बहरहाल मैं बात कर रहा था स्व. राजीव गांधी की। जब 1984 में ‘ब्लू स्टार’ आपरेशन से पहले दूसरी बार कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष श्री राजीव गांधी मार्च 1984 में पंजाब पधारे और एक प्रैस कांफ्रैंस में उनसे पूछा गया कि जनरैल सिंह भिंडरावाला कौन है? तो राजीव गांधी बोले कि वो तो एक संत है। इस पर बौखलाए मेरे पिताश्री रमेश जी ने एक जबर्दस्त सम्पादकीय लिखा। मैं कोिशश कर रहा हूं कि आपके समक्ष इसे प्रस्तुत कर सकूं। मुझे आज भी याद है उन्होंने लिखा था-
क्या भिंडरावाला संत है?
दो दिन पहले कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष श्री राजीव गांधी पंजाब आए और उन्होंने अपने एक बयान में भिंडरावाला को संत बताया। क्या श्री राजीव को पता है कि संत और धर्म के नाम पर एक हत्यारे में क्या फर्क होता है? एक संत तो बाबा गुरुनानक देव जैसा होता है जो दुनिया को प्रेम, प्यार और दुनियादारी की बातें समझाता था। इसीलिए तो आज तक बाबा गुरुनानक देव जी को याद किया जाता है।
धन गुरु नानक प्रकटिया
मिट्टी-धुंध जग चानन होया।
अर्थात धन्य है गुरुनानक देव जैसे संत दुनिया में प्रकट हुए। आसमान में मिट्टी और धुंध छंट गए और पूरी दुनिया में धूप खिलने लगी।
लेकिन क्या संत ऐसा भी होता है
जो गले में बंदूक बांध कर चले।
जो हिन्दू-सिखों में बैर भाव बढ़ाए।
जो स्वर्ण मंदिर से हिन्दुओं की हत्याओं के आदेश दे।
जो पाकिस्तान के हाथ का खिलौना हो और देश विरोधी गतिविधियों में संलिप्त हो।
जिसने स्वर्ण मंदिर जैसे सर्वोच्च धर्म के मंदिर को आतताइयों और आतंकवादियों का अड्डा बना दिया हो।
जिसने स्वर्ण मंदिर परिसर पर अपने हथियारबंद समर्थकों के साथ कब्जा किया हो।
जो स्वर्ण मंदिर की प्राचीर से देश विरोधी नारे, हत्या के आदेश और ‘खालिस्तान’ बनाने के बयान देता हो।
यह कैसा संत है भाई राजीव गांधी?
क्या तुम्हारी नजरों में संत की परिभाषा में भिंडरावाला फिट बैठता है?
पिताजी के उपरोक्त लेख के उपरान्त पूरा पंजाब हिल गया। मैं खुद दिल्ली में राजीव गांधी से मिलने गया और उन्हें पिताजी द्वारा लिखित लेख पढ़ाया। राजीव गांधी ने मुझे कहा, ‘‘अश्विनी मुझे लगता है मुझसे बयान देने में शायद गलती हो गई।’’
फिर 9 मई, 1984 की शाम 6 बजे पिताजी की जालंधर में निर्मम हत्या कर दी गई। मैं दिल्ली में था। मुझे सबसे पहला अफसोस का फोन राजीव गांधी का आया। फिर प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने फोन किया। मैं रो रहा था। मेरी अवस्था बेहद खराब थी। मैं बिल्कुल अकेला था। किरण अपनी मां का कैंसर का इलाज कराने अमृतसर अपने बड़े भाई ओमी शर्मा के यहां थी। आदित्य को हत्या के दो दिन पहले पिताजी अपने साथ जालंधर ले गए थे। तब आदित्य मात्र पौने दो वर्ष का था।
स्व. राजीव गांधी और मेरी दोस्ती तब और ज्यादा बढ़ी जब 1984 में लोकसभा चुनाव के उपरांत राजीव भारी बहुमत से जीतकर देश के प्रधानमंत्री बने। राजीव गांधी खुद मुझे फोन करके 7 रेसकोर्स रोड बुलाते और घंटों हम दोनों देश के राजनीतिक हालात पर चर्चा करते। मैंने प्रधानमंत्री राजीव के साथ प्रगाढ़ संबंधों का कभी ज्यादा बखान नहीं किया था। मुझे पता था कि प्रधानमंत्री राजीव के सलाहकार होने का अर्थ सतीश शर्मा, अरुण नेहरू और कई उनके नजदीकी लोगों को नागवार गुजरेगा और ये लोग मेरी और राजीव की दोस्ती को तोड़ने का पूरा प्रयास करेंगे।
महलों के राजा और उनके मंत्रियों की राजनीति ऐसी ही होती है। केवल राजीव के व्यक्तिगत सैक्रेटरी वी. जार्ज के अलावा मेरी और राजीव की दोस्ती के गुप्त संबंधों के बारे में बहुत ही कम लोग जानते थे। मैैं भी राजीव से स्पष्ट बातें करता था जैसे उनके दोस्त कै. सतीश शर्मा की भ्रष्टाचार की कहानियां और अरुण नेहरू, जो कि उस समय राजीव के नजदीकी थे, के द्वारा राजीव और सोनिया की जासूसी की कथा मैंने ही राजीव के समक्ष उजागर की थी।
अरुण नेहरू आंतरिक सुरक्षा मंत्री के तौर पर राजीव और सोनिया की जासूसी किया करते थे। खासतौर पर सोनिया गांधी के इटालियन मूल के मुद्दे पर वे उन्हें शक की निगाह से देखते थे। यहां तक कि श्रीमती सोनिया गांधी के व्यक्तिगत खतों को भी खोल-खोल कर पढ़ते थे। अरुण नेहरू को नेहरू परिवार का वंशज होने पर बहुत अभिमान था। किसी से सीधे मुंह बात नहीं करते थे, लेकिन मुझे और किरण को माह में एक बार अपने सरकारी निवास 24 अकबर रोड पर डिनर जरूर खिलाते थे और नेहरू खानदान से संबंध रखने की बातें सुनाते थे।
इस दौरान खुफिया विभाग के एक अधिकारी ने अरुण नेहरू द्वारा प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी की जासूसी की बात मुझे बताई। मैं उसी दिन शाम को प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी से मिला और उन्हें खुफिया विभाग की जानकारी बताई और राजीव से अरुण नेहरू से सावधान रहने की सलाह दी थी। बाद में प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने खुद इस मामले की खुफिया जांच करवाई और मेरी बात सच्ची साबित हुई। दो महीनों के अंदर श्रीनगर में अरुण नेहरू अपने दिल का इलाज करवा रहे थे तो राजीव ने उन्हें अपने मंत्रीमंडल से निष्कासित कर दिया। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के एक और नजदीकी, जो बाद में रक्षा मंत्री बने, श्री अरुण सिंह भी मेरे बहुत अच्छे दोस्त थे। पहले वे राजीव के पार्लियामैंटरी सैक्रेटरी थे। यह बात 1980 की होगी जब अरुण सिंह कलकत्ता में एक प्राइवेट कम्पनी में काम करते थे।
अरुण सिंह का संबंध भी कपूरथला रियासत के महाराजा से था। एक दिन मुझे मेरे पिताजी ने बुलाया और कहा कि फ्लाइंग मेल ट्रेन से कपूरथला रियासत के एक अरुण सिंह जालंधर आ रहे हैं। तुम्हें पूरा दिन उन्हें कार में बिठाकर कपूरथला और जालंधर घुमाना है। मैं पिताजी के आदेश पर दोपहर के समय स्टेशन पंहुचा और फर्स्ट क्लास श्रेणी में घुस गया। मैं श्री अरुण सिंह से इससे पहले कभी नहीं मिला था। बहरहाल उस डिब्बे में दो से तीन ही यात्री थे। मेरे आवाज देने पर श्री अरुण सिंह ने मेरे से हाथ मिलाया और पूरा दिन हम दोनों ने साथ गुजारा। लंच पर भी मैं उन्हें ले गया और शाम की चाय भी हमने इकट्ठी पी।
रात को फ्रंटियर मेल में मैंने उन्हें दिल्ली के लिए रवाना किया। बाद में दिल्ली आने पर हमारी दोस्ती बढ़ी और 1984 में जब अरुण सिंह प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पार्लियामैंट्री सैक्रेटरी बने तो सबसे पहले साउथ ब्लाक में बुलाकर मेरे साथ चाय पी थी। बहुत ही भले व्यक्ति थे श्री अरुण सिंह। मैं राजीव गांधी के समक्ष हमेशा उनकी कार्यक्षमता की सराहना करता था। कालेज में अरुण और राजीव सहपाठी थे। वी.पी. सिंह के बाद देश के रक्षा मंत्री के रूप में राजीव ने अरुण सिंह को रखा था लेकिन बाद में मुझे अरुण सिंह बोफोर्स के मामले पर राजीव से रुष्ट नजर आए।
मैंने उन्हें समझाया था कि श्री राजीव गांधी इस मामले में निर्दोष हैं। अंततः इसी मुद्दे पर राजीव से असंतुष्ट अरुण सिंह ने राजीव की सरकार से त्याग पत्र दे दिया। राजीव का एक फ्लाइंग क्लब का पायलेट कै. सतीश शर्मा बहुत ही शातिर आदमी था। वह भी राजीव के बहुत नजदीक था और पैसा इकट्ठा करने में माहिर था लेकिन मैं राजीव से सतीश से बचने को कहता रहता था।
बात 1991 के शुरूआती लोकसभा चुनाव की है। स्व. ललित सूरी के होटल इंटरकाेन्टीनैंटल (Inter continental) में उस समय ललित सूरी और कै. सतीश शर्मा एक कमरे में बैठते थे। ललित सूरी के बड़े भाई रमेश सूरी चुन-चुन कर बड़े-बड़े उद्योगपतियों को फोन करते थे और उन्हें चुनावी फंड में पैसा देने के लिए उस कमरे का जिक्र करते थे जिसमें कै. सतीश और ललित कथित तौर पर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर इन लोगों से करोड़ों रुपया लेते थे। राजीव काे यह पता था लेकिन उन्होंने इस मुद्दे पर आंखें मूंद रखी थीं। मेरे पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि देश में लोकसभा चुनाव लड़ना आसान नहीं होता, इसके लिए करोड़ों रुपए चाहिए होते हैं। लेकिन एक दिन तो हद हो गई।
मोदी ग्रुप के देविन्द्र कुमार मोदी जिन्हें हम D.K. Modi पुकारते थे, जो मेरे अच्छे दोस्त हैं, उन्होंने मुझे लंच पर बुलाया और यह रहस्योद्घाटन किया कि उन्हें रमेश सूरी का फोन आया और मैं ललित सूरी के होटल में श्यूूट नम्बर 509 में पैसा लेकर गया। मैंने पूछा कितना पैसा दिया? D.K. में बताया कि दस करोड़ रुपया हमने मोदी ग्रुप की तरफ से दिया है। क्या राजीव गांधी के संज्ञान में है? मैं अगले दिन सुबह राजीव गांधी को दस जनपथ में मिला। उन दिनों श्री चन्द्रशेखर जी प्रधानमंत्री थे आैर राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी के समर्थन से यह सरकार चल रही थी।
मैंने राजीव से पूछा कि मोदी ग्रुप ने ललित सूरी और सतीश शर्मा को चुनावी फंड के लिए दस करोड़ रुपया दिया है। क्या आप जानते हैं? राजीव ने उसी समय अपने कम्प्यूटर में चैक किया और बोले- नहीं, उन्होंने तो पांच करोड़ ही दिया है। मैंने कहा- नहीं, आपको गलतफहमी लग रही है। ललित सूरी और कै. सतीश आपको धोखा दे रहे हैं, लेकिन राजीव मेरी बात न माने।
मैं अगले ही दिन अपनी कार में D.K. मोदी को बैठाकर दस जनपथ राजीव गांधी के पास ले गया। वहां D.K. मोदी ने राजीव को खुद बताया कि उसने दस करोड़ रुपया कै. सतीश और ललित सूरी को दिया है। तो राजीव का चेहरा उतर गया। बाद में अगले दिन मेरे समक्ष 10 जनपथ में ललित और कै. सतीश को बुलाकर राजीव ने जबरदस्त डांट पिलाई। D.K. मोदी ने वो पर्ची भी राजीव गांधी को सौंपी थी जिस पर कै. सतीश के हाथों से दस करोड़ रुपए की रसीद दी गई थी। राजीव ने उसी दिन से कै. सतीश और ललित सूरी को पैसा इकट्ठा करने के इस गोरखधंधे से बेदखल कर दिया। इस किस्से के बाद एक सच्चे मित्र आैर सलाहकार के नाते राजीव गांधी मेरे आैर नजदीक आ गए।
मेरे पास राजीव गांधी का व्यक्तिगत नम्बर था। मैं तो इसी नम्बर पर उनसे बात करता था। कई बार सोनिया जी, राहुल और प्रियंका भी फोन उठा लेते थे क्योंकि यही एक व्यक्तिगत नम्बर दस जनपथ में राजीव के आफिस में लगा था और इसी नम्बर की Extension उनके घर पर थी। राजीव गांधी से दोस्ती के किस्से अभी मुझे और भी सुनाने हैं।
किस तरह हम दोनों ने मिलकर वी.पी. सिंह की सरकार गिराई? चौ. देवीलाल को कैसे मैं राजीव के नजदीक लाया? वैसे मैं अंत तक राजीव को मनाता रहा कि चन्द्रशेखर की जगह चौ. देवीलाल को प्रधानमंत्री बनाएं? चौ. देवीलाल और राजीव से मैंने गुप्त मुलाकात में चौधरी साहिब की तरफ से क्या तजवीजें रखीं? कैसे प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी से राजीव जी को SPG Cover वापिस देने को कहा? लेकिन उन्हें चन्द्रशेखर ने नहीं दिया? कैसे किरण चौधरी, चन्द्रास्वामी और चन्द्रशेखर ने मिलकर राजीव के विरुद्ध सािजशें रचीं और राजीव के साथ हत्या के ठीक एक दिन पहले क्या बातें हुईं और बीना काक द्वारा स्वादिष्ट भोजन मैंने खुद हवाई जहाज उड़ाते राजीव को अपने हाथों से खिलाया? इसका जिक्र मैं अपने अगले लेखों में करूंगा। (क्रमशः)