संविधान नायक बाबा साहब का सपना गरीब गुरबा दलितों के घर में नहीं पहुंचा है - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

संविधान नायक बाबा साहब का सपना गरीब गुरबा दलितों के घर में नहीं पहुंचा है

भारतीय संविधान के पुरोधा के नाम से जग प्रसिद्ध डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के बारे में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि अगर बाबा साहब अमेरिका में जन्म लिया होता तो उन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त होता।

पटना (जेपी चौधरी) : भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव आंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को धूमधाम से मनाई जाती थी। लेकिन इस बार कोरोना की वैश्विक महामारी के कारण संविधान के नायक बाबा साहब की जयंती घर की चौखट के भीतर बेहद ही सादे तरीके से मनाई जाएगी। भारतीय संविधान के पुरोधा के नाम से जग प्रसिद्ध डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के बारे में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि अगर बाबा साहब अमेरिका में जन्म लिया होता तो उन्हें भगवान का दर्जा प्राप्त होता। यद्यपि की भारत में बाबा साहब को पूजने वालों की कमी नहीं है। फिर भी बाबा साहब के सपनों को जमीन पर उतारने में इनके अनुयाई कामयाब नहीं हो पाए। 

मौजूदा परिदृश्य में आरक्षण का लाभ पैसे वाले मालदार दलित उठा रहे हैं। जबकि गरीब दलित आदिवासी  एवं शोषित तबके के लोग आज भी आरक्षण के लाभ से कोसों दूर है। इन वर्गों के लिए बाबा साहब का सपना छलावा साबित हुआ। आजादी के 70 वर्षों के बाद भी दलित समाज के लोग चौराहे पर खड़े हैं। जिन दलित भाइयों को नौकरी में आरक्षण का लाभ मिला वे अपने ही लोगों को भुला गए। ऐसे लोग जीवन पर्यंत अपने उपेक्षित समाज के लोगों की सुधि लेना मुनासिब नहीं समझा। अपवाद स्वरूप कुछ वैसे भी लोग इस समाज से आए जिन्होंने अपने समाज की नमक की शरीयत देते हुए बेहतर दलित समाज के निर्माण में उल्लेखनीय भूमिका अदा किया। मिसाल के तौर पर हरियाणा के एक ब्लॉक में प्रखंड विकास पदाधिकारी के पद पर आसीन एक दलित अधिकारी ने शोषित समाज के उत्थान के लिए ऐतिहासिक पहल किया।

उन्होंने दलितों की बस्ती पहचान कर इंदिरा आवास एवं सड़क का निर्माण कराया। इससे दलितों के जीवन स्तर में उल्लेखनीय परिवर्तन आया। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सांसद विधायक कलेक्टर एसडीएम एवं उच्च पुलिस पदाधिकारी के पद पर काबिज दलित वर्गों के लोग अपने समाज को बेहतर बनाने में भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। ऐसे लोगों को जब तक नौकरी नहीं मिली थी तब तक बाबा साहब बाबा साहब के नाम की माला जपते नजर आते थे। नौकरी मिल जाने के बाद बाबा साहब के संविधान में हो गए मस्त और बीवी बंगला में हो गए व्यस्त। 

भीमराव आंबेडकर,भीमबाई के पुत्र थे और उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को महू सेना छावनी, केंद्रीय प्रांत सांसद महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता भारतीय सेना में एक सूबेदार थे। 1894 में उनके पिता के सेवा-निवृत्ति के बाद वो अपने पुरे परिवार के साथ सातारा चले गए। चार साल बाद, आंबेडकर जी की मां का निधन हो गया और फिर उनकी चाची ने उनकी देखभाल की। बाबा साहेब आंबेडकर के दो भाई बलराम और आनंद राव और दो बहन मंजुला और तुलसा थी है और सभी बच्चों में से केवल आंबेडकर उच्च विद्यालय गए थे। उनकी मां की मृत्यु हो जाने के बाद, उनके पिता ने फिर से विवाह किया और परिवार के साथ बॉम्बे चले गए। 

15 साल की उम्र में आंबेडकर जी ने रामाबाई से शादी की। उनका जन्म गरीब दलित जाति परिवार में हुआ था जिसके कारण उन्हें बचपन में जातिगत भेदभाव और अपमान का सामना करना पड़ा। उनके परिवार को उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा अछूत माना जाता था। आंबेडकर जी के पूर्वज तथा उनके पिता ब्रिटिश ईस्ट इंडियन आर्मी में लंबे समय तक कार्य किया था। आंबेडकर अस्पृश्य स्कूलों में भाग लेते थे, लेकिन उन्हें शिक्षकों द्वारा महत्व नहीं दिया जाता था। उन्हें ब्राह्मणों और विशेषाधिकार प्राप्त समाज के उच्च वर्गों से अलग, कक्षा के बाहर बैठाया जाता था, यहां तक कि जब उन्हें पानी पीना होता था, तब उन्हें चपरासी द्वारा ऊंचाई से पानी डाला जाता था क्योंकि उन्हें पानी और उसके बर्तन को छूने की अनुमति नहीं थी।

उन्होंने इसे अपने लेखन चपरासी नहीं तो पानी नहीं,में वर्णित किया है। आंबेडकर जी को आर्मी स्कूल के साथ-साथ हर जगह समाज द्वारा अलगाव और अपमान का सामना करना पड़ा। वह एकमात्र दलित व्यक्ति थे जो मुंबई में एल्फिंस्टन हाई स्कूल में पढ़ने के लिए गये थे। उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद 1908 में एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। उनकी सफलता दलितों के लिए जश्न मनाने का कारण था क्योंकि वह ऐसा करने वाले पहले व्यक्ति थे। 1912 में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की। उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ द्वारा स्थापित योजना के तहत बड़ौदा राज्य छात्रवृत्ति मिली और अर्थशास्त्र का अध्ययन करने के लिए उन्होंने न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया। 

जून 1915 में उन्होंने अर्थशास्त्र के साथ-साथ इतिहास, समाजशास्त्र, दर्शन और राजनीति जैसे अन्य विषयों में भी मास्टर डिग्री प्राप्त की। 1916 में वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में गए और अपने शोध प्रबंध पर काम किया रुपये की समस्या इसकी उत्पत्ति और समाधान उसके बाद 1920 में वो इंग्लैंड गए वहां उन्हें लंदन विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की डिग्री मिली और 1927 में उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी हासिल की। अपने बचपन की कठिनाइयों और गरीबी के बावजूद डॉ. बी.आर. आंबेडकर ने अपने प्रयासों और समर्पण के साथ अपनी पीढ़ी को शिक्षित बनने के लिए आगे बढ़ते रहे। वे विदेशों में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त करने वाले पहले भारतीय थे। भारत की आजादी के बाद सरकार ने डॉ. बी.आर. आंबेडकर को आमंत्रित किया था। डॉ. आंबेडकर ने स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। उन्हें भारत के नए संविधान और संविधान निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। निर्माण समिति के अध्यक्ष होने के नाते संविधान को वास्तुकार रूप देने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ आंबेडकर द्वारा तैयार किया गया संविधान, पहला सामाजिक दस्तावेज था। सामाजिक क्रांति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने आवश्यक शर्तों की स्थापना की। आंबेडकर द्वारा तैयार किए गए प्रावधानों ने भारत के नागरिकों के लिए संवैधानिक आश्वासन और नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा प्रदान की। इसमें धर्म की स्वतंत्रता, भेदभाव के सभी रूपों पर प्रतिबंध और छुआछूत को समाप्त करना भी शामिल था। आंबेडकर ने महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की भी वकालत की। उन्होंने अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्ग के सदस्यों के लिए प्रशासनिक सेवाएं, कॉलेजों और स्कूलों में नौकरियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने का कार्य किया। जाति व्यवस्था एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक व्यक्ति के स्थिति, कर्तव्यों और अधिकारों का भेद किसी विशेष समूह में किसी व्यक्ति के जन्म के आधार पर किया जाता है। यह सामाजिक असमानता का कठोर रूप है।

बाबासाहेब आंबेडकर का जन्म एक माहर जाति के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार को निरंतर सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के अधीन रखा गया था। बचपन में उन्हें महार जाति, जिसे एक अछूत जाति माना जाता है से होने के कारण सामाजिक बहिष्कार, छुआछूत और अपमान का सामना करना पड़ता था। बचपन में स्कूल के शिक्षक उनपर ध्यान नहीं देते थे और ना ही बच्चे उसके साथ बैठकर खाना खाते थे उन्हें पानी के बर्तन को छुने तक का अधिकार नहीं था तथा उन्हें सबसे दुर कक्षा के बाहर बैठाया जाता था। जाति व्यवस्था के कारण, समाज में कई सामाजिक बुराइयां प्रचलित थी। बाबासाहेब के लिए धार्मिक धारणा को समाप्त करना आवश्यक था जिस पर जाति व्यवस्था आधारित थी। 

उनके अनुसार, जाति व्यवस्था सिर्फ श्रम का विभाजन नहीं बल्कि मजदूरों का विभाजन भी था। वे सभी समुदायों की एकता में विश्वास रखते थे। ग्रेज इन में बार कोर्स करने के बाद उन्होंने अपना कानूनी व्यवसाय शुरू किया। उन्होंने जातिगत भेदभाव के मामलों की वकालत में अपना अद्भुत कौशल दिखाया। ब्राह्मणों के खिलाफ गैर ब्राह्मण की रक्षा करने में उनकी जीत ने उनके भविष्य की लड़ाइयों की आधारशिला को स्थापित किया । बाबासाहेब ने दलितों के पूर्ण अधिकारों के लिए कई आंदोलनों की शुरूआत की। उन्होंने सभी जातियों के लिए सार्वजनिक जल स्रोत और मंदिरों में प्रवेश करने के अधिकार की मांग की। उन्होंने भेदभाव का समर्थन करने वाले हिंदू शास्त्रों की भी निंदा की।

डॉ. भीमाराव आंबेडकर को जिस जाति भेदभाव के कारण पूरे जीवन पीड़ा और अपमान का सामना करना पड़ा था उन्होंने उसी के खिलाफ लड़ने का फैसला किया। उन्होंने अस्पृश्यों और अन्य उपेक्षा समुदायों के लिए अलग चुनावी व्यवस्था के विचार का प्रस्ताव रखा। उन्होंने दलितों और अन्य बहिष्कृत लोगों के लिए आरक्षण की अवधारणा पर विचार करते हुए इसे मूर्त रुप दिया। 1932 में, सामान्य मतदाताओं के भीतर अस्थायी विधायिका में दलित वर्गों के लिए सीटों के आरक्षण हेतु बाबासाहेब आंबेडकर और पंडित मदन मोहन मालवीय जी के द्वारा पूना संधि पर हस्ताक्षर किया गया। पूना संधि का उद्देश्य, संयुक्त मतदाताओं की निरंतरता में बदलाव के साथ निम्न वर्ग को अधिक सीट देना था। बाद में इन वर्गों को अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के रूप में संदर्भित किया गया। लोगों तक पहुंचने और उन्हें सामाजिक बुराइयों के नकारात्मक प्रभाव को समझाने के लिए आंबेडकर ने मूकनायक चुप्पी के नेता नामक एक अखबार शुभारंभ किया।

बाबासाहेब महात्मा गांधी के हरिजन आंदोलन में भी शामिल हुए। जिसमे उन्होंने भारत के पिछड़े जाति के लोगों द्वारा सामना किए जाने वाले सामाजिक अन्याय के विरोध में अपना योगदान दिया। बाबासाहेब आंबेडकर और महात्मा गांधी उन प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे, जिन्होंने भारत से अस्पृश्यता को समाप्त करने में बहुत बड़ा योगदान दिया।  इस प्रकार डॉ.बीआर. आंबेडकर ने जीवन भर न्याय और असमानता के लिए संघर्ष किया। उन्होंने जाति भेदभाव और असमानता के उन्मूलन के लिए काम किया। उन्होंने दृढ़ता से न्याय और सामाजिक समानता में विश्वास किया और यह सुनिश्चित किया कि संविधान में धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव ना हो। वे भारतीय गणराज्य के संस्थापको में से एक थे। 

भारतीय जाति व्यवस्था में, अछूतो को हिंदुओं से अलग कर दिया गया था। जिस जल का उपयोग सवर्ण जाति के हिंदुओं द्वारा किया जाता था। उस सार्वजनिक जल स्रोत का उपयोग करने के लिए दलितों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। महाड़ सत्याग्रह की शुरुआत डॉ.भीमराव आंबेडकर के नेतृत्व में 20 मार्च 1927 को किया गया था। जिसका उद्देश्य अछूतों को महाड़, महाराष्ट्र के सार्वजनिक तालाब के पानी का उपयोग करने की अनुमति दिलाना था। बाबासाहेब आंबेडकर ने सार्वजनिक स्थानों पर पानी का उपयोग करने के लिए अछूतों के अधिकारों के लिए सत्याग्रह शुरू किया। उन्होंने आंदोलन के लिए महाड़ के चवदार तालाब का चयन किया। उनके इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में दलित शामिल हुए। डॉ बी.आर.आंबेडकर ने अपने कार्यों से हिंदू जाति व्यवस्था के खिलाफ एक शक्तिशाली प्रहार किया। उन्होंने कहा कि चावदार तालाब का सत्याग्रह केवल पानी के लिए नहीं था, बल्कि इसका मूल उद्देश्य तो समानता के मानदंडों को स्थापित करना था। 

उन्होंने सत्याग्रह के दौरान दलित महिलाओं का भी उल्लेख किया और उनसे सभी पूराने रीति-रिवाजों को त्यागने और उच्च जाति की भारतीय महिलाओं के जैसे साड़ी पहनने के लिए आग्रह किया। महाड़ में आंबेडकर जी के भाषण के बाद दलित महिलाएं उच्च वर्ग की महिलाओं के साड़ी पहनने के तरिकों से प्रभावित हुई वहीं, इंदिरा बाई चित्रे और लक्ष्मीबाई तपनीस जैसी उच्च जाति की महिलाओं ने उन दलित महिलाओं को उच्च जाति की महिलाओं की तरह साड़ी पहनने में मदद की। संकट का माहौल तब छा गया जब यह अफवाह फैल गई कि अछूत लोग विश्वेश्वर मंदिर में उसे प्रदूशित करने के लिए प्रवेश कर रहे हैं। जिससे वहां हिंसा भड़क उठी और उच्च जाति के लोगों द्वारा अछूतों को मारा गया, जिसके कारण दंगे और अधिक बढ़ गये।

सवर्ण हिंदुओं ने दलितों द्वारा छुए गये तालाब के पानी का शुद्धिकरण कराने के लिए एक पूजा भी करवायी। 25 दिसंबर 1927 को महाड़ में बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा दूसरा सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया गया। हालांकि, हिंदुओं का कहना था कि तालाब उनकी निजी संपत्ति है, इसीलिए उन्होंने बाबासाहेब के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया मामला उप-न्याय का होने के कारण सत्याग्रह आंदोलन ज्यादा दिन तक जारी नहीं रहा। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिसंबर 1937 में यह फैसला सुना दिया कि अस्पृश्यों को भी तालाब के पानी को उपयोग करने का पूरा अधिकार है। दलित बौद्ध आंदोलन भारत में बाबासाहेब आंबेडकर की अगुवाई में दलितों द्वारा किया गया एक आंदोलन था। यह आंदोलन आंबेडकर के द्वारा 1956 में तब शुरू किया जब लगभग 5 लाख दलित उनके साथ सम्मलित हो गए और नवयान बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गए। यह आंदोलन बौद्ध धर्म से सामाजिक और राजनीतिक रूप से जुड़ा हुआ था, इसमे बौद्ध धर्म की गहराईयों की व्याख्या कि गई थी तथा नवयान नामक बौद्ध धर्म स्कूल का निर्माण किया गया था।

उन्होंने सामूहिक रूप से हिंदू धर्म और जाति व्यवस्था का पालन करने से मना कर दिया। उन्होंने दलित समुदायों के अधिकारों को बढ़ावा दिया। उनके इस आंदोलन में बौद्ध धर्म के परंपरागत संप्रदायों जैसै, थेरावाड़ा, वज्रयान, महायान के विचारों का पालन करने से इंकार कर दिया। बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा बताए गए बौद्ध धर्म के नये रूप का पालन किया गया, जिसमे सामाजिक समानता और वर्ग संघर्ष के संदर्भ में बौद्ध धर्म को दर्शाया गया। बाबासाहेब आंबेडकर अपनी मृत्यु से कुछ हफ्ते पहले 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर के दीक्षाभूमि में एक साधारण समारोह के दौरान उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया क्योंकि कई लेख और किताबें प्रकाशित करने के बाद लोगों को यह पता चला गया था कि बौद्ध धर्म दलितों को समानता प्राप्त कराने का एकमात्र तरीका है। उनके इस परिवर्तन ने भारत में जाति व्यवस्था से पीड़ित दलितों के अंदर एक नई ऊर्जा का संचार किया और उन्हें समाज में अपनी पहचान बनाने और खुद को परिभाषित करने के लिए प्रेरित किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

two + 9 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।