मेरे पिताजी हमेशा यही गुनगुनाते थे जीओ तो ऐसे जीओ जैसे सब कुछ तुम्हारा है और दुनिया से जाओ तो ऐसे जाओ कि कुछ भी तुम्हारा नहीं। उस समय शायद हम इन पंक्तियों का अर्थ नहीं समझ पाते थे परन्तु ज्यों-ज्यों हम उम्र के पड़ाव पर आगे बढ़ रहे हैं तो अपने अनुभवों से सब समझ आ रहा है।
अटल जी से पूजनीय लालाजी, पूजनीय रोमेश जी आैर आदरणीय चाचा जी के बहुत ही मधुर संबंध रहे परन्तु अश्विनी जी के साथ तो एक अलग ही तरह के संबंध थे जिन्हें मैंने अपनी आंखों से देखा, कानों से सुना और महसूस किया। अटल जी अश्विनी जी को प्यार करते थे। कभी-कभी डांट भी देते थे परन्तु अश्विनी जी की लेखनी के बहुत ही कायल थे। एक दिन मुझे याद है मैं अश्विनी के साथ बैठी थी तो उनका फोन आया- भई आज तो तूने बहुत ही अच्छा लिखा है, मुझे पर्वत पर चढ़ा दिया परन्तु मुझे यह भी मालूम है कल तुम धड़ाम से पहाड़ से नीचे भी अपनी कलम से गिरा दोगे… फिर हंसने लग गए अरे कुछ तो लिहाज कर लिया कर। बहुत ही सरल, ज्ञानी व्यक्ति थे। मेरे छोटे जुड़वां बेटों अर्जुन-आकाश की पहली लोहड़ी पर आए तो सभी थे अडवानी जी, केदारनाथ साहनी जी, मदन लाल खुराना जी, विजय कुमार मल्होत्रा, शाल वाले ज्ञानी जैल सिंह, कांग्रेस नेता सज्जन कुमार, टाइटलर, बेअंत सिंह, चौधरी देवी लाल और आदरणीय महाशय जी, बहुत से ऐसे नाम जो लेते-लेते समय लगे परन्तु जैसे ही अटल जी आए उन्होंने दोनों बच्चों को गोदी में उठाया। दोनों बच्चे ८ महीने के थे। दोनों ने उनके बाल पकड़ लिए, वो इतना खिलखिला कर हंसे और बोले अरे बाप कलम से खींचता है और तुम बालों से खींच रहे हो (वो खुद एक महान साहित्यकार, कवि आैर जर्नलिस्ट थे इसलिए पत्रकार की अहमियत समझते थे)। अपनी आलोचना को बहुत हंस के लेते थे। मैं हमेशा अश्विनी जी के राजनीति में आने के विरुद्ध रहती हूं और हमेशा कहती हूं कि संतुलन करना बहुत मुश्किल काम है, आप एक निर्भीक, निडर पत्रकार के पोते आैर बेटे आैर स्वयं वैसे ही पत्रकार हो तो आपको घुटन तो महसूस नहीं होती है तो वो हमेशा मुझे कहते हैं-पहले राजनीति में पत्रकार या वकील ही आते थे जैसे गांधी जी, नेहरू जी, वाजपेयी जी, अडवानी जी तो मैं क्यों नहीं।
सबसे बड़ी बात जो मुझे उनकी अच्छी लगती थी कि वो पी.एम. बनने से पहले, पी.एम. बनने के बाद भी वैसे ही थे। वही प्यार-दुलार और झिड़की भी वही, कोई व्यवहार में फर्क नहीं आया। यह बहुत ही अपनापन था। यही नहीं उनकी बेटी गुनू (नमिता) आैर दामाद रंजन भट्टाचार्य भी बिल्कुल उन्हीं की तरह बहुत ही प्यार वाले, साधारण, न कोई नखरा न दिखावा, दोनों हमेशा बाप जी (अटल जी को कहते थे) की सेवा में लगे रहते थे। अश्विनी जी हमेशा कहते थे कि मैं बाप जी को इस अवस्था में नहीं देख सकता। वो अन्दर से बहुत ही उनके लिए भावुक होते थे। उनके पास जाने से, देखने से घबराते थे। उनकी जिन्दगी के तीन सबसे प्रिय व्यक्ति इस अवस्था में चल रहे थे- एक अटल जी, दूसरे मदन लाल खुराना जी आैर तीसरी उनकी चाची मां। हमेशा यही सोच आती थी कि तीनों इतने अच्छे व्यक्ति और ईश्वर इनको किस हाल में रख रहा है।
परन्तु अटल जी जिस शान से गए आैर जिस शान से लोगों ने, सभी पािर्टयों, सभी धर्मों के लोगों ने यहां तक कि विदेशी राजनयिक ने उनको विदाई दी, वाकई इंसान जब जाता है तो उसके अच्छे कर्म, उसके अच्छे बोल ही साथ जाते हैं बाकी सभी यहीं रह जाता। ऐसी शानदार विदाई लोगों के अनुसार या तो नेहरू जी की हुई थी या अब अटल जी की हुई। लोग उनके आखिरी दर्शनों के लिए व्याकुल थे। यहां तक कि दो नई मिसाल पैदा हुईं- एक तो एक महान पूर्व प्रधानमंत्री को विदाई देने के लिए एक वर्तमान प्रधानमंऌत्री उनकी विदाई यात्रा, जो लगभग चार किलोमीटर थी, में पैदल चले। उनके साथ बीजेपी अध्यक्ष, कई मुख्यमंत्री आैर बीजेपी के कार्यकर्ता भी पैदल चले। यह तो एक नई मिसाल है जो शायद कभी न देखी, न देखने को मिलेगी क्योंकि इतनी दूर गर्मी में पैदल चलना मेरे ख्याल से किसी पी.एम. के बस की बात नहीं होगी। उन्होंने अपने तरीके से उनको विदाई दी। दूसरी मिसाल उनकी बेटी गुनू (नमिता) ने उन्हें मुखाग्नि देकर सभी बेटियों के लिए मिसाल कायम की।
मुझे सच में अटल जी और बलराम जी टंडन, जिनका भी कुछ दिन पहले निधन हुआ, ऐसे लग रहा है कि देश को तो नुक्सान हुआ परन्तु मेरा तो निजी नुक्सान हुआ। बलराम जी टंडन मेरे बुजुर्गों के कार्यों की बहुत प्रशंसा करते थे आैर हमेशा फोन करके कहते थे बेटा तू लाला जी और रोमेश जी का नाम रोशन कर रही है। उनके पदचिन्हों पर चल रही है। वह ऊपर से तुम्हें आशीर्वाद दे रहे होंगे और मैं तुम्हें यहां से आशीर्वाद देता हूं और उन्होंने वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के बुजुर्गों के लिए अच्छी सहायता राशि भी भेजी और साथ में जाते-जाते मुझे अपने बेटे-बहू के साथ भी अच्छी तरह से जोड़ गए (जिनके साथ पहले ही पारिवारिक संबंध थे परन्तु इनके कारण आैर नजदीक आ गए)।
सच में गीता के उपदेश बहुत अच्छे उपदेश हैं जो कठिनाइयों के समय, दुःख के समय बहुत ही काम आते हैं- क्या लेकर आए थे क्या लेकर जाओगे, खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाओगे, अच्छे कर्म ही आपके साथ जाएंगे।
अंत में मेरा यही मानना है कि कोई व्यक्ति अपनी पोजीशन, नाम, यश, ज्ञान से बड़ा नहीं होता बल्कि उसके संस्कार उसे बड़ा और सम्मानित बनाते हैं। अटल जी का व्यवहार आैर व्यक्तित्व ऐसा था जो अपने विरोधियों को भी अपना बना लेता था यही कारण है कि उनकी इसी विदाई में सभी उनके अपने-पराए, सभी धर्मों और पार्टियों के लोग शामिल हुए।