारम्परिक और धार्मिक मर्यादाओं को नजरंदाज कर उन्हें टूरिस्ट स्पॉट बनाने का काम शुरू कर दिया गया। हिमालय के इस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र से गम्भीर छेड़छाड़ हुई। पहाड़ियों में सुरंगे बनाने के लिए डायनामाइट विस्फोटों ने उन्हें खोखला कर दिया। पहाड़ की ढाल कमजोर और जर्जर पड़ गई। जंगलों में लगी आग से निकलने वाली कार्बन ने ग्लेशियरों की स्थिरता को कम कर दिया। आज बर्फ का पहाड़ पिघल कर इंसानों को रौंदने लगा है तो हाहाकार मचा हुआ है। जो लोग इसे प्राकृतिक आपदा कहते हैं, वह भूल कर रहे हैं। पावर हाइडल प्रोजैक्टों का लाभ तो क्या मिलना था, उलटा और अधिक नुक्सान ही हो गया। यह सबको मालूम है कि बढ़ते तापमान और हिमालय के भीतर हो रहे परिवर्तन भी हिमनदी की प्रकृति को तेजी से बदल रहे हैं।
सवाल यह है कि उत्तराखंड में रुद्र क्यों रुष्ट हुए। सत्य तो यह है कि प्रकृति इंसान को उसके अनर्गल हस्तक्षेप के निर्मित चेतावनी देती रहती है। बार-बार जताती रही है कि परम सत्ता के आगे इंसान का अस्तित्व पानी के बुलबुले के समान है। जब भी इंसान ने प्रकृति का अतिक्रमण किया उसने पलभर मेंं हटा दिया। भौतिक विकास के भ्रमजाल में पड़कर और तथाकथित सत्ताधीश विधाता होने का भ्रम पाल लेते हैं, लेकिन रुद्र उनका भ्रमजाल तोड़ देते हैं।