बिहार के बेटे और अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर मचा बवाल अब संवेदनशीलता के साथ शांत हो जाना चाहिए। जिस तरह से मीडिया चैनलों ने सुशांत की आत्महत्या को मर्डर के तौर पर पेश किया और फिर इसे अभियान बना डाला, उसे देखकर हैरानी जरूर हुई। यह सही है कि मीडिया हर एंगल से सोचता है और उसे हर पहलु से स्टोरी दिखाने का हक भी है। बिहार विधानसभा के आगामी चुनावों को देखते हुए जिस तरह से इस मामले का राजनीतिकरण किया गया और एक बेहतर अभिनेता की मौत को तमाशा बनाया गया, उसे देखकर दुख भी हुआ। गांधी जयंती पर सुशांत सिंह राजपूत के कुछ मित्रों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल की। कैमरों के सामने ‘वी वांट जस्टिस फॉर सुशांत’, ‘रिया को फांसी दो’, ‘धारा 302 लगाकर मर्डर केस बनाओ’, के नारे लगाए। लोकतंत्र में हर किसी को न्याय मांगने का हक है लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी की भी अपनी मर्यादाएं हैं। पहले भी कहा जाता रहा है जो दिखता है वह बिकता है लेकिन अब जो बिकता है, वही दिखाया जा रहा है। कोराेना की खबरों से ऊब चुके लोगों को भी हर वक्त कुछ नया चाहिए और उनके लिए सब कुछ नया करके परोसा जा रहा है। सुशांत की मौत में तो बिहार के नेताओं को तो राजनीतिक लाइन दिखाई दे रही थी। इस दौरान क्या कुछ सुनने को नहीं मिला। ऐसे दावे किए जा रहे थे कि ‘अब सामने आएगा सुशांत की मौत का सच।’ रोजाना नए-नए वीडियो सामने आ रहे थे। खबरों को पूरे मिर्च-मसालों का तड़का लगाकर प्रस्तुत किया जा रहा था। जिस तरह से मीडिया ट्रायल चलाया गया उससे तो ऐसे लगने लगा था कि अब देश में अदालतों, जांच एजैंसियों और पुलिस की कोई जरूरत ही नहीं है।
भाषा का स्तर भी गिरा और समाज में एक नकारात्मक माहौल सृजित हो गया। बौद्धिक क्षेत्रों से लेकर आम जनता तक एक तरह की बहस छिड़ गई थी कि जिस तरह से नैतिकता की सीमाएं पार की जा रही हैं क्या वह समाज के लिए सही है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद कई तरह की थ्योरियां सामने आईं। कहा गया कि सुशांत सिंह राजपूत को बालीवुड में वंशवाद के चलते आत्महत्या करनी पड़ी। फिर जांच के नाम पर बिहार पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस में भिड़ंत हो गई। फिर सुशांत के पिता के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने के बाद मामले का सियासीकरण हो गया, फिर जांच सीबीआई के हवाले कर दी गई। फिर नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय भी जांच में कूद पड़ा। सीबीआई की जांच आगे बढ़ी तो ड्रग्स एंगल सामने आ गया। जांच ने इतनी तेजी से दिशा बदली कि सुशांत के न्याय की लड़ाई कहीं पीछे छूट गई। सिर्फ रिया चक्रवर्ती और ड्रग्स रैकेट की खबरें सामने आने लगीं। मुम्बई किसकी है, इस पर भी राजनीति शुरू हो गई।
कभी बिहार की अस्मिता तो कभी मराठा अस्मिता जागी। कोई भी केस कानूनी साक्ष्यों पर टिका होता है, अदालतों का भावनाओं से कोई संबंध नहीं होता। हवा में लट्ठ घुमाने से कोई केस पुख्ता नहीं बनता। अब एम्स की फोरेंसिक टीम ने सुशांत सिंह राजपूत की हत्या की थ्योरी को खारिज कर दिया है। एम्स का कहना है कि जिन हालातों में मौत हुई थी, उसमें किसी तरह का फाउल प्ले नहीं है और ये आत्महत्या का मामला है। उसकी विसरा रिपोर्ट भी आ चुकी है कि सुशांत के शरीर में किसी भी तरह का जहर नहीं था, लिहाजा उसे जहर देने की थ्योरी भी खारिज कर दी गई। एम्स की कमेटी ने न केवल विसरा की जांच की बल्कि खुदकुशी वाली जगह पर जाकर एक-एक पहलू की जांच की। सुशांत सिंह की मौत के मामले में एम्स की रिपोर्ट काफी अहम कड़ी साबित होगी। अब मुम्बई पुलिस भी कह रही है कि सुशांत सिंह की मौत की जांच सही दिशा में थी। मुम्बई पुलिस को जानबूझ कर निशाना बनाया गया और राज्य सरकार को भी बेवजह निशाना बनाया गया।
सुशांत को फिल्मों से निकाले जाने की थ्योरी, सुशांत के पैसों को रिया चक्रवर्ती द्वारा हड़प लिए जाने की थ्योरी समेत सभी थ्योरियों में से कुछ निकल कर सामने नहीं आया। एम्स की रिपोर्ट आने के बाद अब बिहार विधानसभा चुनावों में सुशांत की मौत मुद्दा नहीं बनेगी। अभी इस मामले में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी लेकिन कुछ सवाल अभी भी कायम हैं कि आखिर सुशांत सिंह ने खुदकुशी क्यों की। यह तो साफ हो चुका है कि सुशांत सिंह खुद ड्रग्स लेते थे। हमें समाज में उन कारणों की तलाश करनी होगी कि आखिर देश की युवा पीढ़ी क्यों और कैसे ड्रग्स के जाल में फंस रही है। क्या ड्रग्स की लत के कारण एक अभिनेता अवसाद का शिकार हो गया या अवसाद के चलते उसने ड्रग्स लेना शुरू किया। ड्रग्स माफिया पर कड़े प्रहार करने की जरूरत है और उनके नेटवर्क को नेस्तनाबूद करना भी जरूरी है। अब सुशांत की मौत पर मचाया जा रहा बवाल शांत होना ही चाहिए। सारे मामले पर संवेदनशीलता से सोचने की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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