दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के लिए सीबीएसई बोर्ड ने तैयारी कर ली है और गृहमंत्रालय ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए लॉकडाउन उपायों में छूट देने का फैसला भी कर लिया है। इसके लिए केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने सभी राज्यों के प्रमुख सचिवों और केन्द्र शासित प्रदेशों को पत्र भी लिखा है। कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते सब कुछ प्रभावित हुआ है। अब जबकि दुकानें, उद्योग भी खुलने लगे हैं लेकिन स्कूल, कालेज, सिनेमा, शापिंग मॉल बंद हैं। स्पष्ट है कि शिक्षा का क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है। कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते दसवीं और बारहवीं के छात्रों की अनेक परीक्षाएं हो ही नहीं सकी थीं।
इसके बाद केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अनेक राज्यों ने छात्रों की परीक्षा आयोजित किए जाने का निर्णय लिया गया लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या यह थी कि लॉकडाउन के चलते परीक्षा आयोजित करने के निर्णय पर अंतिम मुहर केन्द्रीय गृह मंत्रालय को लगानी थी। इसके लिए राज्यों की तरफ से गृह मंत्रालय को पत्र लिखा गया। इसके बाद गृह मंत्रालय ने कुछ शर्तों के साथ परीक्षाएं आयोजित करने की अनुमति नहीं दी। शर्तों के अनुसार परीक्षा केन्द्र कंटेनमैंट जोन में नहीं बनेंगे। परीक्षा केन्द्रों पर सभी छात्रों, अध्यापकों और स्कूल स्टाफ को मास्क पहनना अनिवार्य होगा। परीक्षार्थियों की थर्मल स्कैनिंग होगी। साथ ही परीक्षा केन्द्रों पर भी सैनिटाइजर की व्यवस्था करनी होगी। परीक्षा लेते समय सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना होगा यानी दो गज की दूरी सबसे जरूरी है। अगर छात्रों को केन्द्रों तक पहुंचाने के लिए विशेष बसें चलानी पड़ें तो राज्यों को इसका प्रबंध भी करना होगा।
परीक्षाएं कठिन परिस्थितियों में ही होंगी और यह इतनी सहजता से नहीं होंगी। परीक्षाओं के दौरान स्कूली बच्चों की आदत है कि परीक्षा देने के बाद वह एक-दूसरे से पूछते हैं कि पेपर कैसा हुआ? तुमने क्या-क्या िकया और उसने क्या किया। स्कूली बच्चों की मनोवृत्ति को देखते हुए उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग के लिए मानसिक रूप से तैयार करना आसान काम नहीं होगा।
अभिभावक कोरोना वायरस से पहले ही काफी चिंतित हैं। कई लोगों ने सुझाव दिया था कि दसवीं और बारहवीं के बच्चों को प्रमोट कर दिया जाए और कुछ का सुझाव था कि आधे विश्वविद्यालय में दाखिलों के लिए अच्छे अंक का एडवांटेज मिलना चाहिए इसिलए परीक्षाएं जरूर होनी चाहिए। दरअसल दसवीं और बारहवीं की परीक्षाएं छात्रों के लिए निर्णायक मोड़ होती है, यहीं से ही उनका भविष्य तय होता है। इस समय अभिभावकों को रोजी-रोटी की चिंता के अलावा बच्चों की शिक्षा का भी बोझ बढ़ गया।
कुछ सवाल अभिभावक भी उठा रहे हैं। उनका कहना है कि अगर कोई बच्चा बीमार वायरस से संक्रमित पाया जाता है तो उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसी स्थिति कुछ छात्रों के लिए आ सकती है। इस सवाल का उत्तर तो बोर्ड को देना होगा कि स्वस्थ होने के बाद ऐसे बच्चों की परीक्षाएं कब होंगी। तनावपूर्ण स्थिति में किसी भी परीक्षार्थी के लिए यह घटनाक्रम अच्छा नहीं होगा। अगर परीक्षा की व्यवस्था शीघ्र नहीं होती तो ऐसे बच्चों के भविष्य पर लॉकडाउन लग सकता है। उनके लिए अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। प्रतियोगी परीक्षाओं को छोड़िये कोरोना ने इस वर्ष के शिक्षा सत्र को ही बिगाड़ कर रख दिया है। पाठ्यक्रम ही पिछड़ गए हैं। प्राइवेट स्कूल तो आनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं, लेकिन वो भी ना काफी है क्योंकि लॉकडाउन में अभिभावकों का डेटा पैक भी मुश्किल बढ़ा रहा है।
विश्वविद्यालयों के छात्रों का भविष्य भी अधर में है। दो बार विश्वविद्यालय की परीक्षाएं स्थगित हो चुकी हैं। अनेक स्कूल आनलाइन पढ़ाई करवा तो रहे हैं ताकि बच्चे आगे की शिक्षा जारी रख सकें, लेकिन आनलाइन पढ़ाई और स्कूल में पढ़ाने और आनलाइन पढ़ने में फर्क तो पड़ता ही है। हालात सामान्य होने के कोई आसार दिखाई नहीं देते। सवाल यह भी है कि क्या भविष्य में शिक्षक मजदूरों की भांति अपना ज्ञान बेचने के लिए चौराहों पर खड़े होंगे। लोगों की गरीबी, आर्थिक स्थिति की ओर से आंखें मूंद आनलाइन शिक्षा के नाम पर छल किया जा रहा है।
खतरा इस बात का भी है कि भारत की पुरातन शिक्षा प्रणाली पर पूंजीवादी शिक्षा प्रणाली तो थोपी नहीं जाएगी। निजी स्कूलों के शिक्षकों का शोषण किसी से छिपा हुआ नहीं है। कोरोना के दिनों में हम जितने भी मर्जी जोन बना लें लेकिन प्रकृति तो कोई भेद नहीं करती। इस समय चिकित्सा और शिक्षा के राष्ट्रीयकरण का विचार वक्त की मांग है। घर में बैठे बच्चों का लम्बे समय तक मोबाइल और पटॉप के सम्पर्क में रहने से इसका असर उनकी मानसिक और शारीरिक तौर पर सर्वाधिक हो सकता है। बच्चे शिक्षा पर फोकस ही नहीं कर पा रहे। ऐसी स्थिति में छात्रों का भविष्य, शिक्षा, परीक्षा पर लॉकडाउन प्रभाव डाल रहा है। दो गज की दूरी के साथ-साथ बच्चों को स्क्रीन से भी दूरी बना कर रखनी होगी। कोरोना वायरस के चलते 191 देशों के 157 करोड़ छात्रों की शिक्षा प्रभावित हो चुकी है। भारत में 32 करोड़ छात्र-छात्राओं का पठन-पाठन प्रभावित है। अब तो वैज्ञानिकों की वैक्सीन या वायरस को पराजित करने वाली दवा का ही इंतजार है, क्योंकि इस समय हर कोई प्रभावित है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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